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तालिबान विदेश मंत्री मुत्तकी के भारत दौरे ने उड़ाई Pak की नींद, ट्रंप को भी दी खुली चुनौती
तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी के भारत दौरे ने पाकिस्तान और अमेरिका में हलचल मचा दी है। मुत्तकी की जयशंकर से मुलाकात और बगराम एयरबेस मुद्दे पर भारत के रुख ने ट्रंप को खुली चुनौती दी है। यह दौरा दक्षिण एशिया की कूटनीति में बड़ा बदलाव माना जा रहा है।
Taliban foreign minister India visit: अफगानिस्तान की राजनीति में एक ऐसा अकल्पनीय मोड़ आया है, जिसने पाकिस्तान के हुक्मरानों और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेचैनी को सातवें आसमान पर पहुँचा दिया है। तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी इस समय एक हफ्ते के भारत दौरे पर हैं, और उनकी इस यात्रा ने वैश्विक कूटनीति के समीकरणों को हिलाकर रख दिया है। मुत्तकी का भारत दौरा इस समय दुनियाभर में सबसे चर्चित विषय बना हुआ है। एक तरफ जहाँ मुत्तकी, भारत के विदेश मंत्री जयशंकर से मुलाकात करेंगे और ताजमहल तथा देवबंद के दारुल उलूम मदरसे का भी दौरा करेंगे, वहीं दूसरी ओर उनकी इस यात्रा से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ और सैन्य प्रमुख आसिम मुनीर घबराए हुए हैं, और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टेंशन भी चरम पर है। लेकिन सवाल यह है कि आखिर तालिबान के विदेश मंत्री के भारत दौरे से आसिम मुनीर, शहबाज़ शरीफ और डोनाल्ड ट्रंप क्यों इतना परेशान हैं? इसका जवाब बगराम एयरबेस और पाकिस्तान की आतंकी राजनीति से जुड़ा हुआ है।
डोनाल्ड ट्रंप को सीधी 'आँख' दिखाने जैसा कदम!
तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी सीधे रूस की यात्रा से भारत पहुँचे हैं। इस दौरे का समय और संदर्भ दोनों ही डोनाल्ड ट्रंप के लिए एक बड़ा झटका है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि भारत ने हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की उस योजना का सख्त विरोध किया है, जिसमें उन्होंने अफगानिस्तान से बगराम एयरबेस को वापस लेने की बात कही थी। बगराम एयरबेस के मुद्दे पर तालिबान को पाकिस्तान, चीन, रूस और भारत समेत कुल 9 देशों का एक साथ समर्थन मिला है, जो सीधे तौर पर डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ खड़े हो गए हैं। ट्रंप बार-बार यही कह रहे हैं कि उन्हें अफगानिस्तान का बगराम एयरबेस किसी भी कीमत पर वापस चाहिए। ट्रंप ने 18 सितंबर को ब्रिटिश पीएम किएर स्टार्मर के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी कहा था, "हमने बगराम तालिबान को मुफ्त में दे दिया, अब हम इसे वापस लेंगे।" ऐसे में, तालिबानी विदेश मंत्री का भारत आना और भारत का बगराम एयरबेस पर तालिबान का समर्थन करना, सीधे-सीधे डोनाल्ड ट्रंप को खुली चुनौती देने जैसा है।
बगराम एयरबेस पर ट्रंप की जिद क्यों?
बगराम एयरबेस अफगानिस्तान का सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण सैन्य ठिकाना रहा है। इसकी रणनीतिक अहमियत ही ट्रंप की जिद का कारण है।यह अफगानिस्तान के बीचों-बीच स्थित है, जहाँ से पूरे देश में सैन्य ऑपरेशन आसानी से चलाए जा सकते थे। साल 2001 में तालिबान शासन गिरने के बाद अमेरिका और नाटो सेनाओं ने बगराम को अपना सबसे बड़ा बेस बनाया था। यहीं से अफगानिस्तान में आतंकवाद विरोधी और सैन्य अभियान चलते थे। ट्रंप बगराम एयरबेस से चीन की गतिविधियों पर सीधी निगरानी रखना चाहते हैं, क्योंकि यह चीन की पश्चिमी सीमा के नजदीक है। इसके अलावा, ट्रंप की निगाहें अफगानिस्तान के खनिज संसाधनों तक पहुँचने पर भी हैं। साल 2021 में अमेरिकी सेना ने जब अचानक बगराम को खाली किया, तो इसे तालिबान की बहुत बड़ी जीत माना गया। ट्रंप, जो बाइडेन सरकार के इस फैसले की कड़ी आलोचना करते हैं, कहते हैं कि वह होते तो कभी बगराम को नहीं छोड़ते। हालांकि, मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी अधिकारियों ने कहा है कि बगराम को दोबारा लेना आसान नहीं होगा, इसके लिए 10 हजार से ज्यादा सैनिकों की जरूरत होगी।
मुत्तकी का दौरा: पाकिस्तान को 'बड़ा झटका'
तालिबान के विदेश मंत्री मुत्तकी की भारत यात्रा से पाकिस्तान के सैन्य और राजनीतिक नेतृत्व को सबसे ज्यादा झटका लगा है। अमीर खान मुत्तकी वही हैं, जिन्होंने हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले की निंदा की थी। इसके कुछ ही दिनों बाद मई महीने में भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर और मुत्तकी के बीच फोन पर बात हुई और अब पाँच महीने बाद दोनों की दिल्ली में मुलाकात हो रही है। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख़्वाजा आसिफ ने भी तालिबानी विदेश मंत्री के भारत दौरे पर साफ कहा है कि अफगानिस्तान के साथ पाकिस्तान के रिश्ते हमेशा से 'खट्टे और कड़वे रहे हैं' जो अब और खराब हो चुके हैं। आसिम मुनीर, शहबाज शरीफ और पाकिस्तान में बैठे आतंक के आकाओं को भारत और तालिबान की बढ़ती नजदीकियाँ रास नहीं आ रही हैं, क्योंकि पाकिस्तान को डर है कि भारत के आतंक पर लगाम लगाने के प्रयासों में अब तालिबान सहयोग कर सकता है। फिलहाल, भारत ने तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है, और मुत्तकी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में प्रतिबंधित आतंकवादियों की लिस्ट में शामिल होने के कारण विशेष छूट लेकर भारत आए हैं। लेकिन, रूस से सीधे भारत आना और कूटनीतिक मुलाकातें करना यह साबित करता है कि अफगानिस्तान के मामले में भारत की भूमिका को अब न तो ट्रंप नजरअंदाज कर सकते हैं, और न ही पाकिस्तान। यह दौरा भारत की क्षेत्रीय कूटनीति की बड़ी जीत माना जा रहा है।
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