Dev Deepawali Kab Hai: देव दीपावली 2025 तिथि, पूजा नियम, कितने दीपक जलाना शुभ और महत्व

Dev Deepawali Kab Hai: जानें देव उठनी एकादशी और देव दीपावली कब है, कितने दीप जलाना शुभ है और भगवान विष्णु व तुलसी पूजा का महत्व क्या है।

Jyotsana Singh
Published on: 2 Nov 2025 1:48 PM IST
Dev Deepawali Kab Hai
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Dev Deepawali Kab Hai 

Dev Deepawali Kab Hai: वाराणसी के गंगा घाटों टिमटिमाते लाखों दीपक, जिनकी रोशनी लहरों पर झिलमिलाती किसी स्वर्ग सा नजारा पेश करती है। आस्था की महिमा के बीच हवा में फैलती सुगंधित धूप और फूलों संग मंत्रों की ध्वनि और दीपों की आभा एक साथ मिलकर ऐसा वातावरण बनाती है, जो हर दिल को श्रद्धा और आनंद से भर देता है। देवउठनी से लेकर देव दीपावाली के दिन भगवान विष्णु के जागरण का उत्सव पूरे उत्साह से मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन का व्रत और पूजा व्यक्ति के जीवन में सौभाग्य, समृद्धि और शांति लाते हैं। वहीं दीपावली पर्व की भव्यता के बाद अब घर-घर देवोत्थानी एकादशी और देव दीपावाली की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। साल के इस सबसे शुभ कार्तिक मास के दौरान जब चार महीने की चातुर्मास की अवधि समाप्त होती है और भगवान विष्णु अपनी योगनिद्रा से जागते हैं। इस जागरण पर्व को देवउठनी एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। यह दिन श्रद्धा, भक्ति और खुशियों का संगम होता है। पूरे देश में इस दिन घर-घर में दीपक जलाए जाते हैं, भगवान विष्णु की पूजा होती है और तुलसी-शालिग्राम का विवाह रचाया जाता है। इस पर्व के साथ ही विवाह और मांगलिक कार्यों की शुरुआत फिर से हो जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, वर्ष 2025 में देवउठनी एकादशी 1 नवंबर (शनिवार) को मनाई जाएगी। वहीं तिथि के मुताबिक देव दीपावली का त्योहार 5 नवंबर को मनाया जाएगा।

जागरण और नवजीवन का प्रतीक है देवउठनी एकादशी

देवउठनी एकादशी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं बल्कि जागरण और नवजीवन का प्रतीक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु आषाढ़ मास की एकादशी के दिन क्षीर सागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। उनके जागने से ही देवताओं की शक्तियां पुनः सक्रिय होती हैं और सृष्टि में शुभ कार्यों की शुरुआत होती है। इस दिन तुलसी माता और भगवान शालिग्राम का विवाह भी किया जाता है। तुलसी माता को देवी लक्ष्मी का स्वरूप और शालिग्राम को भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है। इस विवाह में सम्मिलित होने या इसे घर पर करने से वैवाहिक जीवन में प्रेम, सौहार्द और स्थिरता आती है।

देवउठनी एकादशी पर दीपदान का महत्व और कितने दीये जलाना है शुभ


देवउठनी एकादशी पर दीपदान को सबसे बड़ा पुण्य कार्य कहा गया है। माना जाता है कि जब भगवान विष्णु नींद से जागते हैं, तो दीपों का प्रकाश उनका स्वागत करता है। यही कारण है कि इस दिन घर-घर में दीपक जलाकर भगवान का आशीर्वाद लिया जाता है।

दीपक की संख्या की बात करें तो परंपरा के अनुसार 1, 5, 7, 11, 21, 51 या 108 दीपक जलाना शुभ माना गया है। अगर आप सीमित संख्या में दीपक जलाना चाहते हैं, तो 5 दीपक जलाना सबसे उत्तम माना जाता है। यह पांच दीपक पंचदेव गणेश, शिव, शक्ति, सूर्य और विष्णु का प्रतीक होते हैं। तुलसी माता के पास एक दीपक, घर के मंदिर में एक, रसोई में एक और मुख्य द्वार के दोनों ओर दो दीपक जलाने की परंपरा है।

जो अधिक पुण्य प्राप्त करना चाहते हैं, वे 11 दीपक जलाते हैं। तुलसी चौरे में, भगवान विष्णु की चौकी पर, रसोई में, मंदिर में, पीपल के नीचे और मुख्य द्वार पर दीपक रखना शुभ माना गया है।

कुछ लोग 7 दीपक जलाते हैं, जो सप्ताह के सातों दिनों और सात लोकों का प्रतीक होते हैं। तुलसी के पास 5 घी के दीपक जलाना विशेष रूप से फलदायी माना गया है, क्योंकि यह वैवाहिक जीवन में प्रेम, समृद्धि और सुख की वृद्धि करता है।

जो लोग केवल एक दीपक जला सकते हैं, उन्हें वह तुलसी माता के पास अवश्य जलाना चाहिए। यह एक दीपक ही भगवान विष्णु और लक्ष्मी माता दोनों को प्रसन्न करता है।

सामर्थ्यवान भक्त 11,000 दीपक जलाकर महादान का संकल्प भी लेते हैं, जिसे अत्यंत पुण्यदायी माना गया है।

देवउठनी एकादशी पर दीपदान की विधि और नियम


देवउठनी एकादशी पर दीपक हमेशा गाय के शुद्ध घी या तिल के तेल से जलाना चाहिए। मिट्टी या पीतल के दीपक सबसे शुभ माने जाते हैं। दीपक जलाते समय भगवान विष्णु का मंत्र 'ॐ नमो नारायणाय' जपते हुए तुलसी माता की सात परिक्रमा करनी चाहिए।

मुख्य द्वार पर दीपक जलाने से घर में शुभ शक्तियों का प्रवेश होता है, रसोई में दीपक जलाने से अन्न की बरकत बनी रहती है और तुलसी चौरे में दीपक जलाने से घर में लक्ष्मी का वास होता है। रातभर तुलसी के पास दीपक जलता रहना शुभ माना जाता है, क्योंकि यह देवी लक्ष्मी के आगमन का प्रतीक है।

देवउठनी एकादशी पर तुलसी विवाह का पौराणिक महत्व


देवउठनी एकादशी की शाम को तुलसी माता और भगवान शालिग्राम का विवाह संपन्न किया जाता है। इस शुभ विवाह में शामिल होने या आयोजन करने से विवाह में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और दांपत्य जीवन में स्थायित्व आता है। तुलसी विवाह सृष्टि के सबसे पवित्र विवाहों में से एक है। इस दिन का विवाह प्रेम, समर्पण और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।

देवउठनी एकादशी केवल पूजा और व्रत का दिन नहीं, बल्कि सुख, समृद्धि और शुभता का आशीर्वाद लेकर हमारे जीवन में आता है।

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