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ICICI बैंक की पूर्व CEO चंदा कोचर दोषी करार: 64 करोड़ की रिश्वत लेकर वीडियोकॉन को 300 करोड़ का लोन मंजूर करने का आरोप
Loan Scam Exposed: जानिए कैसे एक बड़े बैंक की पूर्व CEO ने वीडियोकॉन को लोन देने के बदले अपने परिवार को दिलाया करोड़ों का फायदा, और क्या कहा ट्रिब्यूनल ने इस 'पावर मिसयूज़' पर।
former ICICI Bank CEO - Chanda Kochhar (Photo - social Media)
Loan Scam Exposed: भारतीय बैंकिंग इतिहास में एक और बड़ा घोटाला सामने आया है। ICICI बैंक की पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) चंदा कोचर को अपीलीय न्यायाधिकरण (Appellate Tribunal) ने दोषी ठहराया है। आरोप है कि उन्होंने वीडियोकॉन ग्रुप को ₹300 करोड़ का लोन मंजूर करने के बदले ₹64 करोड़ की रिश्वत ली। यह फैसला प्रवर्तन निदेशालय (ED) की ओर से पेश किए गए साक्ष्यों और दस्तावेजों के आधार पर आया है, जिसे ट्रिब्यूनल ने पूरी तरह से स्वीकार किया। यह पूरा मामला न केवल नैतिक मूल्यों की अनदेखी को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे ऊंचे पदों पर बैठे लोग सत्ता का दुरुपयोग कर सकते हैं।
कैसे हुआ पूरा मामला उजागर? :
ट्रिब्यूनल के मुताबिक, ICICI बैंक द्वारा वीडियोकॉन समूह को ₹300 करोड़ का लोन अप्रैल 2012 में मंजूर किया गया। लोन मिलने के ठीक एक दिन बाद, वीडियोकॉन की एक सहायक कंपनी SEPL ने ₹64 करोड़ ट्रांसफर किए NuPower Renewables Pvt Ltd (NRPL) को। यह कंपनी चंदा कोचर के पति दीपक कोचर के नियंत्रण में थी। हालांकि दस्तावेजों में यह कंपनी वीडियोकॉन के चेयरमैन वेणुगोपाल धूत के स्वामित्व में दिखाई गई, लेकिन असल नियंत्रण और प्रबंधन दीपक कोचर के हाथ में था।
यह लेन-देन इस तरह से किया गया कि यह आम कारोबारी सौदा लगे, लेकिन जांच एजेंसियों और ट्रिब्यूनल के अनुसार, यह एक ‘quid pro quo’ यानी “बदले में लाभ” का मामला था। एक ओर लोन मंजूर किया गया और दूसरी ओर उस लोन का हिस्सा निजी लाभ के रूप में चंदा कोचर के परिवार को पहुंचाया गया।
ट्रिब्यूनल ने की सख्त टिप्पणी, बैंकिंग नैतिकता पर उठे सवाल :
ट्रिब्यूनल ने स्पष्ट रूप से कहा कि चंदा कोचर ने ICICI बैंक की लोन सैंक्शनिंग कमिटी में रहते हुए अपने पति की बिजनेस डीलिंग्स की जानकारी बैंक से छुपाई। यह स्पष्ट रूप से हितों के टकराव (Conflict of Interest) का मामला बनता है। बैंक के नियमों के अनुसार, किसी भी कर्मचारी या अधिकारी को अपनी निजी या पारिवारिक हितों से जुड़ी कोई जानकारी छुपानी नहीं चाहिए, खासकर तब जब वह निर्णय लेने की स्थिति में हो।
ट्रिब्यूनल ने यह भी कहा कि बैंक की आंतरिक नीतियों और नियमों का घोर उल्लंघन हुआ है। इस प्रक्रिया में पारदर्शिता की भारी कमी रही और चंदा कोचर ने अपने पद का उपयोग व्यक्तिगत लाभ के लिए किया।
पहले दी गई राहत को भी ट्रिब्यूनल ने खारिज किया :
इस केस से जुड़ी एक और बड़ी बात यह रही कि नवंबर 2020 में एक निचली अदालत ने चंदा कोचर और उनके सहयोगियों की ₹78 करोड़ की अटैच की गई संपत्तियों को रिलीज करने का आदेश दिया था। लेकिन अपीलीय न्यायाधिकरण ने इस आदेश को सख्ती से खारिज कर दिया। ट्रिब्यूनल ने कहा कि उस निर्णय में कई जरूरी तथ्यों की अनदेखी की गई और वह रिकॉर्ड के खिलाफ था।
ट्रिब्यूनल ने TOI की रिपोर्ट के हवाले से कहा, “अदालती अधिकारी ने महत्वपूर्ण साक्ष्यों को नजरअंदाज किया और रिकॉर्ड के खिलाफ निष्कर्ष दिए। इसलिए हम उस फैसले को स्वीकार नहीं कर सकते।”
ED के साक्ष्यों को सही माना गया :
ट्रिब्यूनल ने प्रवर्तन निदेशालय की जांच पर पूरी तरह से भरोसा जताया और कहा कि ED ने जो दस्तावेज, बयान और टाइमलाइन पेश की है, वह इस लेन-देन में अनैतिकता और भ्रष्टाचार को साबित करने के लिए पर्याप्त है। इस पूरे मामले में यह देखा गया कि लोन की मंजूरी, फंड का ट्रांसफर और निजी कंपनी में पैसा भेजना एक योजनाबद्ध प्रक्रिया थी, जो सत्ता के दुरुपयोग को दर्शाती है।
ट्रिब्यूनल ने यह भी कहा कि इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि एक बैंक के उच्च अधिकारी किस प्रकार अपनी शक्ति का गलत इस्तेमाल कर सकते हैं और किस हद तक नियमों को दरकिनार किया जा सकता है।
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