बिहार में 'फ्रीबी' वॉर! मुफ्त में चीज़ें बाटने की NDA-महागठबंधन में लगी रेस, जानिए कौन क्या दे रहा है

Bihar freebie war: बिहार विधानसभा चुनाव में फ्रीबी वॉर तेज हो गई है। एनडीए और महागठबंधन दोनों ही मुफ्त योजनाओं और नकद वादों के जरिए मतदाताओं को लुभाने में जुटे हैं। जानिए, कौन क्या वादा कर रहा है और इससे बिहार की अर्थव्यवस्था पर कितना असर पड़ेगा।

Harsh Srivastava
Published on: 30 Oct 2025 3:50 PM IST
बिहार में फ्रीबी वॉर! मुफ्त में चीज़ें बाटने की NDA-महागठबंधन में लगी रेस, जानिए कौन क्या दे रहा है
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Bihar freebie war: बिहार विधानसभा चुनाव की रणभेरी बजने के साथ ही राज्य की राजनीति में मुफ्त योजनाओं और लोक-लुभावन वादों की बाढ़ आ गई है। सत्ताधारी एनडीए (NDA) गठबंधन हो या विपक्षी महागठबंधन, दोनों ही ने मतदाताओं को लुभाने के लिए अपने राजकोषीय विवेक को ताक पर रखते हुए ऐसी घोषणाएं की हैं, जिन्होंने राजकोषीय विनाश के खतरे को बढ़ा दिया है। अब चुनाव, दीर्घकालिक विकास नीतियों या सार्वजनिक वस्तुओं के प्रावधान से अधिक, त्वरित और प्रत्यक्ष लाभ की प्रतिस्पर्धा बन चुका है। यह वह अल्पकालिक राजनीति है, जहां राजनेता सिर्फ अगले चुनाव को देखते हैं और मतदाता सरकारों पर भरोसा खोकर तुरंत पैसे या मुफ्त वस्तुओं की मांग करते हैं। बिहार में यह प्रवृत्ति न केवल चुनावी समीकरणों को प्रभावित कर रही है, बल्कि राज्य की उभरती अर्थव्यवस्था और युवा आकांक्षाओं के लिए भी एक गंभीर चुनौती है।

सार्वजनिक वस्तुएं: वह जो सरकार को देना चाहिए था

परंपरागत रूप से, सरकारों से यह अपेक्षा की जाती थी कि वे ऐसी सार्वजनिक वस्तुएं प्रदान करें जो किसी भी समाज की नींव होती हैं। इनमें मजबूत सड़कें, पुल, निर्बाध बिजली आपूर्ति, स्वच्छ पानी, कुशल सीवरेज सिस्टम, सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और एक प्रभावी कानून-व्यवस्था शामिल है। इन वस्तुओं के लाभ व्यापक और सकारात्मक बाहरी प्रभाव वाले होते हैं, लेकिन ये लाभ तुरंत दिखाई नहीं देते।

समस्या यहीं से शुरू होती है। जब सरकारों को पता चलता है कि इन दीर्घकालिक, बुनियादी ढांचे के विकास पर खर्च करने से तात्कालिक चुनावी लाभ नहीं मिलते हैं, तो वे आसान रास्ता चुनते हैं। और जब मतदाताओं को लगता है कि सरकारें उन्हें अच्छी शिक्षा या स्वास्थ्य नहीं दे पाएंगी, तो वे अगली सबसे अच्छी चीज़ मांगते हैं: नकद या मुफ्त सामान। इस तरह, राजनीतिक दलों द्वारा अल्पकालिक लाभों पर निर्भरता से बिहार की अर्थव्यवस्था में पिछले दो दशकों में हो रहे सकारात्मक बदलावों को खतरा पैदा होता है।

NDA के वादे: महिला सशक्तिकरण और डीबीटी पर ज़ोर

नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन ने अपनी घोषणाओं में महिला सशक्तिकरण और कल्याणकारी योजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया है, जिनमें से कई को चुनाव से ठीक पहले लागू किया गया है:

मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना (Startup Money): एनडीए सरकार ने विधानसभा चुनाव की घोषणा से कुछ दिन पहले ही 1.2 करोड़ से अधिक महिलाओं के बैंक खातों में 10,000 रुपये प्रत्येक को हस्तांतरित किए हैं। यह राशि स्वयंरोजगार शुरू करने के लिए प्रारंभिक अनुदान (Startup Money) के रूप में दी गई है। इस योजना का मकसद महिला मतदाताओं के एक बड़े वर्ग को सीधा वित्तीय लाभ पहुंचाना और अपनी सरकार के प्रति सकारात्मक माहौल बनाना था। छह महीने बाद समीक्षा के आधार पर ₹2 लाख तक की अतिरिक्त सहायता का भी वादा है।

पेंशन में वृद्धि: एनडीए सरकार ने महिलाओं, दिव्यांगों और बुजुर्गों को मिलने वाली पेंशन राशि 400 रुपये से बढ़ाकर 1,100 रुपये कर दी है, जिससे एक बड़े सामाजिक वर्ग को लाभ मिलेगा।

मुफ्त बिजली की सीमा: एनडीए सरकार ने घरेलू उपभोक्ताओं के लिए 125 यूनिट तक बिजली मुफ़्त करने का ऐलान किया है।

सरकारी कर्मचारियों पर ध्यान: सरकारी कर्मचारियों और योजना से जुड़े कर्मियों (जैसे आशा, आंगनवाड़ी, ममता) के मानदेय में वृद्धि की गई है, जिससे एक बड़े संगठित वर्ग को खुश किया जा सके।

एनडीए के वादे प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) और स्थापित कल्याणकारी योजनाओं की निरंतरता पर अधिक केंद्रित हैं, जो वित्तीय अनुशासन बनाए रखने का दावा करते हैं, हालांकि चुनाव से ठीक पहले बड़े पैमाने पर नकद हस्तांतरण की आलोचना भी हो रही है।

महागठबंधन का 'तेजस्वी प्रण': नौकरी, नकद और मुफ्त बिजली की गारंटी

विपक्षी महागठबंधन, जिसके मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव हैं, ने एक अधिक आक्रामक 'फ्रीबी' रणनीति अपनाई है। उनके वादे सीधे तौर पर युवाओं और महिलाओं की आर्थिक समस्याओं को निशाना बनाते हैं, भले ही इसके लिए राजकोष पर भारी बोझ पड़े:

सरकारी नौकरी की गारंटी: महागठबंधन का सबसे बड़ा और सबसे जोखिम भरा वादा है—राज्य के प्रत्येक परिवार के कम से कम एक सदस्य को सरकारी नौकरी देना। तेजस्वी यादव ने दावा किया है कि सरकार बनने के 20 दिन के भीतर इस संबंध में अधिनियम लाया जाएगा और 20 महीने के भीतर प्रक्रिया पूरी की जाएगी।

महिलाओं को मासिक भत्ता ('माई-बहिन मान योजना'): महागठबंधन ने "योग्य महिलाओं" के बैंक खातों में अगले पाँच वर्षों के लिए 2,500 रुपये प्रति माह जमा करने का वादा किया है, जिसका अर्थ है सालाना 30,000 रुपये। यह वादा सीधे तौर पर एनडीए की ₹10,000 की योजना के जवाब में आया है।

मुफ्त बिजली: महागठबंधन ने प्रत्येक परिवार को 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने का वादा किया है, जो एनडीए के 125 यूनिट के वादे से कहीं अधिक है।

पुरानी पेंशन योजना (OPS) की वापसी: सरकारी कर्मचारियों को लुभाने के लिए पुरानी पेंशन योजना को फिर से लागू करने का वादा किया गया है।

स्वास्थ्य बीमा: 'जन स्वास्थ्य सुरक्षा योजना' के तहत प्रत्येक व्यक्ति को 25 लाख रुपये तक का निःशुल्क स्वास्थ्य बीमा प्रदान करने का भी वादा किया गया है।

संविदाकर्मियों को स्थायी करना: सभी संविदाकर्मियों और आउटसोर्सिंग पर कार्यरत कर्मचारियों को स्थायी करने का वादा किया गया है।

महागठबंधन के वादे, विशेषज्ञों के अनुसार, करीब 33,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ राज्य के खजाने पर डाल सकते हैं।

राजकोषीय विनाश का खतरा और युवा आकांक्षाएं

यह 'फ्रीबी' की होड़ fiscally ruinous (राजकोषीय विनाशकारी) हो सकती है, खासकर बिहार जैसे राज्य के लिए, जो पहले से ही 4 लाख करोड़ रुपये से अधिक के कर्ज में है। यह 33,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त वार्षिक बोझ राज्य के कुल विकास बजट का 81 प्रतिशत है और राज्य के अपने कर राजस्व (Own Tax Revenue) का आधे से अधिक है।

यह प्रवृत्ति बिहार की अर्थव्यवस्था में हो रहे सकारात्मक बदलावों के विपरीत है। पिछले दो दशकों में, राज्य की अर्थव्यवस्था में कृषि की हिस्सेदारी कम हो रही है, जबकि सेवा और निर्माण क्षेत्र लगातार बढ़ रहे हैं। राज्य की औसत आयु (Median Age) 25 वर्ष से कम है। यह युवा आबादी केवल मुफ्त पैसा या बिजली नहीं चाहती; वे रोजगार-सृजन, कौशल विकास केंद्र और उद्योग चाहती है।

राजनीतिक दलों की यह अल्पकालिक सोच बिहार के इस 'आकांक्षापूर्ण वर्ग' (Aspirational Class) को निराश कर सकती है। जब मतदाता देखते हैं कि सरकारें मूलभूत सार्वजनिक सेवाएँ नहीं दे सकतीं, तो वे पैसे मांगते हैं, और राजनेता डीबीटी (Direct Cash Transfers) का उपयोग कर खुश होते हैं। यह एक ऐसा दुष्चक्र है जो आर्थिक बदलाव को बाधित करता है।

दीर्घकालिक दृष्टि ही एकमात्र समाधान

बिहार विकास की एक महत्वपूर्ण राह पर खड़ा है। इसे अल्पकालिक चुनावी लाभ के बजाय एक दीर्घकालिक दृष्टि की आवश्यकता है। एक ऐसा विजन जो उद्योग को आमंत्रित करे, रोजगार के अवसर पैदा करे, और युवा शक्ति को कौशल और शिक्षा से लैस करे। राजनीतिक दलों को राजकोष को दिवालिया करने के बजाय विकास, सुशासन और मजबूत संस्थाओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। केवल एक दीर्घकालिक दृष्टिकोण ही बिहार को गरीबी के चक्र से बाहर निकाल सकता है और इसकी युवा आबादी की आकांक्षाओं को सही दिशा दे सकता है। यह चुनाव, बिहार के राजकोषीय स्वास्थ्य और इसके भविष्य की दिशा तय करने वाला साबित होगा।

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