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सोना-तेल नहीं, इस 'खजाने' पर भिड़े चीन-अमेरिका! भारत के आगे झुके ट्रंप, मच गया भूचाल
US China Trade War: रेअर अर्थ मिनरल्स 21वीं सदी का नया तेल हैं, जिन पर चीन, भारत और अमेरिका के बीच वैश्विक दबदबे की जंग छिड़ी हुई है।
US China Trade War
US China Trade War: 20वीं सदी में तेल और सोना वैश्विक सत्ता और ताकत के प्रतीक माने जाते थे, लेकिन 21वीं सदी में यह परिभाषा बदल गई है। अब यह स्थान रेअर अर्थ मिनरल्स (Rare Earth Minerals) ने ले लिया है। ये खनिज आज की हाई-टेक दुनिया की रीढ़ बन चुके हैं और यही कारण है कि वैश्विक महाशक्तियों के बीच इनको लेकर संघर्ष शुरू हो चुका है।
चीन की बढ़ती पकड़ और वैश्विक तनाव
दुनिया के सबसे बड़े रेअर अर्थ भंडार चीन के पास हैं। चीन न सिर्फ इनका सबसे बड़ा उत्पादक है, बल्कि रिफाइनिंग और मैग्नेट निर्माण तक पूरी सप्लाई चेन पर उसका नियंत्रण है। हाल ही में चीन ने इन मिनरल्स के निर्यात पर सख्ती बढ़ा दी है। अब बिना सरकारी अनुमति कोई भी इन्हें एक्सपोर्ट नहीं कर सकता। इस कदम ने वैश्विक सप्लाई चेन को हिला कर रख दिया है और अमेरिका सहित कई देशों को चिंता में डाल दिया है।
अमेरिका की रणनीति में भारत की भूमिका
चीन की सख्ती के बाद अमेरिका ने रेअर अर्थ मिनरल्स की वैकल्पिक सप्लाई चेन तैयार करने की दिशा में कदम बढ़ाया है। इसी रणनीति के तहत वह भारत को एक संभावित सहयोगी मान रहा है। एक समय पर ट्रंप प्रशासन भारत पर टैरिफ बढ़ा रहा था, लेकिन अब वही भारत से मदद की उम्मीद कर रहा है। अमेरिका चाहता है कि भारत, यूरोप और एशिया के लोकतांत्रिक देश मिलकर चीन की निर्भरता को कम करें।
भारत की संभावनाएं और चुनौतियां
भारत के पास लगभग 6.9 मिलियन मीट्रिक टन रेअर अर्थ मिनरल्स का भंडार है, जो इसे चीन और ब्राज़ील के बाद तीसरे स्थान पर रखता है। हालांकि, भारत अभी तक इन संसाधनों का पर्याप्त उपयोग नहीं कर पाया है। इसकी सबसे बड़ी वजह है-उन्नत रिफाइनिंग तकनीक और निवेश की कमी। यदि भारत इस दिशा में सही नीति, तकनीकी सहयोग और पूंजी निवेश करे, तो वह एक मजबूत वैकल्पिक केंद्र बन सकता है।
रेअर अर्थ मिनरल्स: आधुनिक दुनिया की नींव
रेअर अर्थ मिनरल्स में 17 ऐसे केमिकल एलिमेंट्स होते हैं जो मोबाइल, लैपटॉप, इलेक्ट्रिक वाहन, फाइटर जेट, मिसाइल और सैटेलाइट सिस्टम में जरूरी होते हैं। इन्हें आधुनिक अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहा जाता है। इनकी माइनिंग और रिफाइनिंग आसान नहीं होती क्योंकि ये अक्सर रेडियोएक्टिव एलिमेंट्स के साथ पाए जाते हैं और इन्हें अलग करना खर्चीला व खतरनाक होता है।
आने वाला दौर में होगा मिनरल वॉर
चीन दुनिया के 90% रेअर अर्थ मिनरल्स को प्रोसेस करता है। इससे वह किसी भी देश की सप्लाई रोककर उस पर आर्थिक दबाव बना सकता है। आने वाले समय में जो देश इन मिनरल्स की सप्लाई और रिफाइनिंग नियंत्रित करेगा, वही टेक्नोलॉजिकल पावर हाउस बनेगा। तेल और सोने की जंग पीछे छूट चुकी है।अब असली मुकाबला रेअर अर्थ मिनरल्स पर है, और यही 21वीं सदी की नई ऊर्जा जंग की कहानी है।
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