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पाकिस्तानी डीपस्टेट की देन है ‘टीआरएफ’, जानिए इसके बारे में सब कुछ
TRF terrorist group exposed: पाकिस्तानी डीप स्टेट के इशारों पर बना आतंकी संगठन टीआरएफ अब बेनकाब हो गया है। अमेरिका ने इसे विदेशी आतंकी संगठन घोषित कर भारत की कूटनीति को बड़ी सफलता दिलाई है।
TRF terrorist group exposed: पहलगाम में 26 निर्दोष लोगों की ह्त्या करने वाले पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठन ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (टीआरएफ) को अमेरिका ने विदेशी आतंकी संगठन घोषित किया है। साथ ही टीआरएफ और उससे जुड़े कई प्रमुख व्यक्तियों और संस्थाओं पर कड़े प्रतिबंध लगाए गए हैं। अमेरिका की कारवाई भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक सफलता है। टीआरएफ और कुछ नहीं बल्कि आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का एक मुखौटा है जिसका एक ही मकसद है - भारत में अस्थिरता फैलाना। लश्कर, जैश जैसे आतंकी संगठनों की तरह टीआरएफ भी पाकिस्तान के डीप स्टेट यानी वहां की सेना, आईएसआई और कट्टरपंथी धार्मिक दलों की ही एक रणनीतिक उपज है।
क्या है टीआरएफ?
टीआरएफ की स्थापना अक्टूबर 2019 में तब हुई थी जब भारत ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाकर उसका विशेष दर्जा खत्म किया था। लश्कर-ए-तैयबा ने इस मौके का इस्तेमाल करते हुए टीआरएफ नाम से एक फ्रंट संगठन बनाया और मीडिया रणनीति के तहत इसे लोकल प्रतिरोध के आंदोलन के नाम पर पेश किया। लश्कर का मकसद था जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को आंतरिक विद्रोह का जामा पहनाना और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गुमराह। इसी रणनीति के तहत टीआरएफ ने कई बार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर वीडियो, पोस्ट और घोषणाएं जारी कर खुद को कश्मीरी युवाओं की 'आवाज' बताया है। लेकिन जमीनी स्तर पर इसकी हरकतें लश्कर और हिजबुल जैसे कट्टर इस्लामी आतंकी संगठनों जैसी ही रहीं हैं।
टीआरएफ का नेटवर्क और पाकिस्तान का दोगलापन
टीआरएफ खुद को एक स्वतंत्र संगठन बताता है, लेकिन इसके कमांडर शौकत शेख, शाहिद-उल-इस्लाम और बाकियों की लोकेशन पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में मुजफ्फराबाद, मीरपुर और रावलकोट में ट्रैक की गई है। मोबाइल सिग्नल, इंटरनेट ट्रैफिक और सोशल मीडिया गतिविधियाँ सीधे पाकिस्तानी सर्वर से जुड़ी पाई गईं। इस गुट की फंडिंग सीधे लश्कर या आईएसआई से जुड़ी मिली है। टीआरएफ के सोशल मीडिया हैंडल्स और प्रचार सामग्री आईएसआई द्वारा नियंत्रित डार्क वेब पोर्टल्स, टेलीग्राम चैनलों और मीडियाकर्मी फ्रंट्स से प्रचारित होती रही है।
टीआरएफ का इतिहास अब तक कई घातक हमलों से जुड़ा रहा है।
- 2020 में केरन और हंदवाड़ा में हमले, जिनमें सेना के अफसरों समेत कई जवान शहीद हुए थे।
- 2022 में श्रीनगर में कश्मीरी पंडितों और प्रवासी मजदूरों पर हमले किये गए।
- 2024 में रियासी में ट्रक में विस्फोट कर मजदूरों को निशाना बनाया गया।
- 2025 में 22 अप्रैल को पहलगाम में हमला किया गया और 26 लोगों की हत्या कर दी गयी।
अमेरिका की कार्रवाई
अमेरिका की ओर से टीआरएफ को आतंकी संगठन घोषित करना कोई कागजी खानापूरी नहीं बल्कि इसके दूरगामी नतीजे होंगे जो टीआरएफ की फंडिंग को सीधे सीधे प्रभावित करेंगे। अमेरिकी कार्रवाई के तहत टीआरएफ और उससे जुड़ी संपत्तियों को अमेरिका में जब्त किया जा सकता है, अमेरिकी नागरिकों को टीआरएफ से किसी भी तरह का लेन-देन करने की इजाजत नहीं होगी, जिन लोगों या संस्थाओं के टीआरएफ से संबंध होंगे उन्हें भी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा। भारत लगातार संयुक्त राष्ट्र और एफएटीएफ यानी फाइनेंशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स जैसे मंचों पर टीआरएफ को ग्लोबल आतंकी संगठन घोषित करने की मांग करता रहा है। 2025 की शुरुआत में भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में टीआरएफ के खिलाफ एक प्रस्ताव भी पेश किया था। अमेरिका के फैसले के बाद अब मुमकिन है कि यूरोपियन यूनियन और यूनाइटेड किंगडम जैसे देश भी इस दिशा में ठोस कदम उठाएं।
पाकिस्तानी डीप स्टेट का समर्थन
जब जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया। उसी समय आईएसआई ने लश्कर और हिजबुल जैसे संगठनों पर अंतरराष्ट्रीय दबाव को देखते हुए एक "लोकल विद्रोह" जैसा नकली संगठन खड़ा किया ताकि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के आंतरिक असंतोष का नैरेटिव थोपा जा सके। सच्चाई है कि पाकिस्तानी सेना लंबे समय से लश्कर, जैश-ए-मोहम्मद और हिजबुल जैसे संगठनों को रणनीतिक औजार मानती रही है। टीआरएफ भी इसी नीति की नई कड़ी है, जहां सेना प्रॉक्सी वॉर के तहत ऑपरेट करती है। सुरक्षा एजेंसियों की रिपोर्ट के अनुसार टीआरएफ के आतंकियों को पाकिस्तानी सेना बाकायदा ट्रेनिंग देती है। ये भी पता चला है कि टीआरएफ के आतंकियों को एलओसी पार कराने, उन्हें हथियार देने और आतंकी लॉन्चपैड बनाए रखने में भी पाक सेना की भूमिका रही है।
पाकिस्तान के जमात-ए-इस्लामी जैसे कई कट्टर धार्मिक गुटों ने टीआरएफ जैसे संगठनों को नैतिक समर्थन दिया है। जमात कश्मीर को लेकर बेहद कट्टर रुख रखता है। इसके अलावा पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ और पीएमएल (नवाज) टीआरएफ के नैरेटिव को समर्थन देते रहे हैं। जहाँ तक पाकिस्तान सरकार की बात है तो भारत में टीआरएफ की हरकतों पर उसकी चुप्पी और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर टीआरएफ को लोकल एक्टिविस्ट बताना साफ़ संकेत है कि पाकिस्तान की हुकूमत का रुख क्या है।
टीआरएफ की फंडिंग पाकिस्तान में स्थित दावात-ए-इस्लामी और अन्य कट्टरपंथी मदरसों के जरिये होती रही है। इस संगठन को हवाला नेटवर्क, क्रिप्टोकरेंसी चैनल्स और फर्जी कंपनियों के जरिए फंडिंग हुई है तथा आईएसआई के वित्तीय विंग ने इस संगठन को विदेशी डोनेशन, खाड़ी देशों में काम कर रहे पाकिस्तानी नागरिकों जैसे चैनलों से फंडिंग की है। टीआरएफ से पहले अमेरिका ने यमन के अंसार अल्लाह (हूथी), ईरान के इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स तथा कुद्स फ़ोर्स, लश्कर-ए-तैयबा, हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी जैसे संगठनों को आतंकवादी घोषित करके उन पर प्रतिबन्ध लगा चुका है।
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