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China Ban EV Battery: चीन की EV बैटरी टेक्नोलॉजी पर पाबंदी से बड़ा झटका, भारत पर भी खतरा

China's Ban on EV Battery Technology: चीन ने EV बैटरियों और लिथियम प्रोसेसिंग से जुड़ी कुछ अहम तकनीकों के एक्सपोर्ट पर प्रतिबंध लगा दिया है।

Jyotsna Singh
Published on: 20 July 2025 11:49 AM IST
Chinas Ban on EV Battery Technology
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China's Ban on EV Battery Technology (Image Credit-Social Media)

China Ban on EV Battery Technology: क्या EV वाहन की बढ़ जाएंगी कीमतें? दुनियाभर में इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) की मांग तेजी से बढ़ रही है। ग्रीन एनर्जी को बढ़ावा देने और पेट्रोल-डीजल पर निर्भरता कम करने के प्रयासों के बीच, यह सेक्टर जबरदस्त विकास के दौर में है। लेकिन इस रफ्तार को चीन के ताजा फैसले से करारा झटका लग सकता है। चीन ने EV बैटरियों और लिथियम प्रोसेसिंग से जुड़ी कुछ अहम तकनीकों के एक्सपोर्ट पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिससे भारत समेत कई देशों में EV उत्पादन और लागत दोनों प्रभावित हो सकते हैं।

चीन की नई रणनीति तकनीकी पाबंदी के पीछे की सोच

चीन के वाणिज्य मंत्रालय द्वारा जारी किए गए ताजा आदेश के अनुसार, अब EV बैटरियों की कुछ एडवांस मैन्युफैक्चरिंग तकनीकों को तभी विदेश भेजा जा सकेगा, जब इसके लिए चीन सरकार की मंजूरी प्राप्त हो। इससे पहले विदेशी कंपनियां चीन से यह तकनीक सीधे हासिल कर सकती थीं, लेकिन अब लाइसेंसिंग प्रक्रिया अनिवार्य कर दी गई है। इसका सीधा असर उन कंपनियों पर पड़ेगा, जो चीन की तकनीक पर निर्भर हैं या जिनके पास इस तकनीक का कोई वैकल्पिक स्रोत नहीं है।

चीन की पिछली तकनीकी पाबंदियों का इतिहास

यह पहली बार नहीं है जब चीन ने किसी तकनीक या संसाधन के निर्यात पर पाबंदी लगाई हो। इससे पहले भी वह रेयर अर्थ मटेरियल्स और मैग्नेट्स के एक्सपोर्ट पर प्रतिबंध लगा चुका है, जिनका उपयोग इलेक्ट्रिक वाहनों, हाई-टेक इलेक्ट्रॉनिक्स और डिफेंस उपकरणों में किया जाता है। चीन की यह नीति उसकी वैश्विक वर्चस्व बनाए रखने की रणनीति का हिस्सा मानी जाती है, जिसमें वह तकनीकी और कच्चे माल के मोर्चे पर अपनी पकड़ को मजबूत करता है।

EV बैटरी निर्माण में चीन का वैश्विक दबदबा

दुनियाभर में EV बैटरियों के निर्माण में चीन का वर्चस्व किसी से छुपा नहीं है। रिसर्च फर्म SNE के मुताबिक, वैश्विक बाजार में बिकने वाली बैटरियों में से 67% चीन की कंपनियां बनाती हैं। इसमें CATL, BYD और Gotion जैसी कंपनियां शामिल हैं, जिनमें से CATL टेस्ला समेत कई बड़ी वैश्विक कंपनियों को सप्लाई करती है। CATL के प्लांट जर्मनी, हंगरी और स्पेन में भी मौजूद हैं। वहीं, BYD ने 2024 में टेस्ला को पछाड़ते हुए दुनिया की सबसे बड़ी EV निर्माता कंपनी बनकर नई ऊंचाई हासिल की है।

लिथियम आयरन फॉस्फेट

(LFP) तकनीक पर लगी रोक

इस बार चीन ने विशेष रूप से Lithium Iron Phosphate (LFP) बैटरी की तकनीक के एक्सपोर्ट पर प्रतिबंध लगाया है। LFP बैटरियां इसलिए लोकप्रिय हैं क्योंकि ये सस्ती, जल्दी चार्ज होने वाली और अपेक्षाकृत सुरक्षित होती हैं। 2023 के आंकड़ों के अनुसार, LFP बैटरियों के वैश्विक उत्पादन में चीन की हिस्सेदारी 94% रही है जबकि लिथियम प्रोसेसिंग में 70%। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि इस क्षेत्र पर चीन का लगभग एकाधिकार है और वह इसे किसी भी कीमत पर बनाए रखना चाहता है।

वैश्विक बाजार पर चीन के फैसले का क्या होगा असर

विशेषज्ञों के अनुसार, चीन के इस कदम से वैश्विक EV बैटरी सप्लाई चेन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। अमेरिका, यूरोप और भारत जैसे प्रमुख बाजारों में EV प्रोडक्शन की गति धीमी पड़ सकती है। बैटरी की आपूर्ति में कमी से निर्माण लागत में वृद्धि होगी, जिससे EV की कीमतें भी बढ़ सकती हैं। यह स्थिति उपभोक्ताओं के लिए EV को कम आकर्षक बना सकती है और कंपनियों के विकास योजनाओं पर भी इसका सीधा प्रभाव पड़ सकता है।

भारत के EV उद्योग के लिए नई चुनौती

भारत, जो अभी भी EV टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में चीन पर निर्भर है। इस पाबंदी के कारण विशेष रूप से प्रभावित हो सकता है। EV बैटरी निर्माण के लिए जरूरी तकनीक और कच्चे माल का बड़ा हिस्सा चीन से आता है। इस कारण, भारत में उत्पादन प्रक्रिया में देरी होने की आशंका है। साथ ही, तकनीक के विकल्प तलाशने या खुद के अनुसंधान एवं विकास में निवेश करने से लागत में भी बढ़ोतरी हो सकती है। जिन कंपनियों ने बड़े स्तर पर विस्तार की योजना बनाई थी, उन्हें अब अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है। इसके अलावा, भारत को संभवतः अन्य देशों से महंगी दरों पर बैटरियां या तकनीक आयात करनी पड़ सकती है, जिससे इम्पोर्ट बिल भी बढ़ेगा। हालांकि

भारत सरकार पहले से ही 'मेक इन इंडिया' और 'आत्मनिर्भर भारत' अभियानों के तहत EV सेक्टर को मजबूत करने के प्रयास कर रही है। प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) स्कीम के तहत देश में बैटरी मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा दिया जा रहा है। फेम (FAME) स्कीम के तहत EV खरीद पर सब्सिडी दी जा रही है और गीगा फैक्ट्रीज की स्थापना का काम भी तेजी से चल रहा है। जबकि विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन की तकनीक का विकल्प तैयार करने में अभी भी समय लगेगा क्योंकि इसके लिए न सिर्फ निवेश बल्कि अत्याधुनिक अनुसंधान और तकनीकी विशेषज्ञता की आवश्यकता होगी।

चीन की रणनीतिक सोच और वैश्विक संदेश

चीन इस तकनीकी पाबंदी के जरिए यह संकेत देना चाहता है कि वह वैश्विक सप्लाई चेन में अपनी निर्णायक भूमिका बनाए रखना चाहता है। EV और ग्रीन एनर्जी के क्षेत्र में अपनी तकनीकी बढ़त के बल पर वह वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में खुद को और मजबूत करना चाहता है। यह निर्णय चीन की व्यावसायिक ही नहीं, बल्कि राजनीतिक रणनीति का भी हिस्सा हो सकता है।

अमेरिका और यूरोप की प्रतिक्रिया और तैयारी

अमेरिका और यूरोपीय संघ पहले से ही चीन पर अपनी तकनीकी निर्भरता कम करने के प्रयास कर रहे हैं। अमेरिका ने इन्फ्लेशन रिडक्शन एक्ट (IRA) के तहत ग्रीन टेक्नोलॉजी सेक्टर में भारी निवेश किया है। वहीं, यूरोपीय यूनियन ने बैटरी एलायंस और सप्लाई चेन डाइवर्सिफिकेशन पर काम शुरू किया है। हालांकि, अभी भी चीन की तकनीक और कच्चे माल से पूरी तरह मुक्त होना फिलहाल संभव नहीं दिखता।

चीन की इस पाबंदी के बाद भारत समेत वैश्विक बाजारों के लिए जरूरी हो गया है कि वे अपने प्रयास तेज करें। इसमें तकनीक में निवेश बढ़ाना, वैकल्पिक तकनीक विकसित करना, अन्य देशों के साथ सहयोग को मजबूत करना और स्थानीय अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित करना शामिल है। इसके अलावा, बैटरी रीसाइक्लिंग और वैकल्पिक ऊर्जा तकनीकों पर भी गंभीरता से काम करना जरूरी हो गया है।

चीन की EV बैटरी टेक्नोलॉजी पर एक्सपोर्ट रोक वैश्विक EV बाजार के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। इससे ना केवल उत्पादन प्रक्रिया प्रभावित होगी, बल्कि लागत और मूल्य दोनों में वृद्धि भी तय है। भारत जैसे देशों के लिए यह संकट एक अवसर भी हो सकता है, जहां आत्मनिर्भर बनने के प्रयासों को और तेज किया जा सकता है। वैश्विक प्रतिस्पर्धा में टिके रहने के लिए तकनीकी विकास, रणनीतिक निवेश और समग्र नीति निर्माण की दिशा में ठोस कदम उठाना समय की मांग है।

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