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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने रिटायर्ड जजों को पद देने पर उठाए सवाल, सरकार की भूमिका भी बनी चर्चा का विषय
Jagdeep Dhankar questions Judiciary: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने रिटायर्ड जजों को सरकारी पद देने पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका में चयन और संरक्षण की प्रक्रिया निष्पक्षता पर असर डालती है। साथ ही CBI निदेशक की नियुक्ति में CJI की भूमिका और प्रस्तावना में बदलाव पर भी आपत्ति जताई।
Jagdeep Dhankar questions Judiciary: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक बार फिर न्यायपालिका की भूमिका और उसकी कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। कोच्चि स्थित नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ एडवांस्ड लीगल स्टडीज (NUALS) में छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को सरकारी पदों पर नियुक्त करने की परंपरा न्यायपालिका की निष्पक्षता को प्रभावित कर सकती है।
धनखड़ ने यह तर्क दिया कि संवैधानिक संस्थाओं के कुछ पदाधिकारियों को सेवानिवृत्ति के बाद किसी भी सरकारी पद को स्वीकार करने की अनुमति नहीं होती। जैसे कि लोक सेवा आयोग के सदस्य या नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक। यह व्यवस्था उन्हें दबाव और प्रलोभन से मुक्त रखने के लिए है। इसी तरह की पद्धति, उन्होंने कहा, न्यायाधीशों पर भी लागू होनी चाहिए।
हालांकि, इसी टिप्पणी में एक विडंबना भी झलकती है क्योंकि कई पूर्व जजों को सरकारी पदों पर नियुक्त करने का कार्य केंद्र सरकार द्वारा ही किया गया है। 2023 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जजों में से करीब 21% को केंद्र द्वारा विभिन्न आयोगों और ट्रिब्यूनलों में नियुक्त किया गया।
धनखड़ ने कुछ प्रमुख उदाहरणों का भी जिक्र किया। जैसे जस्टिस अब्दुल नजीर को रिटायरमेंट के तुरंत बाद आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाए जाने या पूर्व CJI रंजन गोगोई को राज्यसभा भेजे जाने की घटनाएं।
सीबीआई निदेशक की नियुक्ति में CJI की भूमिका पर भी जताई आपत्ति
अपने भाषण में उपराष्ट्रपति ने CBI डायरेक्टर की नियुक्ति में भारत के मुख्य न्यायाधीश की भागीदारी पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, CBI निदेशक की नियुक्ति कार्यपालिका का दायित्व है, इसमें न्यायपालिका के शीर्ष पदाधिकारी की भूमिका कहाँ तक उचित है? उन्होंने इसे संविधान की भावना के विरुद्ध बताया।
गौरतलब है कि पहले चुनाव आयोग की नियुक्तियों में भी CJI शामिल होते थे। लेकिन 2023 में सरकार ने एक नया कानून लाकर यह भूमिका समाप्त कर दी और इसमें कानून मंत्री को शामिल कर दिया गया।
संविधान की प्रस्तावना में बदलाव पर भी टिप्पणी
धनखड़ ने आपातकाल के दौरान संविधान की प्रस्तावना में किए गए बदलावों पर भी नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि माता-पिता की तरह प्रस्तावना को भी बदला नहीं जा सकता। इस पर आपातकाल के दौरान 'सोशलिस्ट' और 'सेक्यूलर' जैसे शब्द जोड़े जाना लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ था।
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