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भारतीय थाली में ज़हर..अब क्या होगा? जानिए किस प्रकार आपकी सेहत पर मंडरा रहा 'बड़ा खतरा'!

Less Fiber in Indian diet: इस तेजी से बढ़ते हुए बढ़ते खतरे रोकथाम के लिए सबसे पहले हमें अपनी प्लेट को जल्द से जल्द संतुलित करना होगा।

Priya Singh Bisen
Published on: 5 July 2025 4:51 PM IST
Less fiber in Indian diet
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Less fiber in Indian diet

Less fiber in Indian diet: भारत में खाने की थाली लंबे वक़्त तक एक संतुलित आहार के रूप में जाना जाता है। इसमें दाल, चावल, रोटी, सब्जियां, दही और कभी-कभी मिठाई तक सब शामिल होता था। लेकिन भारत सरकार द्वारा जारी एक रिपोर्ट (Household Consumption Expenditure Survey: 2022-23 & 2023-24) में हैरान कर देने वालाआकंड़ा सामने आया है। सरकार की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक, भारतीय भोजन में फैट की मात्रा तेजी से बढ़ रही है जबकि फाइबर युक्त भोजन की हिस्सेदारी प्लेट में से निरंतर कम होती जा रही है।

सामने आये रिपोर्ट में खुलसा हुआ है कि औसतन एक भारतीय अब करीब 67.3 ग्राम फैट एक दिन में ले रहा है जो कि साल 2012 की तुलना से बहुत अधिक है। वहीं दूसरी तरफ, सब्जियां, दालें, साबुत अनाज और रेशेदार भोजन जो फाइबर का मुख्य स्रोत हैं, उनका सेवन पहले से काफी कम हो गया है। खाने की प्लेट में से पोषण की बड़ी लापरवाही के कारण न केवल आपका पाचन तंत्र गड़बड़ हो रहा है, बल्कि ह्रदय, लिवर और ब्लड सर्कुलेशन से सम्बंधित गंभीर बीमारियों का बड़ा कारण भी बन रहा है।

स्वाद के पीछे स्वास्थ्य से समझौता

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि विशेषकर शहरों में रहने वाले लोग भोजन में अधिक फैट खा रहे हैं। प्रोसेस्ड फूड, जंक फूड, बाहर का तला-भुना खाना, और ऑयली स्नैक्स ने भारतीय थाली की तस्वीर बिगाड़ कर रख दी है। शहरी पुरुषों में औसतन फैट का सेवन करीब 68.6 ग्राम और महिलाओं में 65.2 ग्राम तक पहुंच गया है।

फैट शरीर के लिए आवश्यक है, लेकिन जब उसकी मात्रा ज़रूरत से अधिक हो जाए, तो यह शरीर में बैड कोलेस्ट्रॉल (LDL) बढ़ाता है, जो ब्लड वेसल्स को संकुचित करता है और दिल की बीमारियों का कारण बनता है। अधिक फैट का सेवन, Non Alcoholic Liver डिजीज को भी जन्म देता है जो आगे जाकर लिवर फेलियर तक पहुंच सकता है।

शरीर का पाचन तंत्र कमजोर होने का कारण क्या है ?


फाइबर न केवल पाचन में सहायता करता है, बल्कि शरीर से ज़हरीले पदार्थों को बाहर निकालने में भी भी बड़ा योगदान देता है। यह ब्लड शुगर को मेनटेन रखता है, कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल करता है और लंबे वक़्त तक पेट भरा रखने में भी सहायता करता है। रिपोर्ट के मुताबिक, देश के ज्यादातर लोग रोजाना आवश्यक 25-30 ग्राम फाइबर के मानक से बहुत नीचे हैं।

फाइबर की कमी आंतों और दिल तक नुकसान


सब्जियों और फलियों का सेवन कम करने के कारण लोगों में कब्ज, एसिडिटी, गैस, और मोटापा बहुत आम समस्या हो गयी है। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक फाइबर की कमी अब पेट से सम्बंधित समस्याओं को जन्म दे रही है।

फाइबर न सिर्फ पाचन तंत्र को बेहतर बनाता है, बल्कि शरीर से टॉक्सिन्स बाहर निकालने में सहायता करता है। जब भोजन में फाइबर की मात्रा कम होने लग जाती है, तो कब्ज, एसिडिटी, गैस और पेट फूलने जैसी समस्याएं जन्म लेने लगती हैं। लम्बे समय तक फाइबर की कमी ब्लड शुगर कंट्रोल में भी मुश्किल पैदा करती है और टाइप 2 डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है।

क्यों बदल रही है भारत की प्लेट?

पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट के मुताबिक, भारत में शहरीकरण, वयस्तता भरी जीवनशैली, विज्ञापन और स्वाद की आदतों ने भारतीयों के खाने के तौर-तरीकों को बदलकर कर रख दिया है। लोग जल्दी में बनने वाला और दिखने में आकर्षक खाना अधिक पसंद करते हैं। पारंपरिक भोजन, जिसमें दाल, रोटी, चोकर वाला आटा, और मौसमी सब्जियां शामिल थीं अब वो सीमित हो गए हैं।

बदलती लाइफस्टाइल हैं जिम्मेदार


अब लोग घर के फ्रेश खाने की बजाय बाहर के जंक फूड, प्रोसेस्ड स्नैक्स, फ्राइड आइटम्स और पैकेज्ड फूड को अधिक पसंद करने लगे हैं। वर्क फ्रॉम होम और बैठकर काम करने वाली दिनचर्या ने भी शारीरिक गतिविधि को बेहद कम कर दिया है। ऐसे में जब हम कम शारीरिक एक्टिविटी करते हैं, लेकिन अधिक फैट खाते हैं, तो यह सीधे शरीर को बीमारियों की तरफ ले जाता है।

क्या है इसका समाधान?

इस तेजी से बढ़ते हुए बढ़ते खतरे रोकथाम के लिए सबसे पहले हमें अपनी प्लेट को जल्द से जल्द संतुलित करना होगा। खाना बनाते वक़्त यह सुनिश्चित करें कि थाली में सब्जियों और सलाद की मात्रा भरपूर हो। गेहूं का चोकरयुक्त आटा, मल्टीग्रेन रोटी, अंकुरित दालें, फल और घरेलू खाना खाने की आदत डालें।

बता दे, ऑयली और प्रोसेस्ड फूड को सप्ताह में एक बार ही खाएं या पूरी तरह से नज़रअंदाज़ करें। खाना बनाते वक़्त कम तेल का पययोग करें और देसी घी या सरसों जैसे पारंपरिक फैट को सीमित मात्रा में शामिल करें। साथ ही नियमित रूप से व्यायाम और पानी का सेवन शरीर को डिटॉक्स करने में सहायता करता है।

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