Malegaon Bomb Blast History: लाशें... हर तरफ चीखती-चिल्लाती आवाजें, 2008 का सबसे भयानक पल, जाने मालेगांव बम धमाके की कहानी

Malegaon Bomb Blast Ka Itihas: बता दे की, आज करीब 17 साल बाद आए फैसले में एनआईए कोर्ट ने 2008 मालेगांव बम विस्फोट मामले में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर समेत सभी 7 आरोपियों को बरी कर दिया है ।

Shivani Jawanjal
Published on: 31 July 2025 12:43 PM IST (Updated on: 31 July 2025 1:20 PM IST)
Malegaon Bomb Blast History
X

Malegaon Bomb Blast History

Malegaon Bomb Blast History: भारत में जब भी आतंकवाद की घटनाओं की चर्चा होती है, तो मालेगांव बम विस्फोट (Malegaon Bomb Blast) का नाम एक भयावह प्रतीक के रूप में सामने आता है। यह सिर्फ एक विस्फोट नहीं था, बल्कि वह त्रासदी थी जिसने भारत की पहचान, न्यायिक प्रक्रिया, राजनीतिक सोच और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण - इन सभी को झकझोर कर रख दिया। मालेगांव की सड़कों पर हुआ यह रक्तरंजित हमला न केवल कई निर्दोषों की जान ले गया, बल्कि इसने देश में आतंकवाद की परिभाषा, जांच एजेंसियों की निष्पक्षता और सत्ता की सियासत पर गहरे सवाल खड़े किए। इस घटना ने पहली बार यह सोचने पर मजबूर किया कि क्या आतंक का कोई धर्म, जाति या राजनीतिक रंग हो सकता है? मालेगांव विस्फोट, भारत के आतंरिक सुरक्षा और न्यायिक इतिहास में एक ऐसा मोड़ बन गया जिसने आने वाले वर्षों की बहसों की दिशा तय कर दी।

मालेगांव - एक संक्षिप्त परिचय


मालेगांव, महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित एक प्रमुख शहर है, जो अपने ऐतिहासिक पावरलूम कपड़ा उद्योग के लिए जाना जाता है। यहां हज़ारों कपड़ा इकाइयाँ प्रतिदिन लाखों मीटर कपड़ा तैयार करती हैं, जो स्थानीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती हैं और खासकर मुस्लिम समुदाय को व्यापक स्तर पर रोजगार उपलब्ध कराती हैं। शहर की आबादी में लगभग 79% मुस्लिम, 18.5% हिंदू और अन्य धर्मों के लोग शामिल हैं, जो इसे धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से विविध बनाते हैं। हालांकि, मालेगांव का इतिहास कई बार सांप्रदायिक तनाव और हिंसा से भी जुड़ा रहा है। 1963 से लेकर 2008 तक यहाँ कई दंगे और बम धमाके हो चुके हैं, जिसके चलते शहर को अक्सर संवेदनशील घोषित किया जाता है। इसके बावजूद यहाँ सामाजिक समरसता की कोशिशें लगातार चलती रही हैं। मालेगांव अपने राजनीतिक जागरूकता, सांस्कृतिक विविधता और व्यंग्यात्मक 'स्पूफ' फिल्मों के लिए भी जाना जाता है। हालांकि, पानी की कमी, प्रदूषण और बेरोजगारी जैसी समस्याएँ आज भी यहां की बड़ी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।

2008 में धमाके से दहला मालेगांव


29 सितंबर 2008 की रात महाराष्ट्र के नासिक जिले स्थित मुस्लिम बहुल मालेगांव शहर में उस समय अफरा-तफरी मच गई जब भिक्खू चौक पर रात करीब 9:35 बजे एक शक्तिशाली बम धमाका हुआ। यह हादसा उस वक्त हुआ जब रमजान का पवित्र महीना चल रहा था और ठीक अगले दिन नवरात्रि की शुरुआत होने वाली थी, जिससे धार्मिक माहौल बेहद संवेदनशील था। इस धमाके में छह लोगों की दर्दनाक मौत हो गई, जबकि 100 से अधिक लोग घायल हो गए। घटना की गंभीरता को देखते हुए इसकी जांच पहले स्थानीय पुलिस और महाराष्ट्र एटीएस ने शुरू की, लेकिन बाद में मामला राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंप दिया गया। यह विस्फोट न केवल लोगों की जान लेकर गया, बल्कि देशभर में आंतरिक सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल भी खड़े कर गया।

शुरुआती जांच के दौरान धमाके में इस्तेमाल हुई LML फ्रीडम बाइक का रजिस्ट्रेशन नंबर साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के नाम पर होने से यह मामला एक अप्रत्याशित मोड़ लेता है। महाराष्ट्र एटीएस ने साध्वी प्रज्ञा, लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित, रिटायर्ड मेजर उपाध्याय और कुछ अन्य दक्षिणपंथी विचारधारा से जुड़े लोगों को गिरफ्तार किया। आरोपियों पर मुस्लिम समुदाय में डर और सांप्रदायिक तनाव फैलाने की मंशा से विस्फोट करने का आरोप लगाया गया।

2008 से पहले भी मालेगांव शहर में 8 सितंबर 2006 दो सिलसिलेवार बम धमाके हुए। यह धमाके हमीदीया मस्जिद और पास के कब्रिस्तान क्षेत्र में हुए थे जिनमें 37 लोगों की मौत हो गई और करीब 125 लोग घायल हुए। ये धमाके उस वक्त हुए जब लोग ईद-ए-मिलाद और जुमे की नमाज़ के लिए बड़ी संख्या में जमा थे।

जांच एजेंसियों की भूमिका और बदलती दिशा

2008 मालेगांव बम धमाके की जांच की जिम्मेदारी महाराष्ट्र एटीएस को सौंपी गई थी, जिसकी कमान उस समय के प्रमुख हेमंत करकरे के हाथों में थी। करकरे ने जांच की दिशा दक्षिणपंथी संगठनों की ओर मोड़ी, जो भारत में आतंकवाद से जुड़े मामलों में पहली बार इस प्रकार की वैचारिक पृष्ठभूमि पर केंद्रित जांच थी। इस कदम के कारण उन्हें तीव्र राजनीतिक विरोध, व्यक्तिगत हमलों और दबावों का सामना करना पड़ा। बाद में 2009 में गठित राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को 2011 में यह मामला सौंपा गया। एनआईए ने शुरुआत में कई आरोपियों पर गंभीर आरोप बरकरार रखे, हालांकि बाद में कुछ को सबूतों के अभाव में आरोप पत्र से हटा दिया गया। जबकि साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित जैसे प्रमुख नामों के खिलाफ आरोप जारी रहे। मुकदमे के दौरान विशेष एनआईए अदालत में कई महत्वपूर्ण गवाह अपने बयान से पलट गए और साक्ष्य भी पर्याप्त एवं ठोस नहीं पाए गए।

राजनीतिक बहस और भगवा आतंकवाद का विमर्श

2008 मालेगांव बम धमाके की जांच के दौरान जब दक्षिणपंथी संगठनों और कुछ हिंदू नेताओं के नाम सामने आए, तभी भारत में पहली बार 'भगवा आतंकवाद' या 'हिंदू आतंकवाद' जैसे शब्द सार्वजनिक विमर्श का हिस्सा बने। यह शब्द 2008-09 के बाद मीडिया, राजनीति और सामाजिक बहसों में प्रमुखता से उभरा। कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं, विशेष रूप से तत्कालीन गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने इस शब्द का उल्लेख करते हुए दक्षिणपंथी संगठनों पर सवाल उठाए, जिससे राजनीतिक माहौल गर्मा गया। वहीं भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और अन्य हिंदू संगठनों ने इसे हिंदू धर्म को बदनाम करने की साजिश बताते हुए इसका कड़ा विरोध किया। यह बहस सिर्फ सैद्धांतिक नहीं रही, बल्कि 2009 से लेकर 2019 तक के कई चुनावों में भी इस मुद्दे को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया। आज भी 'भगवा आतंकवाद' शब्द समय-समय पर राजनीतिक बयानबाजी, मीडिया चर्चाओं और वैचारिक बहसों में सुनाई देता है। जहाँ एक पक्ष इसे सच्चाई के रूप में प्रस्तुत करता है, वहीं दूसरा पक्ष इसे पूरी तरह नकारता है।

न्यायिक कार्यवाही

2008 विस्फोट केस में आरोपी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को 2017 में स्वास्थ्य आधार पर जमानत मिली, जबकि लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित को सुप्रीम कोर्ट ने उसी वर्ष सशर्त जमानत दी। इन दोनों मामलों में न्यायिक प्रक्रिया बेहद लंबी खिंचती रही, विशेष रूप से 2008 विस्फोट मामले में। एनआईए द्वारा 2011 में जांच शुरू करने के बाद भी कई गवाहों के बयान बदल जाने और सबूतों की कमजोरियों के कारण केस की सुनवाई में वर्षों का विलंब हुआ। 2024 तक मामला लंबित रहा ।

मालेगांव धमाके के सभी प्रमुख आरोपी


2008 मालेगांव बम धमाके मामले में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित, रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी (उर्फ दयानंद पांडे), सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी प्रमुख आरोपी थे। महाराष्ट्र एटीएस और बाद में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने इन सभी को गंभीर आरोपों के तहत गिरफ्तार किया था और इनके खिलाफ मुकदमा भी चलाया गया।

17 साल बाद आया फैसला

2018 में शुरू हुआ मुकदमा 19 अप्रैल 2025 को समाप्त हुआ और वर्षों तक चली लंबी जांच और अदालती प्रक्रिया के बाद 31 जुलाई 2025 को एनआईए की विशेष अदालत ने पर्याप्त और पुख्ता सबूतों के अभाव में इन सभी आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत के इस फैसले ने एक लंबे समय से चल रहे चर्चित और विवादित मामले को एक निर्णायक मोड़ पर पहुंचा दिया।

1 / 7
Your Score0/ 7
Admin 2

Admin 2

Next Story

AI Assistant

Online

👋 Welcome!

I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!