क्या भारत और चीन के बीच फँस गया है नेपाल? क्रांति महज संयोग या क्या कोई बड़ी साजिश

ओली की भारत यात्रा से पहले नेपाल में भड़के प्रदर्शन, 20 की मौत, चीन-अमेरिका टकराव के बीच हालात बिगड़ने की आशंका जताई गई।

Shivam Srivastava
Published on: 9 Sept 2025 4:21 PM IST (Updated on: 9 Sept 2025 6:28 PM IST)
क्या भारत और चीन के बीच फँस गया है नेपाल? क्रांति महज संयोग या क्या कोई बड़ी साजिश
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नेपाल में Gen Z युवाओं द्वारा शुरू किए गए बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन पिछले कुछ समय से धीरे-धीरे पक रहे थे, लेकिन इनका अचानक और व्यापक रूप से फूट पड़ना थोड़ा चौंकाने वाला है। ये देशव्यापी प्रदर्शन, जो अब दूसरे दिन में प्रवेश कर चुके हैं प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के खिलाफ हैं, जो हाल ही में चीन से लौटे हैं और इसी सितंबर में भारत यात्रा पर जाने वाले थे।

सोमवार को प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच झड़पों में कम से कम 20 लोगों की मौत हो गई। इन प्रदर्शनों में स्कूली यूनिफॉर्म में छात्र भी शामिल थे। हालात बिगड़ने के बाद प्रधानमंत्री ओली ने इस्तीफा दे दिया।

हालांकि प्रदर्शनों की तात्कालिक वजह सरकार द्वारा सोशल मीडिया ऐप्स पर प्रतिबंध बताया जा रहा है, लेकिन #Nepokids और #Nepobabies जैसे ट्रेंड पिछले एक हफ्ते से सोशल मीडिया पर छाए हुए थे, जो इस असंतोष के लंबे समय से उभर रहे संकेत थे।

वरिष्ठ पत्रकार केशव प्रधान, जो नेपाल, सार्क और चीन-तिब्बत मामलों को लंबे समय से कवर करते आ रहे हैं, इंडिया टुडे से बाकचीत करते हुये कहा, ये प्रदर्शन देखने में अचानक लग सकते हैं, लेकिन इन्हें पूरी तरह स्वतःस्फूर्त कहना भी जल्दबाज़ी होगी। फिलहाल किसी तीसरी शक्ति की संलिप्तता को लेकर निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन नेपाल की लंबे समय से अस्थिर स्थिति को देखते हुए विभिन्न आंतरिक और बाहरी ताकतें इसका फायदा उठा सकती हैं।

प्रधान प्रदर्शनकारियों द्वारा उठाए गए मुद्दों की ओर इशारा करते हैं, प्रदर्शनकारी भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, बेरोज़गारी और भारतीय उपमहाद्वीप से बाहर होने वाले बड़े पैमाने पर पलायन की बात कर रहे हैं। गुस्सा बहुत समय से पनप रहा था, ये सब अचानक नहीं हुआ। नेपाल के युवा यूट्यूबर गड्ढों से लेकर पलायन तक, हर मुद्दे पर ओली सरकार की पोल खोल रहे थे।

प्रधान का मानना है कि इन प्रदर्शनों का समय बहुत महत्वपूर्ण है ये उस वक्त हो रहे हैं जब ओली चीन से लौटे हैं और भारत की यात्रा पर जाने वाले हैं, ओली इसी महीने भारत यात्रा पर जाने वाले थे। इससे पहले भारत के विदेश सचिव नेपाल गए थे और पीएम मोदी का निमंत्रण सौंपा था। ओली चीन के तियानजिन में एससीओ समिट में भाग लेकर लौटे हैं।

क्या नेपाल में बांग्लादेश जैसा हाल हो रहा है?

नेपाल, भारत के लिए रणनीतिक दृष्टि से अहम है और पिछले एक साल में राजनीतिक उथल-पुथल देखने वाला यह दूसरा पड़ोसी देश है। जुलाई-अगस्त 2024 में बांग्लादेश में छात्र आंदोलन ने प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार को चुनौती दी थी, जिन्हें भारत समर्थक नेता माना जाता है।

नेपाल में भी कई विदेशी ताकतें राजनीतिक प्रभाव के लिए संघर्ष कर रही हैं।

• दिसंबर 2024 में ओली सरकार ने चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में शामिल होने के लिए समझौता किया।

• वहीं अमेरिका मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन के तहत 500 मिलियन डॉलर की परियोजनाओं में निवेश कर रहा है।

हाल ही में जब भारत और चीन ने उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रे से व्यापारिक मार्ग खोला, तो ओली ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से कहा कि यह नेपाली क्षेत्र है, जबकि भारत इसे अपना अभिन्न हिस्सा मानता है। ओली ने पहले भी 2020 में लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को लेकर भारत का विरोध किया था।

ओली, जो जुलाई 2024 में प्रधानमंत्री बने, को चीन समर्थक माना जाता है। उन्होंने अभी तक भारत की यात्रा नहीं की है, जबकि नेपाली प्रधानमंत्रियों की पहली विदेश यात्रा परंपरागत रूप से भारत होती रही है। 17 अगस्त को भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने नेपाल जाकर पीएम मोदी का निमंत्रण ओली को सौंपा था। रिपोर्टों के अनुसार, ओली की भारत यात्रा 16 सितंबर को होनी थी।

नेपाल में जब भी राजनीतिक संकट होता है, लोग भारत या चीन से जोड़कर देखने लगते हैं, प्रधान कहते हैं। इस साल की शुरुआत में जो राजशाही के समर्थन में प्रदर्शन हुए थे, उन्हें भी भारत से जोड़ने की चर्चा थी। प्रधान मानते हैं कि ओली भारत-नेपाल के गहरे रिश्तों की तुलना चीन से करना यथार्थवादी नहीं है। ऐतिहासिक रूप से नेपाल की सीमाएँ भारत और तिब्बत से लगी थीं न कि चीन से।

कौन है नेपाल की राजनीतिक उथल-पुथल के पीछे?

हर कोई अपनी थ्योरी दे रहा है कुछ कहते हैं कि ओली चीन समर्थक हैं और अमेरिका बांग्लादेश की तरह नेपाल में भी भूमिका निभा रहा है; कुछ चीन पर संदेह करते हैं, क्योंकि अमेरिका MCC के जरिए निवेश कर रहा है और कुछ इसे Nepo Kids के खिलाफ Gen Z के गुस्से से जोड़ते हैं, जिसमें प्रोपशाही समर्थक भी घुसे हुए हैं।

अब अचानक अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप, चीन और डीप स्टेट की संलिप्तता की चर्चाएं हो रही हैं, जिससे स्थिति और भ्रमित हो सकती है। प्रधान कहते हैं कि चीन शायद ही इन प्रदर्शनों को हवा दे सकता है, खासकर तराई क्षेत्र में। उसका प्रभाव मुख्यतः काठमांडू घाटी तक सीमित माना जाता है। अगर चीन इस आग को भड़काएगा, तो यह उसी को भी झुलसा सकती है। 1960 के दशक में भी नेपाली जनता चीन के खिलाफ उठ खड़ी हुई थी।

काठमांडू से शुरू हुए ये प्रदर्शन जल्द ही प्रधानमंत्री ओली के गृह ज़िले झापा, फिर पूर्व पीएम गिरिजा प्रसाद कोइराला के जिले सुनसरी, यूपी बॉर्डर से लगे भैरहवा और बिहार बॉर्डर के पास बीराटनगर तक फैल गए।

2008 में राजशाही खत्म होने के बाद से नेपाल में अब तक 13 सरकारें बन चुकी हैं। लेकिन हर सरकार आम जनता की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरी। भ्रष्टाचार और विकास की कमी से जनता में गुस्सा था। राजा ज्ञानेन्द्र शाह के पक्ष में हो रही रैलियों को भी इसी असंतोष से जोड़ा जा रहा है। ओली विरोधी प्रदर्शन अचानक पूरे देश में इतने बड़े पैमाने पर फैल गए यह सवाल उठाता है कि क्या यह वाकई अचानक था? और इसका समय क्यों इतना 'संयोगवश' है?

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Shivam Srivastava is a multimedia journalist with over 4 years of experience, having worked with ANI (Asian News International) and India Today Group. He holds a strong interest in politics, sports and Indian history.

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