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स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति मुर्मु का संबोधन, स्वतंत्रता सेनानियों को दी श्रद्धांजलि, देशवासियों को दी शुभकामनाएँ
पूरे देश में 15 अगस्त को 79वां स्वतंत्रता दिवस धूमधाम से मनाया जाएगा। इससे एक दिन पहले, 14 अगस्त को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु राष्ट्र को संबोधित किया।
पूरे देश में 15 अगस्त को 79वां स्वतंत्रता दिवस धूमधाम से मनाया जाएगा। इससे एक दिन पहले, 14 अगस्त को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु राष्ट्र को संबोधित किया। अपने संबोधन को दौरान उन्होंने कहा, स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर आप सभी को मैं हार्दिक बधाई देती हूं। हम सभी के लिए यह गर्व की बात है कि स्वाधीनता दिवस और गणतंत्र दिवस सभी भारतीय उत्साह और उमंग के साथ मनाते हैं। यह दिवस हमें भारतीय होने के गौरव का विशेष स्मरण करवाता है। 15 अगस्त की तारीख, हमारी सामूहिक स्मृति में गहराई से अंकित है। औपनिवेशिक शासन की लंबी अवधि के दौरान अनेक पीढ़ियों ने ये सपना देखा था कि एक दिन देश स्वाधीन होगा। देश के हर हिस्से में रहने वाले पुरुष और महिलाएं, बूढ़े और जवान विदेशी शासन की बेड़ियों को तोड़ फेंकने के लिए व्याकुल थे। कल जब हम अपने तिरंगे को सलामी दे रहे होंगे तो हम उन सभी स्वाधीनता सेनानियों को भी श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे जिनके बलिदान के बल पर 78 साल पहले 15 अगस्त के दिन भारत ने स्वाधीनता हासिल की थी।
उन्होंने आगे कहा, अपनी आजादी वापस पाने के बाद, हम ऐसे लोकतंत्र के रास्ते पर आगे बढ़े जहां हर वयस्क को मताधिकार प्राप्त हुआ। दूसरे शब्दों में, हम भारत के लोगों ने, अपने भाग्य को आकार देने का अधिकार खुद को दिया। चुनौतियों के बावजूद, भारत के लोगों ने लोकतंत्र को सफलतापूर्वक अपनाया। हमारे लिए, हमारा संविधान और हमारा लोकतंत्र सबसे ऊपर है।
विभाजन के शिकार हुये लोंगो राष्ट्रपति ने दी श्रद्धांजलि
राष्ट्रपति मुर्मु ने विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस पर विचार रखते हुये कहा, अतीत पर दृष्टिपात करते हुए हमें देश के विभाजन से हुए पीड़ा को नहीं भूलना चाहिए, आज हमने विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस मनाया। विभाजन के कारण भयावह हिंसा देखी गई और लाखों लोगों को विस्थापित होने के लिए मजबूर किया गया, हम इतिहास के शिकार हुए लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
मानवीय गरिमा की बुनियाद पर खड़ा भारत का लोकतंत्र
हमारे संविधान में लोकतंत्र को सुदृढ़ रखने वाले चार स्तंभों के रूप में चार मूल्यों का उल्लेख है। ये हैं - न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुता। ये हमारे सभ्यतागत सिद्धांत हैं जिन्हें हमने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पुनः जीवंत बनाया। मेरा मानना है कि इन सबके मूल में मानवीय गरिमा की भावना है। प्रत्येक मनुष्य समान है और सभी के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार किया जाना चाहिए। सभी की स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा तक समान पहुंच होनी चाहिए। सभी को समान अवसर मिलने चाहिए। पारंपरिक व्यवस्था के कारण जो लोग वंचित थे, उन्हें सहायता की आवश्यकता थी। इन सिद्धांतों को सर्वोपरि रखते हुए, हमने 1947 में एक नई यात्रा शुरू की। विदेशी शासन के लंबे वर्षों के बाद, स्वतंत्रता के समय भारत घोर गरीबी में था। लेकिन तब से अब तक के 78 वर्षों में, हमने सभी क्षेत्रों में असाधारण प्रगति की है। भारत एक आत्मनिर्भर राष्ट्र बनने की राह पर अग्रसर है और पूरे आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ रहा है।
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