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चित्रकूट के घाट पर - मिले थे रघुवीर,जानते है कैसे तुलसीदास जी की सहज भक्ति से घर-घर पहुंचे राम?
Tulsidas Jayanti Special तुलसीदास जी की आज जयंती है। जानते है कैसे रामबोला से तुलसीदास बने और कालजयी रामचरित्र मानस की रचना की जो आज भी घर घर में रामभक्ति की अलख जगा रहा है।
TulsiDas Jayanti Special: तुलसी दास जयंती पर जानता है कैसे बने रामबोला से तुलसी दास । राम चरित मानस के रचयिता महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी का आज ही के दिन श्रावण माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर प्राचीन काल में तुलसीदास जी का जन्म हुआ था उन्होंने काशी में अंतिम सांस ली थी। उन्हें हिंदी साहित्य का प्रथम कवि माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि उन्हें एक प्रेत ने भगवान हनुमान का पता बताया था। बाद में प्रेत और हनुमान जी के सहयोग से ही तुलसीदास जी को भगवान राम के साक्षात् दर्शन हो पाए थे।
तुलसी दास जन्म से 32 दांत
उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में राजापुर नामक ग्राम में तुलसीदास जी का जन्म संवत 1589 को हुआ था। इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे तथा माता का नाम हुलसी था। तुलसीदास का जन्म मूल नक्षत्र में एक ब्राह्राण परिवार में हुआ था। ऐसी मान्यता है कि तुलसीदास अपनी माता के गर्भ में 12 महीने तक रहने के कारण काफी हष्ट-पुष्ट थे। जन्म के समय में इनके मुख में 32 दांत थे।
ऐसा कहा जाता है कि जन्म लेने के साथ इन्होंने राम शब्द का उच्चारण किया था जिससे इनका नाम रामबोला पड़ गया था। बचपन से ही तुलसीदास जी का मन पूजा पाठ में ज्यादा लगता है।इनकी छोटी उम्र को देख तब उनके घर में किसी को भी इस बात का तनिक भी आभास होता था कि कि एक दिन वे भगवान राम के बहुत बड़े भक्त बनेंगे। उम्र बढ़ने के साथ ही राम के प्रति उनकी आस्था बढ़ती गई।
तुलसीदास जी ने अपने बाल्यकाल में से ही अनेक दुख उठाए। जब वे युवा हुए तो उनका विवाह रत्नावली नाम की कन्या से हुआ, अपनी पत्नी रत्नावली से इन्हें अत्यधिक प्रेम था लेकिन अपने इसी प्रेम के कारण उन्हें एक बार अपनी पत्नी रत्नावली की फटकार भी सुननी पड़ी थी। रत्नावली ने उन्हें फटकारते हुए कहा था कि
"लाज न आई आपको दौरे आए हु नाथ" अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति ता।
नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत बीता।।
रत्नावली के शब्द बाण की तरह लगें और तुलसीदास जी के जीवन की दिशा ही बदल दी और तुलसी जी, राम जी की भक्ति में ऐसे डूबे किफिर अंत तक राम भक्त ही बने रहें।कुछ दिन बाद इन्होंने फिर गुरु बाबा नरहरिदास जी से दीक्षा प्राप्त की। तुलसीदास जी का अधिकांश जीवन चित्रकूट, काशी और अयोध्या में व्यतीत हुआ। तुलसी दास जी अनेक स्थानों पर भ्रमण करते रहे उन्होंने अनेक कृतियों की रचना की है।
चित्रकूट के घाट पर - मिले थे दर्शन
चित्रकूट के घाट में भई संतन की भीड़...तुलसीदास चंदन घिसैं, तिलक देत रघुवीर...। चित्रकूट का नाम लेते ही यह चौपाई हर रामभक्त के मुख पर आ ही जाती है ।ऐसी मान्यता है कि तुलसीदास को हनुमान, भगवान राम-लक्ष्मण और शिव-पार्वतीजी के साक्षात दर्शन प्राप्त हुए थे। अपनी यात्रा के समय तुलसीदास जी को काशी में एक प्रेत मिला, जिसने उन्हें हनुमानजी का पता बताया। हनुमानजी के दर्शन करने के बाद तुलसीदास ने भगवान राम के दर्शन कराने की प्रार्थना की।इसके बाद उन्हें भगवान राम के दर्शन हुए लेकिन वह भगवान को पहचान नहीं सके। इसके बाद फिर मौनी अमावस्या के दिन पुन: भगवान श्रीराम के दर्शन हुए उन्होंने बालक रूप में आकर तुलसीदास से कहा-"बाबा!
हमें चन्दन चाहिये क्या आप हमें चन्दन दे सकते हैं?"
हनुमान जी ने सोचा, कहीं वे इस बार भी धोखा न खा जायें, इसलिये उन्होंने तोते का रूप धारण कर दोहे में बोलकर इशारा किया।
चित्रकूट के घाट पर, भइ सन्तन की भीर।
तुलसीदास चन्दन घिसें, तिलक देत रघुबीर॥
भगवान राम के दर्शन के बाद सुध-बुध खो बैठे थे, तुलसीदास श्रीराम जी की उस अद्भुत छवि को निहार कर अपने शरीर की सुध-बुध ही भूल गए। भगवान ने स्वयं अपने हाथ से चन्दन लेकर अपने तथा तुलसीदास जी के मस्तक पर लगाया और अन्तर्ध्यान हो गए। गोस्वामी तुलसीदास ने रामभक्ति धारा को ऐसा प्रवाहित किया कि वह धारा आज भी प्रवाहित हो रही है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामभक्ति के द्वारा न केवल अपना ही जीवन सार्थक किया बल्किव श्रीराम के आदर्शों से बांधने का प्रयास किया।
ऐसा कहा जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास अपने आराध्य श्रीराम की दर्शन अयोध्या और काशी में वास किया लेकिन दर्शन चित्रकूट के रामघाट में हुए और वह भी तोता रूप में हनुमान जी की मदद से। यहां के लोगों के बीच प्रचलित है कि रामघाट पर तुलसीदास जी दो बालकों को चंदन का तिलक लगा रहे थे। इसी बीच तोता रूपी हनुमानजी ने चित्रकूट के घाट में भई संतन की भीड़... तुलसीदास चंदन घिसैं, तिलक देत रघुवीर चौपाई गढ़ी थी। उनके मुख से यह चौपाई सुन तुलसीदास ने बालकों के रूप में खड़े भगवान राम और लक्ष्मण को पहचान लिया और भाव विभोर होकर अपने आराध्य के पैरों में गिर गए। तब श्रीराम और लक्ष्मण के साथ हनुमानजी ने वास्तविक रूप में तुलसीदासजी को दर्शन दिए थे।ऐसी मान्यता है कि तुलसीदास ने रामचरित मानस से सात कांडों का लेखन काशी में किया था। फिर भगवान राम के दर्शन के लिए चित्रकूट आ गए थे। मंदाकिनी तट रामघाट में पर्णकुटी के बगल में एक गुफा में निवास स्थान बनाया था। आज यह स्थान तुलसी गुफा के नाम से प्रसिद्ध है। यहीं पर तोतामुखी हनुमान जी का भी मंदिर है।
वाल्मीकि जी की रचना 'रामायण' को आधार मानकर गोस्वामी तुलसीदास ने लोक भाषा में राम कथा की रचना की। रामचरितमानस’ गोस्वामी तुलसीदास जी की कालजयी रचना है। यह वाल्मीकि रामायण का सरल और सरस हिंदी रूपांतरण है, जिसे उन्होंने अवधि भाषा में लिखा ताकि साधारण जन भी भगवान राम की लीलाओं को समझ सकें। तुलसीदास जी संस्कृत भाषा के भी विद्वान थे। अपने जीवनकाल में उन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना की तुलसीदास जी रचित श्री रामचरितमानस को बहुत भक्तिभाव से पढ़ा जाता है, रामचरितमानस जिसमें तुलसीदास जी ने भगवान राम के चरित्र का अत्यंत मनोहर एवं भक्तिपूर्ण चित्रण किया है। कहते हैं कि तुलसीदास जी ने उस समय में समाज में फैली अनेक प्रकार की कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया। वो भक्ति के साथ समाज में फैली बुराई का भी अंत करने का प्रयास करते रहे।
तुलसीदास जी ने अपने जीवन को भगवान श्रीराम की भक्ति में समर्पित कर दिया। वे सगुण रामभक्ति के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं। मान्यता है कि भगवान शिव और माता पार्वती के आशीर्वाद से उन्हें राम दर्शन की अनुभूति हुई। उन्होंने भक्ति को जीवन की सबसे बड़ी साधना माना और अपने लेखन से लोगों को उस पथ पर चलने की प्रेरणा दी। उनकी भक्ति ने उन्हें एक साधारण कवि से संत बना दिया।
नोट : ये जानकारियां धार्मिक आस्था और मान्यताओं पर आधारित हैं। Newstrack.com इसकी पुष्टि नहीं करता है।इसे सामान्य रुचि को ध्यान में रखकर लिखा गया है
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