India Turkey Tension: भारत-पाक तनाव के बीच तुर्की और अजरबैजान की क्या भूमिका है, इसका व्यापार पर कैसे असर पड़ेगा

India Turkey Tension Update: भारत और पाकिस्तान (Bharat Pakistan Tanav) की सीमा पर 22 अप्रैल,2025 को हुए पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद तनाव बढ़ता गया वहीँ तुर्की और अजरबैजान जैसे देशों की भूमिका पर भी सवाल उठ खड़े हुए।

Akshita Pidiha
Published on: 16 May 2025 11:33 AM IST
India Turkey Tension Affect Business and Tourism
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India Turkey Tension Affect Business and Tourism (Photo - Social Media)

India Turkey Tension Update: भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया सीमा तनाव और युद्धविराम के बावजूद कूटनीतिक परिस्थितियों में तेजी से बदलाव देखने को मिल रहा है। ऐसे में तुर्की और अजरबैजान जैसे देशों की भूमिका और उनका पाकिस्तान को समर्थन भारतीय विदेश नीति, व्यापार और पर्यटन पर प्रत्यक्ष प्रभाव डाल रहा है। विशेष रूप से तुर्की द्वारा पाकिस्तान को सैन्य सहयोग, ड्रोन आपूर्ति और कूटनीतिक समर्थन ने भारत में इन देशों के प्रति जन असंतोष को जन्म दिया है, जिसका असर भारतीयों की यात्रा योजनाओं से लेकर आयात-निर्यात तक में दिखाई दे रहा है।

राजनीतिक और कूटनीतिक संबंध

राजनीतिक स्तर पर भारत और तुर्की के संबंध सामान्यत: सौहार्दपूर्ण रहे हैं, लेकिन कुछ खास मुद्दों पर मतभेद भी सामने आए हैं। खासकर कश्मीर को लेकर तुर्की ने कई बार पाकिस्तान का समर्थन किया है, जिससे भारत की कूटनीतिक असहजता बढ़ी है। 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन ने संयुक्त राष्ट्र में भारत विरोधी टिप्पणी की, जिसे भारत ने दृढ़ता से खारिज करते हुए तुर्की से स्पष्ट किया कि कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है।


भारत ने तुर्की की इन टिप्पणियों के जवाब में आर्मेनिया, ग्रीस और साइप्रस जैसे देशों के समर्थन में अपनी कूटनीतिक भाषा को कड़ा किया, जो तुर्की के पारंपरिक विरोधी रहे हैं। इस कूटनीतिक प्रतिक्रिया को संतुलित विरोध कहा गया, क्योंकि भारत ने अपने रणनीतिक और व्यापारिक हितों को संतुलन में रखते हुए तुर्की से संबंध पूरी तरह नहीं तोड़े।

वहीं दूसरी ओर, कई ऐसे अवसर भी रहे जब दोनों देशों ने कूटनीतिक संवाद को आगे बढ़ाया। 2008 में भारत की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने तुर्की का दौरा किया, और 2010 तथा 2017 में तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन भारत यात्रा पर आए। इन यात्राओं के दौरान आतंकवाद विरोधी सहयोग, व्यापार, शिक्षा, संस्कृति, विज्ञान और तकनीक जैसे विषयों पर बातचीत हुई।

भारत अजरबैजान के कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा खरीदार

विदेश मंत्रालय के अनुसार, भारत अजरबैजान के कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा खरीदार है। 2023 में भारत ने अजरबैजान से 1.227 बिलियन डॉलर मूल्य का कच्चा तेल आयात किया, जो उनके कुल निर्यात का 7.6 प्रतिशत था। भारत-अजरबैजान द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2005 में जहां मात्र 50 मिलियन डॉलर था, वहीं 2023 में यह बढ़कर 1.435 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया। इसमें भारत का निर्यात 201 मिलियन डॉलर और आयात 1.235 बिलियन डॉलर रहा। इससे स्पष्ट है कि भारत के लिए अजरबैजान एक उभरता हुआ रणनीतिक साझेदार रहा है, विशेषकर ऊर्जा के क्षेत्र में।

तुर्की के साथ भारत के व्यापारिक संबंध

तुर्की के साथ भारत के व्यापारिक संबंध भी पिछले वर्षों में मजबूत हुए हैं। 2022-23 में दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार 13.8 बिलियन डॉलर के पार पहुंच गया, जबकि 2023-24 में यह 10.43 बिलियन डॉलर पर स्थिर हुआ। इस दौरान भारत ने तुर्की को 6.65 बिलियन डॉलर का निर्यात किया और तुर्की से 3.78 बिलियन डॉलर का आयात किया। हालांकि, अप्रैल 2024 से फरवरी 2025 के बीच इन आंकड़ों में गिरावट दर्ज की गई, जब तुर्की को निर्यात घटकर 5.2 बिलियन डॉलर और आयात घटकर 2.84 बिलियन डॉलर रह गया। यह भारत के कुल निर्यात का महज 1.5 प्रतिशत और कुल आयात का 0.5 प्रतिशत है।


अजरबैजान में भारत का निर्यात- अजरबैजान के संदर्भ में, भारत का वहां निर्यात 2024-25 में घटकर 8.60 करोड़ डॉलर रह गया, जबकि 2023-24 में यह 8.96 करोड़ डॉलर था। वहीं, भारत में अजरबैजान से आयात में भी असमानता देखने को मिली। अप्रैल 2024 से फरवरी 2025 तक यह मात्र 19.3 करोड़ डॉलर रहा, जो पिछले वर्ष के मुकाबले बहुत कम है।

आयात -निर्यात का गणित

यह उल्लेखनीय है कि भारत दोनों देशों के साथ व्यापार अधिशेष की स्थिति में है। तुर्की को भारत से खनिज ईंधन, विद्युत मशीनरी, वाहन, फार्मास्युटिकल उत्पाद, लोहा-इस्पात, प्लास्टिक और वस्त्र उत्पाद निर्यात किए जाते हैं, जबकि भारत तुर्की से सोना, मार्बल, खनिज तेल, सेब, सब्जियां, रसायन और सीमेंट आयात करता है। वहीं अजरबैजान को भारत तंबाकू, चाय-कॉफी, अनाज, सिरेमिक, रसायन और प्लास्टिक उत्पाद निर्यात करता है, और वहां से कच्ची खाल, जैविक रसायन, पशु चारा और आवश्यक तेल प्राप्त करता है।

Boycott Turkey' अभियान-

पाकिस्तान और तुर्की के सैन्य सहयोग ने भारत की चिंता बढ़ा दी है। एक विशेष सरकारी प्रेसवार्ता में बताया गया कि पाकिस्तान ने तुर्की से प्राप्त 300 से 400 ड्रोन का उपयोग भारत की सैन्य और नागरिक संरचनाओं को लक्ष्य बनाने में किया। ये ड्रोन भारत की पश्चिमी सीमा पर कई स्थानों पर हवाई क्षेत्र का उल्लंघन करने के लिए प्रयोग किए गए, जिनमें लेह से लेकर गुजरात के सर क्रीक तक के क्षेत्र शामिल हैं। इससे तुर्की के प्रति भारत में नाराजगी बढ़ी और सोशल मीडिया पर 'Boycott Turkey' जैसे अभियानों ने जोर पकड़ा।


पर्यटन क्षेत्र पर असर

इस जन असंतोष का असर पर्यटन क्षेत्र पर भी दिखाई दे रहा है। 2023 में अजरबैजान में भारत से 117,302 पर्यटक पहुंचे, जबकि 2022 में यह संख्या 60,731 थी। 2024 में यह बढ़कर 2.43 लाख हो गई, जिससे स्पष्ट होता है कि भारत अब रूस, तुर्की और ईरान के बाद अजरबैजान के लिए चौथा सबसे बड़ा पर्यटक स्रोत बन गया है। वहीं तुर्की में 2023 में 3.3 लाख भारतीय पर्यटकों ने दौरा किया, जो 2022 की तुलना में 20.7 प्रतिशत अधिक था। फिर भी, भारत-पाक तनाव और तुर्की के रुख को देखते हुए अब भारतीय ट्रैवल एजेंसियों में तुर्की पैकेज की मांग में भारी गिरावट आई है। कई एजेंसियों ने तुर्की और अजरबैजान की अनावश्यक यात्रा से बचने की सलाह दी है और कुछ ने भविष्य की बुकिंग लेना भी बंद कर दिया है।

1973 में व्यापार समझौता

भारत और तुर्की के बीच 1973 में व्यापार समझौता और 1983 में भारत-तुर्की संयुक्त आयोग की स्थापना हुई थी, जिससे दोनों देशों के आर्थिक और तकनीकी सहयोग को बल मिला था। लेकिन वर्तमान राजनीतिक माहौल में इन संबंधों की दिशा बदली नजर आ रही है। भारत में तुर्की के कालीन, फर्नीचर, हस्तशिल्प, जैतून तेल और सूखे मेवों की मांग में गिरावट के संकेत मिल रहे हैं। व्यापार विश्लेषकों के अनुसार, यदि तुर्की के प्रति विरोध की यह लहर जारी रहती है, तो इसका सीधा प्रभाव तुर्की से आने वाले उत्पादों की बिक्री और खपत पर पड़ेगा।

तुर्की भारत के लिए यूरोप में एक महत्वपूर्ण व्यापारिक द्वार है, वहीं भारत तुर्की के लिए दक्षिण एशिया के बाजारों तक पहुंच का माध्यम बन सकता है। दोनों देशों के व्यापारिक संगठनों जैसे कि फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (FICCI) और यूनियन ऑफ चैंबर्स एंड COMMODITY EXCHANGES ऑफ तुर्की (TOBB) के बीच नियमित संपर्क से व्यापारिक सहयोग की दिशा में नई संभावनाएं खुल रही हैं।

हालांकि भारत और तुर्की के बीच ‘फ्री ट्रेड एग्रीमेंट’ या ‘प्रेफरेंशियल ट्रेड एग्रीमेंट’ जैसा कोई औपचारिक समझौता नहीं है, फिर भी व्यापारिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए दोनों सरकारें परामर्श और नीति संवाद करती रहती हैं।

भारत और तुर्की के बीच व्यापारिक संबंध ऐतिहासिक और रणनीतिक दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण हैं। दोनों देश उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं वाले राष्ट्र हैं, और वैश्विक व्यापार प्रणाली में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। भारत तुर्की को मुख्यतः जैविक रसायन, कच्चा एल्यूमिनियम, कपास, स्टील के उत्पाद, ऑटो पार्ट्स, मसाले, चाय, दवाइयाँ और वस्त्र निर्यात करता है। भारतीय फार्मास्युटिकल और ऑटोमोबाइल उद्योग तुर्की के बाजार में प्रतिस्पर्धात्मक लाभ रखते हैं। इसके अतिरिक्त, भारत से तुर्की को लौह अयस्क, कच्चा लोहा, प्लास्टिक उत्पाद और मशीनरी भी निर्यात की जाती है। दूसरी ओर, तुर्की से भारत मुख्य रूप से मशीनरी, तांबे के उत्पाद, खनिज ईंधन (विशेषकर कोकिंग कोल), ताजे फल (विशेषकर चेरी और सेब), खाद्य प्रसंस्कृत वस्तुएं, कालीन, चमड़े के उत्पाद और कुछ रसायन आयात करता है।

जहां तक भारत में तुर्की और अजरबैजान के प्रवासी समुदायों की बात है, तुर्की में लगभग 3,000 भारतीय नागरिक रह रहे हैं, जिनमें 200 छात्र भी शामिल हैं, जबकि अजरबैजान में 1,500 से अधिक भारतीय मूल के लोग बसे हुए हैं। वर्तमान परिस्थिति में इनके लिए भी सुरक्षा और सामाजिक वातावरण को लेकर नई चिंताएं उत्पन्न हुई हैं।

निवेश और औद्योगिक सहयोग

भारत की कई प्रमुख कंपनियां तुर्की में निवेश कर चुकी हैं, जिनमें महिंद्रा एंड महिंद्रा, टाटा मोटर्स, जिंदल स्टील, सुजलॉन, वॉकहार्ट और बजाज शामिल हैं। वहीं तुर्की की कंपनियों जैसे एनेस होल्डिंग, ज़ोरल एनर्जी और लिंडे ग्रुप ने भी भारत में ऊर्जा और निर्माण के क्षेत्र में निवेश किया है।

नवीनतम समय में भारत के उभरते ‘मेक इन इंडिया’ और तुर्की के ‘मेक इन टर्की’ अभियानों ने दोनों देशों को विनिर्माण, स्मार्ट टेक्नोलॉजी, और हरित ऊर्जा में सहयोग की संभावनाएं प्रदान की हैं।


सांस्कृतिक और शैक्षिक संबंध

भारत और तुर्की दोनों ही समृद्ध सांस्कृतिक विरासत वाले देश हैं। संगीत, नृत्य, साहित्य, व्यंजन और वास्तुकला के क्षेत्रों में दोनों देशों की पारंपरिक विशेषताएं आकर्षण का विषय रही हैं। भारतीय फिल्मों की लोकप्रियता तुर्की में काफी बढ़ी है। शाहरुख खान, आमिर खान और ऋतिक रोशन जैसे सितारों की फिल्मों को तुर्की में खूब सराहा जाता है।

वहीं तुर्की की ऐतिहासिक वेब सीरीज और टेलीविज़न कार्यक्रम जैसे "Ertugrul" एर्तुग़रुल यानी पुनर्जागरण और "Magnificent Century" जिसे हिंदी में भव्य शताब्दी कहा जायेगा।भारत में लोकप्रिय हुए हैं। एर्तुग़रुल गाज़ी सीरीज़ 13वीं सदी के ओग़ुज़ तुर्क नेता के जीवन पर आधारित है, जो उस्मानी साम्राज्य (Ottoman Empire) के संस्थापक उस्मान प्रथम के पिता थे।जबकि शानदार सदी सीरीज़ उस्मानी साम्राज्य के सबसे प्रभावशाली सुल्तानों में से एक, सुल्तान सुलेमान महान (Suleiman the Magnificent) और उनकी पत्नी हुर्रम सुल्तान के जीवन, प्रेम और सत्ता संघर्ष पर आधारित है।इस सांस्कृतिक आदान-प्रदान ने जनता के बीच परस्पर समझ को भी मजबूत किया है।

शैक्षिक क्षेत्र में, भारतीय छात्र तुर्की की विश्वविद्यालयों में पढ़ाई कर रहे हैं, जबकि तुर्की के कई छात्र भारतीय शिक्षा संस्थानों जैसे आईआईटी, आईआईएम और जामिया मिल्लिया इस्लामिया में शिक्षा ले रहे हैं। तुर्की के कुछ विश्वविद्यालयों में हिंदी और संस्कृत की पढ़ाई भी होती है, जिससे भारत की भाषाई और साहित्यिक परंपरा को वहां स्थान मिला है।

सैन्य और सुरक्षा सहयोग

भारत और तुर्की के बीच सैन्य सहयोग सीमित है। लेकिन कुछ रक्षा प्रदर्शनी, संयुक्त सेमिनार और संवाद होते रहे हैं। हालांकि तुर्की के पाकिस्तान के साथ गहरे सैन्य संबंध होने के कारण भारत इस मोर्चे पर सतर्क रहता है। भारत ने 2020 में तुर्की की एक रक्षा कंपनी की भागीदारी को एक संवेदनशील परियोजना से बाहर कर दिया था, जो भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को प्राथमिकता देने की नीति को दर्शाता है। हालांकि भविष्य में आतंकवाद विरोधी रणनीति, साइबर सुरक्षा और संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में दोनों देशों के बीच संभावित सहयोग हो सकता है।


राजनीतिक तनाव और व्यापार पर संभावित प्रभाव

तुर्की और अज़रबैजान द्वारा पाकिस्तान का समर्थन करना भारत के लिए कूटनीतिक रूप से असहज स्थिति पैदा कर रहा है। तुर्की के ड्रोन का इस्तेमाल पाकिस्तान द्वारा संघर्ष में करना और दोनों देशों द्वारा भारत की सैन्य कार्रवाई की आलोचना करना भारत में विरोध का कारण बन चुका है। इसके चलते भारतीय सरकार और नागरिक दोनों के स्तर पर बहिष्कार की भावना उभर रही है, जो भविष्य में द्विपक्षीय व्यापार और पर्यटन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।

हालाँकि, वर्तमान आँकड़ों से यह स्पष्ट है कि भारत का इन दोनों देशों के साथ व्यापार कुल अंतरराष्ट्रीय व्यापार का बहुत छोटा हिस्सा है। इसलिए यदि भारत इन देशों से अपने व्यापारिक या पर्यटन संबंधों में कटौती करता है, तो इससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर व्यापक असर नहीं पड़ेगा। लेकिन दीर्घकालीन रूप से यह स्थिति क्षेत्रीय कूटनीति और भारत की मध्य एशिया नीति को प्रभावित कर सकती है।

तुर्की और अज़रबैजान का पाकिस्तान के पक्ष में खड़ा होना न केवल भारत के लिए रणनीतिक चिंता का विषय है, बल्कि यह व्यापार, पर्यटन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर भी असर डाल सकता है। यदि इन देशों की नीतियाँ भारत विरोधी बनी रहती हैं, तो भविष्य में भारत वैकल्पिक साझेदारों की ओर रुख कर सकता है और इन संबंधों को सीमित कर सकता है।

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