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कुत्तों को हटाने का क्या है ‘वैक्यूम इफेक्ट’? जानें साइंटिस्ट क्यों दे रहे हैं चेतावनी! यहां समझिए
Vacuum Effect Of Removing Dogs: यह समस्या सिर्फ कुत्तों तक सीमित नहीं... बल्कि हमारे स्वास्थ्य, पर्यावरण और सड़क सुरक्षा के लिए भी बेहद खतरनाक साबित हो सकती है। लेकिन इन्हें सड़कों से और शहरों से हटाने से वैक्यूम इफेक्ट (Vacuum Effect) बढ़ जाएगा।
Vacuum Effect Of Removing Dogs
Vacuum Effect Of Removing Dogs: आज हर घर में आपको पालतू कुत्ते ज़रूर दिख जाते होंगे। देखा जाए तो पिछले 4 से 5 सालों कुत्ते पालने का ट्रेंड तेज़ी से बढ़ा। वहीं, बीते 2 सालों में पालतू कुत्ते द्वारा किये गए हमले का शिकार बने लोगों की खबर भी सामने आयी। कई बार तो ऐसी खबर सामने आ जाती थी कि हर कोई हैरान रह जाए... कि कुत्ते ने अपने ही मालिक को नोंच-नोंचकर कर मार डाला। इस कारण कई ब्रीड वाले कुत्तों को सरकार बैन कर दिया गया।
अभी ये मामला थमा नहीं है... तो अब भारत में आज एक बड़ी संख्या में करीब 6 करोड़ स्वच्छंद (घूमने वाले) कुत्ते घूम रहे हैं जो हर साल लाखों लोगों पर हमला करते हैं। फिलहाल ऐसी खबरें प्रतिदिन सामने आ रही हैं, जिससे हर कोई डरा हुआ है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी बड़ा फैसला किया है। बता दे, यह समस्या सिर्फ कुत्तों तक सीमित नहीं... बल्कि हमारे स्वास्थ्य, पर्यावरण और सड़क सुरक्षा के लिए भी बेहद खतरनाक साबित हो सकती है। लेकिन इन्हें सड़कों से और शहरों से हटाने से वैक्यूम इफेक्ट (Vacuum Effect) बढ़ जाएगा।
आखिर क्या है वैक्यूम इफेक्ट ?
वैक्यूम इफेक्ट (Vacuum Effect) का मतलब होता है, जब किसी क्षेत्र से स्वच्छंद यानी घूमने वाले कुत्तों को हटा दिया जाता है, तो उनके स्थान पर नए कुत्ते आकर बस जाते हैं। यह इसलिए होता है क्योंकि खाने का स्रोत (कचरा) और स्थान खाली हो जाता है, जो नए कुत्तों को आकर्षित करता है। मगर इस बात पर भी जोर दिया जा रहा है कि सिर्फ कुत्तों को हटाना काफी नहीं है, जबतक कचरा प्रबंधन और खाने को सोर्सेज को नियंत्रित न किया जाए।
अवारा कुत्तों से बढ़ता खतरा
पशु कल्याण बोर्ड ऑफ इंडिया (AWBI) के मुताबिक, भारत में अनुमानित 6 करोड़ स्वच्छंद कुत्ते घूम रहे हैं, जो बिना मालिक के हैं। ये कुत्ते हर साल लाखों लोगों पर हमला करते हैं। कई बार ये हमले इतने खौफनाक होते हैं कि लोगों की जान चली जाती है। रेबीज (जो कि कुत्ते के काटने होता है) से हर साल तकरीबन 20,000 से अधिक मौतें होती हैं, जो भारत को रेबीज की राजधानी बनाता है।
इसके अलावा, ये कुत्ते वन्यजीवों को भी बुरी तरह से प्रभावित करते हैं। सड़क पर घूमने वाले कुत्ते सड़क दुर्घटनाओं का दूसरा सबसे बड़ा कारण हैं। इन कुत्तों के कचरे में भटकने से सड़कों की साफ-सफाई में बाधा आती है। चूहों-छिपकलियों के लिए खाना मिल जाता है, जो बीमारियों को बढ़ावा देता है।
क्या सही हैं सरकार की नीतियां ?
राज्य नगर पालिका कानून और पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के अंतर्गत पहले, सड़क पर घूमने वाले कुत्तों को सार्वजनिक इलाकों से हटाकर उनकी नसबंदी या मारने की इजाजत थी। लेकिन साल 2001 में संस्कृति मंत्रालय ने पशु जन्म नियंत्रण (ABC) नियम, 2001 लागू किए। साल 2023 में पशुपालन विभाग ने इसे नया रूप दे दिया। इन नियमों का मुख्य उद्देश्य कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण करना है, लेकिन इन मंत्रालयों का जन स्वास्थ्य से कोई संबंध नहीं है, जिससे नीतियां प्रभावी नहीं हो पा रही हैं।
पशु कल्याण बोर्ड ऑफ इंडिया (AWBI) ने ABC नियमों के दस्तावेज में बहुत सी सही बातें नहीं लिखी गयी हैं। यह मालिक वाले कुत्तों के फायदों को अवारा कुत्तों के साथ मिला देता है, उनके नुकसान को कम दिखाता है। लोगों को ही हमलों का दोषी ठहराता है।
एलन बेक की एक बुक 'द इकोलॉजी ऑफ स्ट्रे डॉग्स' में लिखा है कि स्वच्छंद कुत्ते कचरे को फैलाकर उस क्षेत्र की स्वछता में खलल डालते हैं। कचरा उठाने की प्रक्रिया बहुत धीरे करते हैं। तमाम चूहों-छिपकलियों का खाना बनते हैं। फिर भी, पशु ज्यादातर समूह इन्हें कचरा और चूहे नियंत्रण के साधन कहते हैं, जबकि ये कुत्ते वही बीमारियां फैलाते हैं जो अक्सर चूहे द्वारा भी फैलते हैं। और इसी वजह से इंसानों की मौत का खतरा भी अधिक बढ़ जाता है।
इंटरनेशनल नियम का क्या कहना है ?
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, अवारा जानवरों और कीटों को नियंत्रित करने का पहला कदम खाने का स्रोत नष्ट करना है। लेकिन AWBI सार्वजनिक स्थानों पर कुत्तों को खाना देने की सलाह देता है, जिससे यह मानव स्वास्थ्य सुरक्षा का मुद्दा कुत्तों को बढ़ावा देने की नीति में परिवर्तित हो गया है।
अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी ने कुत्ते के मल को जहरीले प्रदूषकों (जैसे वाहनों के रसायन और कीटनाशकों) की श्रेणी में रखा है। केवल 100 कुत्तों के 2-3 दिन के मल से इतने बैक्टीरिया पैदा हो सकते हैं कि 20 मील की दूरी तक में पानी के स्रोत बंद करने पड़ जाए। भारत में, तकरीबन 6 करोड़ सड़कों पर घूमने वाले कुत्ते हर दिन लगभग 30,000 टन जहरीले मल सड़कों पर करते हैं, जो खतरनाक बीमारियां फैलाते हैं।
अवारा कुत्तों को हटाने के असर और लाभ
अवारा कुत्तों को सड़कों और शहरों से हटाने से कई लाभ मिल सकते हैं, लेकिन सबसे पहले इसके प्रभाव भी जानना जरूरी है...
प्रभाव
- वैक्यूम इफेक्ट का ख़तरा: यदि कचरा और खाना स्रोत खत्म नहीं किया गया, तो नए कुत्ते आकर जगह भर सकते हैं। इसके लिए सख्त कचरा प्रबंधन आवश्यक है।
- प्रारंभिक विरोध: पशु अधिकार समूह और कुछ लोग इसके विरोध में आगे आ सकते हैं, जिससे समाज में तनाव बढ़ सकता है।
- लागत: कुत्तों की नसबंदी, टीकाकरण और पुनर्वास के लिए शुरू में निवेश करना पड़ेगा।
फायदे
- जन स्वास्थ्य सुरक्षा: कुत्तों के काटने और रेबीज से होने वाली मौतें घटने लगेंगी।
- सड़क की स्वछता: सड़क दुर्घटनाएं कम हो जाएंगी, क्योंकि कुत्ते सड़क पर नहीं घूमेंगे।
- पर्यावरण का संरक्षण: वन्यजीवों पर हमले घटना शुरू हो जायेंगे। कुत्तों का जहरीला मल सड़कों से हट जाएगा, जो पानी और मिट्टी को प्रदूषित करता है।
- शहरी की स्वछता: कचरे में फैलाने से होने वाली गंदगी और चूहों की संख्या घट जाएगी।
- आर्थिक रूप से फ़ायदा: दुर्घटना और बीमारी के खर्च कम हो जायेंगे। पर्यटन में वृद्धि होगी।
- कुत्तों का कल्याण: मालिक वाले कुत्तों की तरह इन्हें भी सुरक्षित आश्रय और अच्छी तरह से देखभाल किया जाएगा जीससे ये कुत्ते सड़कों पर भूखे और बीमार जीवन नहीं जियेंगे।
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