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श्राद्ध कहां करना चाहिए, पितरों की मुक्ति, शांति और तृप्ति के लिए कौन सा स्थान सही?
Shradh Kaha Kare: पितृपक्ष चल रहा है इसमें तर्पन पिंडदान का महत्व है श्राद्ध कहां और कब करना श्रेष्ठ है। जानते हैं घर बाहर तीर्थ स्थान कहां करना चाहिए श्राद्ध, पिंडदान का महत्व, और धार्मिक मान्यता।
Shradh Kaha Kare: प्रतिपदा श्राद्ध के साथ 15 दिन का पितृपक्ष का आरंभ हो गया है। इस में पितृ मृत्युलोक आते है। इस समय को पितरों की तृप्ति और मुक्ति मानते है है।इस पक्ष में श्रद्धा से प्रसन्न मन से पितरों का तर्पण दान करना ही श्राद्ध है।हर साल के आश्विन मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से लेकर सर्वपितृ अमावस्या पर इसे किया जाता है। कुछ लोग घरों में ही तो कुछ नदी के किनारे और धर्म स्थलों पर श्राद्ध क्रिया करते है। मान्यता है कि श्राद्ध में किया दान और भोजन पितरों तक पहुंचता है। जानते है पितरों का श्राद्ध कब और कहां करे.....
श्राद्ध कब और कहां करे
श्राद्ध क्रिया अपने पूर्वजों की तिथि पर ही की जाती है, अगर तिथि की जानकारी नहीं है तो अमावस्या पर श्राद्ध कर्म कर सकते है। किसी भी पवित्र स्थान पर श्राद्ध क्रिया ब्रह्मणों द्वारा करवाना चाहिए।
कई ऐसे पवित्र तीर्थ स्थान हैं जहां श्राद्ध और पिंडदान करने की परंपरा है। शास्त्रों के अनुसार, श्राद्ध किसी भी पवित्र स्थान, नदी, घर पर विधिपूर्वक किया जाता है। काशी, गया, हरिद्वार और बद्रीनाथ जैसे तीर्थस्थलों की महिमा विशेष है।मान्यता है कि इन तीर्थों पर किया गया श्राद्ध पितरों को मुक्ति प्रदान करता है। सुखद जीवन देता है।
पिशाचमोचन कुंड वाराणसी में श्राद्ध के लिए सर्वश्रेष्ठ
काशी या वाराणसी में पितरों के लिए किये जाने वाले श्राद्ध पूर्वजों को मुक्ति देने वाला है। काशी से पंडित गिरीराज ओझा के अनुसार मणिकर्णिका घाट और पिशाचमोचन कुंड पर श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने का बहुत ज्यादा महत्व है। उनके अनुसार गया के श्राद्ध करने से पहले व्यक्ति को काशी के पिशाचमोचन कुंड पर त्रिपिंडी श्राद्ध करना चाहिए। मान्यता है कि यहां पर श्राद्ध करने पर दिवंगत आत्मा को शिवलोक की प्राप्ति होती है। इसे पितृकुंड, मातृकुंड और विमल तीर्थ भी कहते हैं। वाराणसी में श्राद्ध से भटकती आत्मा को शांति और मुक्ति मिलती है।
मुक्ति का सबसे बड़ा तीर्थ-गया
गया से पंडित हरेंद्र तिवारी के अनुसार, पितरों की मुक्ति के लिए गया को श्राद्ध के लिए बहुत ज्यादा फलदायी माना गया है। सनातन परंपरा में इसे पितरों का सबसे बड़ा तीर्थ माना जाता है। मान्यता है कि यदि कोई व्यक्ति पितृपक्ष में फल्गु नदी के किनारे विष्णुपद मंदिर में अपने पितरों का नाम, गोत्र आदि के साथ श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करता है तो उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसी कारण से इस पवित्र स्थल को मुक्तिधाम भी कहते हैं. हिंदू मान्यता के अनुसार गया में किया श्राद्ध सात पीढ़ियों का उद्धार करता है।
हरिद्वार और बद्रीनाथ में श्राद्ध
हरिद्वार में श्राद्ध किया जाता है। यहां हर की पौड़ी के पास स्थित कुशावर्त घाट पर श्राद्ध कराने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। जिनके पितर प्रेत योनि को प्राप्त होकर कष्ट का कारण बनने लगते हैं, उनकी मुक्ति के लिए नारायण शिला में श्राद्ध किया जाता है। बद्रीनाथ के ब्रह्मकपाल घाट पर पिंडदान करने का महत्व है। मान्यता है कि भगवान शिव को इस तीर्थ पर ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली थी। बद्रीनाथ के पुजारी बताते हैं कि अपने पितरों का अंतिम श्राद्ध करने के लिए लोग यहां आते हैं। उनके अनुसार बद्रीनाथ में श्राद्ध और तर्पण गया से कई गुना ज्यादा फलदायी माना गया है।
पुष्कर तीर्थ में ब्रह्मा जी का एक मात्र मंदिर है। साथ ही साथ यह तीर्थ स्थान पितरों के लिए श्राद्ध और पिंडदान भी होता है। मान्यता है कि भगवान राम ने अपने पिता का श्राद्ध यहां किया था। पुष्कर के तीर्थ पुरोहितों के अनुसार यहां लोग अपने सात कुल और पांच पीढ़ियों तक का श्राद्ध कर सकते हैं।
इसके अलावा यदि आप किसी विशेष तीर्थ स्थान पर न पहुंच पाएं तो आप गौशाला में, बरगद के पेड़ के नीचे, किसी वन में, किसी पवित्र नदी या समुद्र के किनारे अथवा अपने घर के दक्षिण दिशा में पितरों का श्राद्ध कर सकते हैं। श्राद्ध का अर्थ ही है – श्रद्धा और भक्ति से पितरों को स्मरण करना। शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों का आशीर्वाद परिवार की उन्नति, संतानों की प्रगति और जीवन की समृद्धि में सहायक होता है।
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