यूनुस राज में भारत को चारों तरफ से घेरने की ISI कर रही साजिश, अंतरिम सरकार के मुखिया बने कठपुतली

बांग्लादेश में कट्टरपंथ बढ़ा, ISI की साज़िश के तहत सांस्कृतिक पहचान बदलने की कोशिश, आतंकी कैंप और उर्दू थोपने की चाल तेज़।

Shivam Srivastava
Published on: 18 Oct 2025 5:12 PM IST
यूनुस राज में भारत को चारों तरफ से घेरने की ISI कर रही साजिश, अंतरिम सरकार के मुखिया बने कठपुतली
X

बांग्लादेश में हाल के दिनों में कट्टरपंथ के बढ़ते प्रभाव ने चिंता बढ़ा दी है, खासकर तब से जब मुहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का कार्यवाहक प्रमुख नियुक्त किया गया। माना जा रहा है कि यूनुस पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI के इशारों पर चलने वाली जमात-ए-इस्लामी का मोहरा हैं। उनके आने के बाद से ही अल्पसंख्यकों पर हमले, आतंकी कैंपों की बढ़ती संख्या और चरमपंथी विचारधारा के विस्तार में तेज़ी देखी गई है।

जहां एक ओर हिंसा रोज़मर्रा का हिस्सा बन चुकी है, वहीं बड़ी चिंता ISI की बांग्लादेश में बढ़ती मौजूदगी है। ISI केवल आतंकी शिविर स्थापित करने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि वह बांग्लादेश की सांस्कृतिक पहचान को मिटाकर उसे पूरी तरह पाकिस्तान की तर्ज़ पर ढालने की साज़िश में जुटी है।

ढाका में ISI के निर्देश पर तीन शिविर स्थापित किए गए हैं, जिनकी निगरानी कट्टरपंथी तत्व कर रहे हैं। इन शिविरों में युवाओं को चरमपंथी विचारधारा से प्रभावित किया जा रहा है ताकि पूरे देश को पाकिस्तान जैसी कट्टर सोच में ढाला जा सके।

उर्दू थोपने की कोशिश

पाकिस्तानी मौलवियों का बांग्लादेश में आना- जाना अब सामान्य हो गया है। ये मौलवी चटगांव हिल ट्रैक्ट्स और अन्य क्षेत्रों में बने शिविरों में जाकर भाषण देते हैं। इन दौरों का आयोजन जमात, हिज्ब उत-तहरीर और बांग्लादेशी इस्लामी आंदोलन जैसे संगठनों द्वारा किया जाता है। इनका उद्देश्य बड़ी संख्या में बांग्लादेशी युवाओं को इन शिविरों में लाना और उन्हें “इस्लामी पहचान” अपनाने व उर्दू को राष्ट्रभाषा बनाने की ओर प्रेरित करना है।

यह योजना बांग्ला भाषा और संस्कृति को खत्म करने की एक सुविचारित कोशिश है। बांग्लादेश की आधिकारिक भाषा बंगाली (बांग्ला) है और 98% आबादी इस भाषा में दक्ष है। इसके साथ ही बड़ी संख्या में लोग अंग्रेज़ी भी बोलते हैं। पाकिस्तान इस स्थिति को बदल कर उर्दू को थोपना चाहता है।

मदरसों के ज़रिए शिक्षा पर कब्जा

ISI ने जमात को निर्देश दिया है कि वे और अधिक मदरसों की स्थापना करें और सुनिश्चित करें कि बच्चे नियमित स्कूलों के बजाय इन्हीं धार्मिक संस्थानों में पढ़ें। यह वही मॉडल है जिसे पाकिस्तान वर्षों से अपने यहां लागू करता आया है जहां शिक्षा का माध्यम धार्मिक कट्टरता बन जाता है।

आतंकी संगठनों की भूमिका

जहां एक ओर सांस्कृतिक पहचान को मिटाया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर ISI बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर आतंकी शिविर स्थापित कर रहा है। इन कैंपों की निगरानी ISI के अधिकारी करते हैं और भर्ती की जिम्मेदारी जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (JuMB), अंसारुल्लाह बांग्ला टीम (ABT), और हरकत-उल-जिहादी इस्लामी (HuJI) जैसे संगठनों को दी गई है।

विश्लेषकों का मानना है कि जब सरकार एक कठपुतली के रूप में काम कर रही हो, तब ऐसे आतंकी कैंपों का पनपना स्वाभाविक है। भारत इन खतरों को भांपते हुए किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयार है। लेकिन असली चिंता इस बात की है कि पाकिस्तान बांग्लादेश की सांस्कृतिक आत्मा को खत्म करने के लिए योजनाबद्ध तरीके से काम कर रहा है।

भारत से रिश्तों को खत्म करने की साज़िश

बांग्लादेश के आम नागरिक भारत को एक मित्र देश मानते हैं। वे शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और व्यापार के लिए भारत का रुख करते हैं। बंगाल (विशेषकर पश्चिम बंगाल) और बांग्लादेश के बीच गहरे सांस्कृतिक और भाषाई रिश्ते हैं। पाकिस्तान चाहता है कि यह सब खत्म हो और बांग्लादेशी नागरिकों की सोच भी पाकिस्तान जैसी हो जाए यानी भारत से नफरत करने वाली।

क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा

ISI और जमात की यह सांस्कृतिक और वैचारिक साज़िश पूरे दक्षिण एशिया के लिए गंभीर खतरा है। अधिकारी चेतावनी दे रहे हैं कि यदि बांग्लादेश पूरी तरह से कट्टरपंथ की ओर चला गया, तो युवा शिक्षा और रोज़गार की जगह आतंक की राह चुन सकते हैं।

IANS इनपुट के साथ

1 / 5
Your Score0/ 5
Shivam Srivastava

Shivam Srivastava

Mail ID - [email protected]

Shivam Srivastava is a multimedia journalist.

Next Story

AI Assistant

Online

👋 Welcome!

I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!