भारत के गले का फंदा बना पाकिस्तान! अंतरराष्ट्रीय मंच पर सबसे बड़ा मज़ाक? UNSC की कुर्सी पर आतंक का सौदागर, भारत के लिए बड़ा खतरा

Pakistan UNSC president: पाकिस्तान पहले ही चाल चल चुका है। UN में उसके प्रतिनिधि असीम इफ्तिखार अहमद ने जुलाई की शुरुआत के साथ ही कश्मीर का मुद्दा उठा दिया है। यानी भारत के आंतरिक मामलों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर लाकर एक बार फिर ज़हर फैलाने की कोशिश शुरू।

Harsh Srivastava
Published on: 2 July 2025 5:21 PM IST
भारत के गले का फंदा बना पाकिस्तान! अंतरराष्ट्रीय मंच पर सबसे बड़ा मज़ाक? UNSC की कुर्सी पर आतंक का सौदागर, भारत के लिए बड़ा खतरा
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Pakistan UNSC president: जुलाई 2025 की शुरुआत के साथ ही पाकिस्तान अब दुनिया की सबसे ताकतवर कूटनीतिक संस्था यूनाइटेड नेशन्स सिक्योरिटी काउंसिल (UNSC) का प्रेसिडेंट बन चुका है। जी हां, वही पाकिस्तान जो खुद आतंकवाद की फैक्ट्री, आर्थिक दिवालिएपन, और राजनीतिक अस्थिरता के लिए कुख्यात है—अब संयुक्त राष्ट्र के सबसे ताकतवर मंच की अध्यक्षता कर रहा है, भले ही सिर्फ एक महीने के लिए। कई लोग कहेंगे कि ये तो रोटेशनल प्रक्रिया है, सिर्फ औपचारिक पद है… लेकिन क्या वाकई ये सिर्फ प्रतीकात्मक है? या फिर पाकिस्तान जैसे देश के लिए ये कुर्सी एक ऐसा झूठ का माइक्रोफोन बन चुकी है, जिससे वो दुनिया को गुमराह करने की पूरी तैयारी में है?

UNSC की वो कुर्सी, जिससे होती है जंग और अमन की घोषणा…

यूएन सिक्योरिटी काउंसिल यानी UNSC… संयुक्त राष्ट्र की सबसे ताकतवर संस्था… जिसका काम है अंतरराष्ट्रीय शांति बनाए रखना, युद्ध रोकना, और अगर ज़रूरत पड़े तो सैन्य कार्रवाई या आर्थिक प्रतिबंध तक लागू करना। 15 सदस्य होते हैं इसमें—5 स्थायी, जिनके पास वीटो पावर है (अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन) और 10 अस्थायी, जो हर दो साल में बदलते हैं। हर महीने इनमें से एक देश को अध्यक्षता दी जाती है, अंग्रेजी वर्णमाला के हिसाब से। और इस बार, पाकिस्तान की बारी है।

अब अध्यक्ष देश का काम होता है:

मीटिंग्स का एजेंडा तय करना

प्रेसिडेंशियल स्टेटमेंट जारी करना

मीडिया से बात करना

आपात बैठकें बुलाना

और सबसे अहम—UNSC की आवाज़ बनना

मतलब पाकिस्तान जुलाई महीने में दुनिया की आंख और जुबान दोनों बनने वाला है।

कश्मीर से सिंधु तक—UNSC के मंच से ज़हर उगलने की खुली छूट?

पाकिस्तान पहले ही चाल चल चुका है। UN में उसके प्रतिनिधि असीम इफ्तिखार अहमद ने जुलाई की शुरुआत के साथ ही कश्मीर का मुद्दा उठा दिया है। यानी भारत के आंतरिक मामलों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर लाकर एक बार फिर ज़हर फैलाने की कोशिश शुरू। और यही नहीं, अब जब भारत ने सिंधु जल संधि को तोड़ा है, और कश्मीर में आतंकी हमलों के बाद कड़ा रुख अपनाया है, तो पाकिस्तान अब उसी मंच से “पीड़ित” का नकाब पहनकर दुनिया के सामने रोने की स्क्रिप्ट लिख चुका है। कूटनीतिक चाल का असली मकसद साफ है—दुनिया की सहानुभूति बटोरो, भारत के खिलाफ झूठ फैलाओ, और अपने अंदरूनी घावों को छुपाओ।

सिर्फ एजेंडा नहीं, 'नैरेटिव' भी हड़पने की कोशिश!

UNSC प्रेसिडेंट होने का मतलब सिर्फ मीटिंग्स चलाना नहीं होता—बल्कि ये तय करना भी होता है कि किस मुद्दे को कितना तवज्जो दी जाए। पाकिस्तान इसे बखूबी जानता है। वो आतंकवाद, अफगानिस्तान, या उइगर मुसलमानों के मुद्दे को हाशिए पर रखकर कश्मीर, भारत की सर्जिकल स्ट्राइक, या संघीय मामलों को फोकस में लाकर दुनिया की राय बदलना चाहता है। मीडिया पर भी इस एक महीने में उसी की पकड़ रहेगी—हर प्रेस रिलीज, हर ब्रीफिंग, हर फोटो-ऑप में पाकिस्तान के चेहरे पर अंतरराष्ट्रीय वैधता का झूठा मास्क चिपका होगा।

क्या UNSC की अध्यक्षता से पाकिस्तान कोई बड़ा फैसला ले सकता है?

यह बात सही है कि पाकिस्तान अकेले कोई फैसला नहीं कर सकता। UNSC में हर प्रस्ताव के लिए बहुमत चाहिए और बड़े मसलों पर पांचों स्थायी सदस्यों की सहमति भी ज़रूरी होती है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि प्रेसिडेंसी बेअसर है। ये मौका है, एक ग्लोबल नैरेटिव सेट करने का। ये मौका है, खुद को “अमन का पक्षधर” दिखाने का, जबकि हकीकत ये है कि वो खुद अपने ही मुल्क को नहीं संभाल पा रहा।

भारत कितना चिंतित हो? क्या वाकई ये खतरनाक है?

भारत को लेकर पाकिस्तान की बयानबाज़ी नई नहीं है। UNSC में इससे पहले भी पाकिस्तान ने कश्मीर का मुद्दा छेड़ा, लेकिन उसे हर बार मुंह की खानी पड़ी। इस बार भी अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन जैसे देश भारत के करीब हैं। चीन भले ही पाकिस्तान का दोस्त हो, लेकिन अब वह भी अपनी आंतरिक समस्याओं और अंतरराष्ट्रीय आलोचना के चलते कश्मीर पर मुखर नहीं हो रहा। भारत ने हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर जैसे साहसी कदम उठाकर दुनिया में अपना कद और भरोसेमंद छवि बनाई है। ऐसे में पाकिस्तान के झूठ और मंचीय ड्रामे का असर संयुक्त राष्ट्र के दायरे से बाहर शायद ही निकल पाए।

UNSC की कुर्सी पाकिस्तान के लिए वैधता नहीं, विडंबना है!

जिस देश में आतंक के सरगनाओं को राजनीतिक संरक्षण मिलता है, जहां अल्पसंख्यकों की हत्या, पत्रकारों का गला घोंटना और लोकतंत्र का मज़ाक बन चुका है— जब वही देश दुनिया को “शांति” और “सुरक्षा” का पाठ पढ़ाए, तो वो स्थिति इतिहास की सबसे बड़ी विडंबना बन जाती है। पाकिस्तान सातवीं बार UNSC का अध्यक्ष बना है। और हर बार उसने कश्मीर का राग अलापा है, लेकिन कभी विश्व समुदाय ने उसे गंभीरता से नहीं लिया। इस बार भी वैसा ही होगा—लेकिन एक महीने के लिए दुनिया को बहुत कुछ सहना होगा। अंतरराष्ट्रीय मंच पर ये एक ‘शॉर्ट टर्म थ्रेट’ ज़रूर है, लेकिन इससे निकली सीखें लंबी होंगी।

भारत को चाहिए कि वो अपने राजनयिकों के ज़रिए इस झूठ का पर्दाफाश करे, अपने मित्र देशों के साथ सामंजस्य बनाए रखे और पाकिस्तान के इस “पाखंडी प्रेसिडेंसी शो” को उसी की भाषा में एक्सपोज़ करे। क्योंकि आखिर में, सच और झूठ की लड़ाई में जीत हमेशा उसी की होती है—जो खड़ा रहता है, डटा रहता है, और झूठ को ध्वस्त करने का माद्दा रखता है। तो हां, पाकिस्तान UNSC का अध्यक्ष बना है—लेकिन उसकी असली कुर्सी आज भी झूठ, डर और आतंक के दलदल में धंसी हुई है। और यही सच दुनिया को याद दिलाना है… बार-बार!

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Harsh Shrivastava is an enthusiastic journalist who has been actively writing content for the past one year. He has a special interest in crime, politics and entertainment news. With his deep understanding and research approach, he strives to uncover ground realities and deliver accurate information to readers. His articles reflect objectivity and factual analysis, which make him a credible journalist.

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