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HC का बड़ा एक्शन! दिल्ली दंगे के उमर खालिद, शरजील इमाम समेत 10 की जमानत पर रोक,कोर्ट का दिखा सख्त रूख
दिल्ली हाईकोर्ट ने उमर खालिद, शरजील इमाम समेत 10 आरोपियों की जमानत याचिका खारिज की।
HC rejects Delhi riots accused bail Plea: दिल्ली दंगों की कथित साजिश के मामले में मंगलवार को एक बड़ा फैसला आया है। दिल्ली हाईकोर्ट ने शरजील इमाम और उमर खालिद सहित 10 आरोपियों की जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया है। यह फैसला इन आरोपियों के लिए एक बड़ा झटका है, जिन्हें अब जेल में ही रहना होगा। इन पर UAPA (गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। अभियोजन पक्ष ने अदालत में तर्क दिया था कि यह सिर्फ एक दंगे का मामला नहीं है, बल्कि भारत को विश्व स्तर पर बदनाम करने की एक सोची-समझी साजिश थी।
HC का फैसला: 10 आरोपियों को जमानत नहीं
दिल्ली हाईकोर्ट ने दो अलग-अलग पीठों के माध्यम से इन 10 आरोपियों की जमानत याचिकाओं पर फैसला सुनाया। जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की पीठ ने शरजील इमाम, उमर खालिद, मोहम्मद सलीम खान, शिफा उर रहमान, अतहर खान, मीरान हैदर, शादाब अहमद, अब्दुल खालिद सैफी और गुलफिशा फातिमा की याचिकाओं को रद्द कर दिया। वहीं, एक अन्य पीठ, जिसमें जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर शामिल थे, ने आरोपी तस्लीम अहमद की जमानत याचिका खारिज की। अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 9 जुलाई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
अभियोजन पक्ष का सख्त रुख: 'देश के खिलाफ साजिश'
अभियोजन पक्ष ने जमानत याचिकाओं का कड़ा विरोध किया। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में जोरदार दलीलें पेश कीं। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ दंगों का मामला नहीं, बल्कि एक सुनियोजित साजिश थी, जिसका उद्देश्य भारत को वैश्विक मंच पर बदनाम करना था। उन्होंने तर्क दिया कि केवल लंबी कैद जमानत का आधार नहीं हो सकती। मेहता ने कहा, "अगर आप अपने देश के खिलाफ कुछ भी करते हैं, तो बेहतर होगा कि आप बरी होने तक जेल में ही रहें।" उनका यह बयान अभियोजन पक्ष के सख्त रुख को दर्शाता है।
क्या थे दिल्ली दंगे?
फरवरी 2020 में दिल्ली में हुए दंगे नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (NRC) के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान भड़के थे। इन दंगों में 53 लोगों की मौत हुई थी और 700 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। उमर खालिद, शरजील इमाम और अन्य आरोपियों पर इन दंगों का "मास्टरमाइंड" होने का आरोप है। इन पर यूएपीए के साथ-साथ भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत भी मामला दर्ज किया गया है। इन आरोपियों की जमानत याचिकाएं 2022 से हाईकोर्ट में लंबित थीं और उन पर समय-समय पर सुनवाई की गई। इस फैसले के बाद, इन सभी आरोपियों को अपनी कानूनी लड़ाई जेल में रहकर ही लड़नी होगी। यह फैसला न केवल इन आरोपियों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि भारत की न्यायिक प्रक्रिया में भी एक मील का पत्थर है, खासकर जब देशद्रोह और आतंकी मामलों से जुड़े मुकदमों की बात आती है।
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