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BJP New President: भाजपा में सियासी सस्पेंस! अध्यक्ष चुनने में क्यों अटकी बात?
BJP New President: नई दिल्ली की सियासत इन दिनों एक ऐसे सस्पेंस में फंसी हुई है, जिसने पार्टी के गलियारों से लेकर राजनीतिक विश्लेषकों तक को बेचैन कर दिया है। सवाल बस इतना है कि आखिर भाजपा का नया अध्यक्ष कौन होगा?
BJP new President: नई दिल्ली की सियासत इन दिनों एक ऐसे सस्पेंस में फंसी हुई है, जिसने पार्टी के गलियारों से लेकर राजनीतिक विश्लेषकों तक को बेचैन कर दिया है। सवाल बस इतना है कि आखिर भाजपा का नया अध्यक्ष कौन होगा? लेकिन यह सवाल जितना आसान दिखता है, उतना है नहीं। वजह केंद्रीय सत्ता की सबसे बड़ी पार्टी के इस फैसले पर आरएसएस और भाजपा के बीच मतभेद की चर्चाएं जोरों पर हैं।
उपराष्ट्रपति चुनाव से जुड़ा अध्यक्ष पद का रहस्य
9 सितंबर को होने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव ने भाजपा अध्यक्ष पद के चुनाव को एक अलग ही मोड़ दे दिया है। मौजूदा अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री जगत प्रकाश नड्डा को एनडीए ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार तय करने की जिम्मेदारी सौंपी है। इसका सीधा मतलब यह निकाला जा रहा है कि नड्डा कम से कम 9 सितंबर तक अध्यक्ष पद पर बने रहेंगे लेकिन दिलचस्प बात यह है कि अध्यक्ष पद का चुनाव पहले ही तय समय से काफी देर से लटक रहा है। नड्डा तीन कार्यकाल से इस पद पर हैं, और उम्मीद थी कि जून 2024 में नया अध्यक्ष चुना जाएगा। मगर अब हालात बताते हैं कि यह फैसला इतना आसान नहीं है।
नाम पर अटक रही सहमति
द ट्रिब्यून की रिपोर्ट बताती है कि असली पेंच नाम को लेकर फंसा है। आरएसएस और भाजपा के बीच इस पद के लिए एकमत नहीं बन पा रहा। सूत्रों के मुताबिक, संघ की ओर से कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम पसंद किया जा रहा है, जबकि भाजपा के भीतर अन्य वरिष्ठ नेताओं जैसे भूपेंद्र यादव और धर्मेंद्र प्रधान के नाम भी चर्चा में हैं। यह पहली बार नहीं है जब संघ और भाजपा के बीच इस तरह की राय अलग-अलग सामने आई हो, लेकिन इस बार मामला पार्टी के शीर्ष पद का है, इसलिए हर कदम फूंक-फूंककर रखा जा रहा है।
कब शुरू हुई चर्चा और कैसे बढ़ा विवाद
अध्यक्ष पद को लेकर चर्चा 12 जनवरी 2025 से शुरू हुई थी। उस वक्त हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का नाम सबसे आगे था। लेकिन दिल्ली चुनाव के चलते इस पर ब्रेक लग गया। फिर चुनावी माहौल शांत होने के बाद शिवराज सिंह चौहान का नाम जोर पकड़ने लगा, जिसे लेकर संघ की रुचि बताई जा रही है। भाजपा ने संगठनात्मक चुनावों की गति भी तेज की, लेकिन नतीजा सिफर रहा। अब पार्टी का तर्क है कि उत्तर प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, कर्नाटक और दिल्ली में होने वाले चुनावों के कारण अध्यक्ष पद पर फैसला टल रहा है।
मोहन भागवत और मोदी के रिश्तों पर अटकलें
राजनीतिक गलियारों में यह भी चर्चा है कि अध्यक्ष पद को लेकर हो रही देरी ने संघ प्रमुख मोहन भागवत और प्रधानमंत्री मोदी के रिश्तों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। हालांकि संघ के सूत्र इस बात से इनकार करते हैं। उनका कहना है कि संगठन ने यह फैसला भाजपा पर छोड़ दिया है और सिर्फ यह बताया है कि अध्यक्ष में कौन-कौन सी योग्यताएं होनी चाहिए। दरअसल, पीएम मोदी और संघ के बीच संबंध हमेशा चर्चा में रहते हैं। मोदी के कार्यकाल में ही संघ के एजेंडे के बड़े मुद्दे जैसे अनुच्छेद 370 हटाना और राम मंदिर का निर्माण पूरे हुए हैं। वहीं, 2013 में पीएम पद के उम्मीदवार के तौर पर मोदी के नाम पर भागवत का समर्थन भी एक ऐतिहासिक घटना मानी जाती है।
उपराष्ट्रपति चुनाव के बाद क्या होगा फैसला?
अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि उपराष्ट्रपति चुनाव खत्म होते ही भाजपा अध्यक्ष पद पर अंतिम फैसला संभव है। लेकिन क्या यह फैसला संघ की पसंद पर होगा या पीएम मोदी के भरोसेमंद चेहरे पर? यही असली सवाल है। कई जानकारों का मानना है कि इस बार का चयन न केवल पार्टी की आंतरिक राजनीति बल्कि 2029 के लोकसभा चुनावों की रणनीति पर भी गहरा असर डालेगा। यही वजह है कि हर कदम सोच-समझकर उठाया जा रहा है।
नतीजा जो भी हो, मुकाबला दिलचस्प
एक तरफ संघ का अनुभव और परंपरागत ढांचा है, दूसरी तरफ भाजपा की मौजूदा रणनीति और चुनावी मशीनरी। इन दोनों के बीच तालमेल ही तय करेगा कि पार्टी का नया कप्तान कौन होगा। लेकिन इतना तय है कि जब तक यह फैसला नहीं होता, भाजपा का यह ‘सियासी सस्पेंस’ हर दिन नई सुर्खियां बनाता रहेगा।
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