"हमें नहीं मतलब किसकी सरकार हैं!" गवर्नर केस में SC का रौद्र रूप, सरकार को भी लगाई फटकार

गवर्नर केस में सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख, सरकार को फटकार और राजनीति से दूरी का संदेश।

Harsh Srivastava
Published on: 2 Sept 2025 4:09 PM IST
हमें नहीं मतलब किसकी सरकार हैं! गवर्नर केस में SC का रौद्र रूप, सरकार को भी लगाई फटकार
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SC on Governor Case Hearing: भारत की संवैधानिक राजनीति में एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है - क्या राज्यपाल और राष्ट्रपति के पास विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को अनिश्चित काल तक रोके रखने की शक्ति है? इस महत्वपूर्ण मामले पर आज सुप्रीम कोर्ट में एक संवैधानिक बेंच सुनवाई कर रही थी, और इस दौरान हुई तीखी बहस ने सबका ध्यान खींचा। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि उसका फैसला किसी भी राजनीतिक दल की सरकार को देखकर नहीं लिया जाएगा। यह सुनवाई राष्ट्रपति के रेफरेंस पर हो रही है, जिसका उद्देश्य इस संवैधानिक असमंजस को सुलझाना है।

राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप: सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान, तमिलनाडु और केरल सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के बीच एक जोरदार बहस छिड़ गई। सिंघवी ने आरोप लगाया कि कैसे तमिलनाडु और केरल के राज्यपालों ने जानबूझकर विधेयकों को लंबे समय तक रोक रखा है। उन्होंने कहा, "मेरे पास तो चार्ट ही है कि कब-कब तमिलनाडु और केरल के राज्यपालों ने विधेयक रोके थे।" इस पर तुषार मेहता ने जवाबी हमला बोलते हुए कहा कि इन विधेयकों पर "पूरा मंथन" किया गया था और यह भी बताया कि अन्य राज्यों में भी विधेयक रोके गए थे।

बहस तब और तेज हो गई जब तुषार मेहता ने कहा, "यदि आप गलत रास्ते पर ही चलना चाहते हैं तो मुझे इसमें भी कोई परेशानी नहीं है। मैं उस रास्ते पर भी चल सकता हूं, लेकिन इसकी जरूरत नहीं है।" इस पर सिंघवी ने पलटवार करते हुए कहा, "मिस्टर मेहता ऐसी धमकियां यहां काम नहीं करेंगी।" सिंघवी ने इशारा किया कि तुषार मेहता के पास भी ऐसी लिस्ट हो सकती हैं, जिनमें भाजपा शासित राज्यों में भी देरी की गई थी। इसके जवाब में मेहता ने कहा कि उनके पास तो 1947 से लेकर अब तक की पूरी डिटेल है कि कब-कब संविधान का उल्लंघन किया गया।

कोर्ट का सख्त रुख: 'इसे राजनीतिक मंच न बनाएं'

इस तीखी और राजनीतिक बहस को देखते हुए, चीफ जस्टिस बीआर गवई ने तत्काल हस्तक्षेप किया। उन्होंने दोनों वकीलों को सख्त लहजे में फटकार लगाते हुए कहा, "मैं इस अदालत को राजनीतिक मंच नहीं बनने देना चाहता।" उन्होंने साफ किया कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला किसी भी पार्टी की सरकार या पहले सत्ता में रहे दल के आधार पर तय नहीं होगा। उन्होंने कहा कि उनका उद्देश्य केवल संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या करना और एक स्पष्ट दिशा-निर्देश देना है, ताकि भविष्य में इस तरह के विवादों से बचा जा सके।

यह मामला भारत के संघीय ढांचे के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। राज्यों द्वारा पारित विधेयकों को अगर राज्यपाल अनिश्चित काल तक रोके रखते हैं, तो इससे राज्य सरकारों का कामकाज प्रभावित होता है और संवैधानिक गतिरोध पैदा होता है। सुप्रीम कोर्ट की यह सुनवाई इस समस्या का समाधान निकालने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह देखना बाकी है कि क्या सुप्रीम कोर्ट राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए 90 दिनों की समय सीमा तय करेगा, जैसा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा मांग की जा रही है। यह फैसला भारतीय राजनीति में एक नया अध्याय लिख सकता है और केंद्र-राज्य संबंधों को फिर से परिभाषित कर सकता है।

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Harsh Srivastava

Harsh Srivastava

News Coordinator and News Writer

Harsh Shrivastava is an enthusiastic journalist who has been actively writing content for the past one year. He has a special interest in crime, politics and entertainment news. With his deep understanding and research approach, he strives to uncover ground realities and deliver accurate information to readers. His articles reflect objectivity and factual analysis, which make him a credible journalist.

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