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BRICS Summit: वैश्विक संस्थाओं पर PM Modi ने उठाये सवाल, बोले- ग्लोबल साउथ हो रहा दोहरे मापदंडों का शिकार
BRICS Summit: ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी ने वैश्विक संस्थाओं की निष्क्रियता और ग्लोबल साउथ के साथ हो रहे दोहरे रवैये पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि भारत मानवता को प्राथमिकता देता है और ब्रिक्स के विस्तार से संगठन की लचीलापन और प्रासंगिकता साबित होती है।
BRICS Summit: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रियो डी जेनेरियो में चल रहे 17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान विकास, संसाधनों और सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर ग्लोबल साउथ के साथ होने वाले भेदभाव पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि दक्षिणी देशों को लंबे समय से दोहरे मानकों का सामना करना पड़ रहा है और वैश्विक मंचों पर उनके हितों को गंभीरता से नहीं लिया जाता।
पीएम मोदी ने ज़ोर दिया कि भारत ब्रिक्स के हर मुद्दे पर सकारात्मक और रचनात्मक योगदान देने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि भारत हमेशा अपने हितों से ऊपर उठकर मानवता की सेवा को प्राथमिकता देता आया है।
ब्रिक्स विस्तार पर पीएम मोदी का समर्थन
ब्रिक्स के विस्तार को लेकर पीएम मोदी ने कहा कि नए सदस्य देशों का जुड़ना इस बात का प्रमाण है कि संगठन समय के साथ खुद को ढालने की क्षमता रखता है। मूल रूप से ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका से बने इस समूह में अब मिस्र, इथियोपिया, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात और 2025 में इंडोनेशिया को भी जोड़ा गया है।
फैमिली फोटो में दिखी एकता की झलक
सम्मेलन के दौरान पीएम मोदी ने अन्य सदस्य देशों के नेताओं के साथ पारंपरिक फैमिली फोटो सेशन में भी हिस्सा लिया। इस प्रतीकात्मक क्षण में ब्राजील के राष्ट्रपति लूला दा सिल्वा, दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा समेत अन्य देशों के प्रतिनिधि मौजूद रहे। जो ब्रिक्स के भीतर आपसी सहयोग और विश्वास को दर्शाता है।
पुरानी वैश्विक संस्थाओं पर उठाये सवाल
अपने संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि 20वीं सदी में बनी वैश्विक संस्थाएं आज की जटिल चुनौतियों से निपटने में असमर्थ साबित हो रही हैं। चाहे महामारी हो, क्षेत्रीय संघर्ष, आर्थिक अस्थिरता या साइबर खतरों की बात हो। इन संस्थाओं के पास न तो स्पष्ट दिशा है और न ही प्रभावी समाधान।
तकनीक के युग में बदलाव जरूरी
पीएम मोदी ने कहा, “यह स्वीकार नहीं किया जा सकता कि जहां टेक्नोलॉजी हर हफ्ते अपडेट हो रही है। वैश्विक संस्थाएं 80 वर्षों से वहीं स्थिर बनी हुई हैं। बीसवीं सदी के टाइपराइटर से इक्कीसवीं सदी के डिजिटल सॉफ्टवेयर को नहीं चलाया जा सकता।
जलवायु और सतत विकास पर वैश्विक दक्षिण की अनदेखी
प्रधानमंत्री ने जलवायु वित्त, सतत विकास और टेक्नोलॉजी तक पहुंच जैसे मुद्दों पर वैश्विक दक्षिण की उपेक्षा की भी आलोचना की। उन्होंने कहा कि इन देशों को अक्सर सिर्फ औपचारिक आश्वासन मिलते हैं लेकिन ठोस सहयोग की कमी है।
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