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Indian Universities History: जानिये विश्वविद्यालयों के कुल गीत व उनका इतिहास

Indian Universities Kulgeet History: आज हम आपको कुछ विश्विद्यालयों के कुल गीत से आप को परिचित करायेंगें और इनके इतिहास से भी अवगत करवायेंगें...

Yogesh Mishra
Published on: 7 July 2025 7:30 PM IST
Indian Universities Kulgeet History in Hindi
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Indian Universities Kulgeet History in Hindi

Indian Universities Kulgeet History: आप ने तालीम की सीढ़ियों पर यदि कदम रखा है। तो उच्च शिक्षा तक पहुंचना आपका सपना होगा। और यदि आप ने तालीम पूरी की होती तो या तो उच्च शिक्षा को परिसरों के आनंद व अध्ययन का लुत्फ उठाया रखा। अथवा उच्च शिक्षा परिसर में न पढ़ पाने का पछतावा होगा। उच्च शिक्षा की तालीम वैसे तो तमाम डिग्री कॉलेजों में भी होती है। पर आप सब अपनी अपनी डिग्रियाँ देखें तो आप को पता चलेगा कि पढ़ाई भले ही किसी डिग्री कॉलेज में हुई हो पर डिग्री किसी न किसी विश्वविद्यालय की ही होती है। हर विश्वविद्यालय के सर्वेसर्वा कुलपति होते हैं। यानी साफ़ है कि हर विश्वविद्यालय एक कुल की तरह होता है। यही वजह है कि विश्वविद्यालयों के अपने अपने तरह के कुल गीत होते हैं। हम आप को कुछ विश्विद्यालयों के कु गीत से आप को परिचित कराते हुए कुल गीतों के इतिहास भी बताते हैं।

यह कुलगीत अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का है।इसे “तराना-ए-अलीगढ़” कहा जाता है। AMU के छात्र इस तराने को ‘हमारा तराना’ कहकर संबोधित करते हैं।इसे असरार उल हक़ ‘मजाज़’ लखनवी ने लिखा हैं। मजाज़ उर्दू के मशहूर शायर थे, जिनकी शायरी में रूमानी अंदाज़, इंक़लाबी सोच और भावनात्मक गहराई दिखाई देती है। मजाज़ ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से ही शिक्षा प्राप्त की थी। वे विश्वविद्यालय के भावनात्मक-रचनात्मक माहौल से गहराई से जुड़े रहे।’तराना-ए-अलीगढ़’ को उन्होंने AMU छात्रों की भावनाओं, वफ़ादारी और गौरव को व्यक्त करने के लिए लिखा था।उन्हें ‘ रोमांटिक रिवोल्यूशनरी’ शायर भी कहा जाता है। Tarana-e-Aligarh AMU के छात्रों द्वारा Founder’s Day, Convocation, और अन्य सांस्कृतिक अवसरों पर गाया जाता है।





ये मेरा चमन है, मेरा चमन,

मैं अपने चमन का बुलबुल हूँ।

मुझे फूलों से है प्यार बहुत,

मेरा रंग-रूप है नूर-ए-वतन,

मैं अपने चमन का बुलबुल हूँ।

उड़ानों से हौसले हैं मेरे,

मुझे आसमाँ से है वास्ता,

मेरे पंखों में है तूफ़ाँ की लगन,

मैं अपने चमन का बुलबुल हूँ।

यहाँ की फ़िज़ा, यहाँ की हवा,

मुझे जान से भी है प्यारी सदा,

यही है मेरी आरज़ूओं का गगन,

मैं अपने चमन का बुलबुल हूँ।

ये मेरा चमन है, मेरा चमन,

मैं अपने चमन का बुलबुल हूँ।

Translation in English:

“This is my garden, my beloved garden,

I am the nightingale of my garden.

I love every flower in it,

My appearance reflects the light of my nation.

I am the nightingale of my garden.

I soar with passion, I reach for the skies,

My wings carry the fire of a storm.

The air and breeze here are dearer than life,

This is the sky of all my dreams.

This is my garden, my beloved garden,

I am the nightingale of my garden.”

शांतिनिकेतन (Visva-Bharati University)-इस विश्वविद्यालय के कुल गीत की रचना नोबल पुरस्कार विजेता व विश्वविद्यालय के संस्थापक गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर ने की थी । 1905 में बंगाल विभाजन (Partition of Bengal) के खिलाफ जनभावनाओं को एकजुट करने और बंगाली अस्मिता को सम्मान देने के लिए यह गीत लिखा गया था। यह गीत बांग्लादेश का राष्ट्रगान भी है। वहाँ के संगीत, कला, दर्शन और साहित्यिक पाठ्यक्रम में उनकी रचनाओं का केंद्रीय स्थान है। यह गीत विश्वभारती में श्रद्धा, सांस्कृतिक गौरव और मातृभूमि के प्रति प्रेम का प्रतीक माना जाता है। इसे रवीन्द्र संगीत (Rabindra Sangeet) के रूप में सम्मानित स्थान प्राप्त है। विश्वभारती का आदर्श है- Where the world makes a home in a single nest। यानी जहां पूरी दुनिया एक घोंसले में बसती है। शांतिनिकेतन में शिक्षा और संगीत एक साथ चलते हैं। वहाँ कक्षा की शुरुआत प्रार्थना या गीत से होती है।


बांग्ला भाषा में लिखे गये इस लेख का शीर्षक है-

আমার সোনার বাংলা” (Amar Shonar Bangla)

हिंदी अनुवाद है- मेरी स्वर्णिम बंगला।

मूल गीत:

আমার সোনার বাংলা,

আমি তোমায় ভালবাসি।

চিরদিন তোমার আকাশ,

তোমার বাতাস,

আমার প্রাণে বাজায় বাঁশি।

ও মা, ফাগুনে তোর আমের বনে

ঘ্রাণে পাগল করে—

মরি হায়, হায় রে—

ও মা, অঘ্রানে তোর ভরা খেতে

আমি কী দেখেছি মধুর হাসি।

কি শোভা, কি ছায়া গো

কি স্নেহ, কি মায়া গো—

কি আঁচল বিছায়েছ বটের মূলে,

নদীর কূলে কূলে।

মা, তোর মুখের বাণী

আমার কানে লাগে সুধার মতো,

মরি হায়, হায় রে—

हिंदी अनुवाद-

मेरी स्वर्णिम बंगला,

मैं तुमसे प्रेम करता हूँ।

तुम्हारा आकाश, तुम्हारी हवा,

सदैव मेरी आत्मा में बाँसुरी बनकर गूंजती है।

हे माँ, वसंत ऋतु में तेरे आम के बागानों की ख़ुशबू

मुझे पागल कर देती है—

हाय! मैं उस पर मर मिटता हूँ।

हे माँ, अगहन मास में तेरे भरे-पूरे खेतों में

मैंने देखी है मधुर मुस्कान।

क्या शोभा है, कैसी छाया है,

कितना स्नेह, कितनी ममता—

क्या सुंदर आँचल तूने बट वृक्ष के नीचे,

नदी के तटों पर बिछाया है।

माँ, तेरे मुख की वाणी

मेरे कानों में अमृत के समान पड़ती है—

हाय! मैं उस पर भी मर मिटता हूँ।

पहलू विवरण

लेखक रवीन्द्रनाथ ठाकुर (Tagore)

रचना वर्ष 1905 (बंगाल विभाजन के विरोध में)

शांतिनिकेतन में भूमिका सांस्कृतिक और भावनात्मक कुलगीत के रूप में, रवींद्र संगीत के तहत गायन

बांग्लादेश में भूमिका 1971 से आधिकारिक राष्ट्रगान (प्रथम 10 पंक्तियाँ)

रवीन्द्रनाथ ठाकुर, राष्ट्रगीत और शांतिनिकेतन का त्रिकोण

गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर का योगदान:

• रवीन्द्रनाथ ठाकुर भारत के एकमात्र ऐसे साहित्यकार हैं जिनकी दो रचनाएँ दो अलग-अलग देशों के राष्ट्रगान बनीं। भारत का राष्ट्रगान-‘ जन गण मन।’ बांग्लादेश का राष्ट्रगान-‘आमार सोनार बांग्ला।’ साथ ही, श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रगान ‘नमों नमों माता’ पर भी उनका अप्रत्यक्ष प्रभाव रहा।

जन गण मन की रचना: 1911 में हुई थी। इसे सबसे पहले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में 27 दिसम्बर, 1911 को गाया गया था। इसकी भाषा तत्सम संस्कृत-प्रधान बांग्ला व अत्यंत शुद्ध और काव्यात्मक है।यह गीत समष्टि भारतीय चेतना को अभिव्यक्त करता है — भारत की विविधता, संस्कृति, राज्यों और एकता का गौरवगान है।

बांग्लादेश का राष्ट्रगान की भी रचना: 1905 में माँ बांग्ला के प्रति गहन प्रेम और बांग्ला संस्कृति की सुंदरतम अभिव्यक्ति के लिए लिखा गया। 1971 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता के बाद इसे राष्ट्रगान घोषित किया गया। इसमें मातृभूमि, प्रकृति, फसल, हवा, नदी, और ममता का समावेश है।

जन गण मन और आमार सोनार बांग्ला – अंतर और समानता

विशेषता जन गण मन आमार सोनार बांग्ला

रचना वर्ष 1911 1905

उद्देश्य अखिल भारतीय एकता और समर्पण बंगाल विभाजन के विरोध में सांस्कृतिक एकता

राष्ट्रगान के रूप में भारत बांग्लादेश

भाषा संस्कृतनिष्ठ बांग्ला सरल बांग्ला

स्वरूप प्रार्थना और गौरवगान मातृभूमि की स्तुति

शांतिनिकेतन में प्रयोग राष्ट्रीय पर्वों और समारोहों में

गीत की प्रथम स्वरलिपि (notation) संगीत पत्रिका Shongeet Biggnan Probeshika में सितंबर 1905 में प्रकाशित हुई थी।इसकी संगीत व्यवस्था की प्रारंभिक ड्राफ्ट टैगोर ने ही गाई, और इंदिरा देवी चौधुरानी ने Baul धुन “Ami Kothay Pabo Taare” के आधार पर स्वर लिखे; इन्हें टैगोर ने मंजूर किया । रवींद्रनाथ टैगोर ने गीत की धुन गायक रामकथा या बाउल गायन शैली से प्रेरित होकर बनाई, विशेषकर Gagan Harkara की “Ami Kothay Pabo Taare” से। आधुनिक इंस्टूमेंटल अरेंजमेंट, बांग्लादेश के संगीतकार समर दास ने किए ।

पहलू विवरण

हस्तलिपि स्रोत Shongeet Biggnan Probeshika, सितंबर 1905

स्वरलिपि रचयिता इंदिरा देवी चौधुरानी (टैगोर की स्वीकृति सहित)

मूल धुन स्रोत Gagan Harkara की Baul धुन

आधुनिक अरेंजमेंट Samar Das

ऑडियो उपलब्धता YouTube, Spotify, Apple Music

लखनऊ विश्वविद्यालय; Lucknow University- इस विश्वविद्यालय का कुलगीत

लखनऊ विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के वरिष्ठ आचार्य एवं विद्वान पं. बदरी नारायण तिवारी जी ने लिखा है। इस गीत का संगीत संयोजन विश्वविद्यालय के ही संगीत के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. शांति नारायण ने किया था। लखनऊ विश्वविद्यालय की स्थापना 1921 में हुई थी, लेकिन कुलगीत की रचना इसके कई दशक बाद की गई। इस गीत का शीर्षक है-शुभ्र स्वर में गाओ गान( Shubhra Swar Mein Gao Gaan) इस कुलगीत में संस्कृत भाषा की शुद्धता, भारतीय दर्शन, राष्ट्रसेवा का भाव, और विद्या के प्रति निष्ठा गहराई से प्रतिबिंबित होते हैं। यह कुलगीत हर दीक्षांत समारोह, विश्वविद्यालय स्थापना दिवस, और प्रवेश समारोह में सामूहिक रूप से गाया जाता है।

कुलगीत का मूल संस्कृत पाठ:

शुभ्रस्वरे गानं गायाम

विद्यां वदेम नितरां जयाय।

ज्ञानं बृंहयेम कांतया

सुसंस्कृतां मनसा वदेम॥

संवदेम विद्या पथेन

संवर्धयेम भारतं मातरम्।

सर्वे स्युः सुखिनः सदा

विश्वे विद्यां प्रसारयेम॥

विश्वविद्यालय लखनऊ नाम

भाति भूमौ शुभं गानाय॥

सौम्यं समृद्धिं च वहेम

सर्वज्ञतायै नमः प्रपद्ये॥

हिंदी भावार्थ:

“शुभ्र स्वर में हम ज्ञान का गान करें,

हम सदैव विजय के लिए विद्यावाचन करें।

ज्ञान को सुंदरता के साथ पुष्ट करें,

शुद्ध मन से उसे अभिव्यक्त करें।

हम विद्या के पथ पर साथ चलें,

भारत माता का उत्थान करें।

सभी सदा सुखी रहें,

और ज्ञान को विश्वभर में फैलाएँ।

‘लखनऊ विश्वविद्यालय’ इस धरती पर शुभ गायन का केंद्र बने।

शांति और समृद्धि की धारा हम वहन करें,

संपूर्ण ज्ञान को नमन करते हुए हम समर्पित हों।”

इस कुलगीत की विशेषताएँ:

विशेषता विवरण

भाषा संस्कृत

मुख्य विषय ज्ञान, संस्कृति, भारत माता, विश्व कल्याण

गायन शैली सामूहिक स्वर में, शुद्ध उच्चारण

उद्देश्य विश्वविद्यालय के मूल मूल्यों और दर्शन को स्थापित करना

भावना राष्ट्रभक्ति, विद्या का प्रकाश, वैश्विक सौहार्द

मेरठ विश्वविद्यालय; Meerut University। इसे अब चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय (Chaudhary Charan Singh University – CCSU, Meerut) के नाम से जाना जाता है। उत्तर प्रदेश का एक प्रतिष्ठित उच्च शिक्षण संस्थान है। इसका कुलगीत (University Anthem) विश्वविद्यालय की सांस्कृतिक आत्मा, भारतीय ज्ञान परंपरा और राष्ट्र के प्रति समर्पण को दर्शाता है। कुलगीत के रचयिता का नाम विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा औपचारिक रूप से घोषित नहीं किया गया है, लेकिन माना जाता है कि यह गीत विश्वविद्यालय के हिंदी/संस्कृत विभाग के सहयोग से तैयार किया गया था। मेरठ विश्वविद्यालय की स्थापना 1965 में हुई थी।1991 में इसका नाम पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह जी के सम्मान में परिवर्तित किया गया।कुलगीत की परंपरा विश्वविद्यालय में 1990 के दशक के उत्तरार्ध में औपचारिक रूप से शुरू हुई।इसका उद्देश्य विश्वविद्यालय के मूल मूल्यों — विद्या, सत्य, सेवा, और राष्ट्र निर्माण को समाहित करना था।

कुलगीत

ज्ञानोदय की ज्योति जलाएँ,

मन का अंधकार मिटाएँ।

नवल सृजन, नव जागरण से,

नव भारत की आशा लाएँ।

सत्य पथ का अनुकरण कर,

हम जीवन को सफल बनाएँ।

चरण सिंह के आदर्शों को,

सदा हृदय में स्थान दिलाएँ।

मेरठ की पावन धरती से,

शिक्षा का दीप जलाएँ।

राष्ट्र सेवा ही धर्म हमारा,

यह संकल्प दोहराएँ।

कानपुर विश्वविद्यालय; Kanpur University । इसका वर्तमान नाम छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय (Chhatrapati Shahu Ji Maharaj University – CSJMU, Kanpur) है, उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख उच्च शिक्षण संस्थान है। इसका कुलगीत (University Anthem) संस्थान की शिक्षा, सेवा, संस्कृति और राष्ट्रभक्ति के मूल्यों को समर्पित है। कुलगीत की रचना विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग और संगीत विभाग के सम्मिलित प्रयासों से की गई है।कई स्रोतों में इसे डॉ. विनोद शुक्ल (हिंदी विभाग) और संगीत विभाग के वरिष्ठ शिक्षकों से जोड़ा गया है, लेकिन इसका कोई सार्वजनिक रूप से प्रमाणित लेखक नहीं घोषित किया गया है। विश्वविद्यालय की स्थापना 1966 में कानपुर विश्वविद्यालय के नाम से हुई।वर्ष 1997 में इसे छत्रपति शाहू जी महाराज के नाम पर पुनःनामित किया गया, जो सामाजिक न्याय, शिक्षा और समरसता के प्रतीक माने जाते हैं। विश्वविद्यालय में कुलगीत गाए जाने की परंपरा 2000 के दशक की शुरुआत में औपचारिक रूप से शुरू हुई।इसका उद्देश्य विश्वविद्यालय के शैक्षणिक, नैतिक, और सामाजिक मूल्यों को एक सांस्कृतिक प्रतीक में पिरोना था।

कुलगीत के लोकप्रिय अंश (हिंदी/संस्कृतनिष्ठ भाषा में):

ज्ञानदीप जले मन में,

सत्कर्मों की राह चले।

मानवता का भाव जगे,

यश, चरित्र, पर सत्य पले।

छत्रपति शाहू का आदर्श,

हर विद्यार्थी में उतरे।

कर्मभूमि बने शिक्षा की,

जीवन का पथ उज्ज्वल करे।

संस्कारों का दीप जले,

नवयुग का निर्माण हो।

संस्कृति, सेवा, शील से,

विश्व में भारत महान हो।

कुलगीत की विशेषताएँ:

विशेषता विवरण

भाषा संस्कृतनिष्ठ हिंदी

मुख्य मूल्य शिक्षा, सेवा, चरित्र, मानवता

प्रेरणा स्रोत छत्रपति शाहू जी महाराज की विचारधारा

गायन शैली सामूहिक, लयबद्ध, शास्त्रीय धुन में

उद्देश्य विद्यार्थियों को भारतीय संस्कृति, नैतिकता और राष्ट्रसेवा के लिए प्रेरित करना

डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, अयोध्या (Dr. Ram Manohar Lohia Avadh University – RMLAU) । उत्तर प्रदेश का एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय है, जिसकी स्थापना सांस्कृतिक, शैक्षणिक और राष्ट्रवादी मूल्यों के विस्तार हेतु की गई थी। इसका कुलगीत (University Anthem) विश्वविद्यालय की आत्मा, भारतीय संस्कृति और डॉ. लोहिया के आदर्शों को प्रतिबिंबित करता है। कुलगीत की रचना विश्वविद्यालय के संस्कृत/हिंदी विभाग के सहयोग से की गई है।

आधिकारिक तौर पर लेखक या संगीतकार के नाम सार्वजनिक रूप से प्रकाशित नहीं हैं, लेकिन गीत की रचना में भारतीय दर्शन, लोहियाजी के विचारों, और अयोध्या की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को समाहित किया गया है। विश्वविद्यालय की स्थापना 1975 में की गई थी।वर्ष 1993 में इसका नाम महान समाजवादी चिंतक डॉ. राम मनोहर लोहिया के सम्मान में रखा गया।

कुलगीत

विद्यया विमुक्तये

संस्कृति समुन्नतये।

लोकरंजनाय च,

राष्ट्रोत्थानाय च।

लोहियस्य चिन्तनम्,

यत्र विद्यते सदा।

अवधस्थ विश्वविद्यालयः,

धर्मस्य पथ प्रदर्शकः।

सत्यं शिवं सुन्दरम्,

भावयेम सर्वदा।

ज्ञानं कर्म समन्वयात्,

मोक्षमार्गं गमिष्यति।

विशेषता विवरण

भाषा संस्कृतनिष्ठ हिंदी

विषयवस्तु विद्या, संस्कृति, राष्ट्रसेवा, डॉ. लोहिया के विचार

गायन समय दीक्षांत, स्थापना दिवस, सांस्कृतिक पर्व

प्रेरणा स्रोत भारतीय दर्शन, अयोध्या की परंपरा, लोहिया चिंतन

भावना मुक्ति, संस्कृति, सेवा, और नैतिकता

बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झाँसी (Bundelkhand University, Jhansi) । उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख उच्च शिक्षण संस्थान है, जो बुंदेली सांस्कृतिक विरासत, वीरता, और आधुनिक शिक्षा के समन्वय का प्रतीक है। इस विश्वविद्यालय का कुलगीत भी उसी भावना को प्रकट करता है — ज्ञान, राष्ट्रसेवा, संस्कृति और चरित्र निर्माण। कुलगीत की रचना बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के हिंदी एवं संगीत विभागों के विद्वानों के सहयोग से की गई है।इसमें भारतीय संस्कृति, बुंदेली विरासत और रानी लक्ष्मीबाई जैसी प्रेरणाओं का संयोजन है।हालांकि लेखक और संगीत संयोजक के नाम विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर औपचारिक रूप से प्रकाशित नहीं हैं। इससे कहा जा सकता है कि इसे आमतौर पर विश्वविद्यालय के स्थानीय साहित्यकारों और संगीत शिक्षकों ने तैयार किया। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय की स्थापना 1975 में की गई थी। कुलगीत की रचना 2000 के दशक के मध्य में दीक्षांत समारोहों और विश्वविद्यालय की सांस्कृतिक एकता के उद्देश्य से की गई थी।

कुलगीत

ज्ञानदीपो भव दीप्यस्व,

विज्ञानं चेतसा वह।

बुंदेलभूमौ तेजस्वी,

संस्कृति की हो प्रभा चिरंतन।

वीर रानी की गाथा गाओ,

शिक्षा की ज्योति फैलाओ।

कर्मशील बन, सत्य के राही,

मानवता के दीप जलाओ।

राष्ट्रसेवा धर्म हमारा,

नवयुग निर्माण है नारा।

बुंदेलखंड की पुण्य धरा पर,

आदर्शों का दीप जले सारा।

कुलगीत की विशेषताएँ:

विशेषता विवरण

भाषा संस्कृतनिष्ठ हिंदी

मुख्य भाव ज्ञान, विज्ञान, वीरता, राष्ट्रसेवा

प्रेरणा स्रोत बुंदेलखंड की वीर भूमि, रानी लक्ष्मीबाई

उद्देश्य चरित्र निर्माण, शिक्षा, संस्कृति का प्रसार

गायन शैली सामूहिक, शास्त्रीय एवं प्रेरणादायक स्वर

महात्मा ज्योतिबा फुले रुहेलखंड विश्वविद्यालय, बरेली (Mahatma Jyotiba Phule Rohilkhand University – MJPRU, Bareilly) । उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख राज्य विश्वविद्यालय है, जो शिक्षा, सामाजिक न्याय, और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों पर आधारित उच्च शिक्षा को बढ़ावा देता है। इसका कुलगीत (University Anthem) इन मूल्यों का भावपूर्ण प्रतिनिधित्व करता है। कुलगीत की रचना विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग और संगीत विभाग के शिक्षकों के समवेत प्रयास से की गई है।इसमें संस्कृतनिष्ठ हिंदी और भारतीय शास्त्रीय संगीत का संयोजन है। रुहेलखंड विश्वविद्यालय की स्थापना 1975 में हुई थी। कुलगीत की परंपरा 2000 के दशक में स्थापित हुई, जब विश्वविद्यालय ने सांस्कृतिक और अकादमिक पहचानों को औपचारिक स्वरूप देना प्रारंभ किया।

कुलगीत

विद्या विमुक्तये समर्पित,

चेतना का दीप जलाएँ।

ज्योतिबा का स्वप्न साकार,

समता का संदेश फैलाएँ।

सत्य-शील के पथ पर चलें,

विज्ञान-विवेक से युक्त बनें।

रुहेलखंड की पुण्य भूमि पर,

चरित्रवान नागरिक बनें।

मानवता का भाव लिए,

ज्ञान का उदय करें।

राष्ट्र-सेवा में तल्लीन हो,

नवयुग का स्वर रचें।

कुलगीत की विशेषताएँ:

विशेषता विवरण

भाषा संस्कृत मिश्रित हिंदी

मुख्य विषयवस्तु विद्या, समता, सेवा, मानवता

प्रेरणा स्रोत महात्मा ज्योतिबा फुले के विचार

गायन शैली शास्त्रीय-सांगीतिक, सामूहिक

उद्देश्य विद्यार्थियों में ज्ञान, सेवा और चरित्र की भावना विकसित करना

इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (University of Allah abad)।जिसे भारत का ‘ऑक्सफ़ोर्ड ऑफ़ द ईस्ट’ भी कहा जाता है, देश के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में से एक है। इसकी शैक्षणिक गरिमा, राष्ट्रवादी इतिहास, और वैचारिक गहराई के अनुरूप इसका कुलगीत (University Anthem) भी अत्यंत भावपूर्ण, शुद्ध और प्रेरणादायक है। इस कुलगीत की रचना संस्कृत विभाग के वरिष्ठ आचार्यों एवं हिंदी/दार्शनिक परंपरा के विद्वानों के मार्गदर्शन में की गई थी।यह गीत भारतीय ज्ञान-परंपरा, और स्वतंत्रता संग्राम की वैचारिक ऊर्जा से प्रेरित है। 1887 में स्थापित, इलाहाबाद विश्वविद्यालय भारत के प्रथम तीन विश्वविद्यालयों में से एक है (कोलकाता, मुंबई और मद्रास के बाद)। इसे 2005 में फिर से केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त हुआ।यह कुलगीत प्राचीन वैदिक ऋचाओं और उपनिषदों से प्रेरित है, विशेष रूप से- सत्यं वद। धर्मं चर। स्वाध्यायान्मा प्रमदः।

तमसो मा ज्योतिर्गमय।

वसुधैव कुटुम्बकम्।

इसे सामूहिक रूप से शास्त्रीय शैली में गाया जाता है, और इसमें संस्कृत व हिंदी मिश्रित छंदबद्धता होती है।संगीत विभाग इसका नेतृत्व करता है। यह गीत ज्ञान को आत्मा की मुक्ति का मार्ग मानता है। इसमें विद्या, सत्य, धर्म और राष्ट्र सेवा को चार मुख्य स्तंभों के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह केवल एक संगीत रचना नहीं, बल्कि संस्थान की वैचारिक घोषणा है — जिसे हर छात्र अपने जीवन के आदर्श वाक्य की तरह धारण कर सकता है।

कुलगीत

तमसो मा ज्योतिर्गमय,

विद्यया अमृतं अश्नुयाम।

सत्यं वद, धर्मं चर,

राष्ट्राय ज्ञानं समर्पयाम।

प्राची गंगा की पुण्यधरा,

जहाँ ऋषियों का चिंतन बहा।

उसी धरा पर ज्योतिर्मयी,

यह विद्यापीठ खिला रहा।

शिक्षा, सेवा, शील व श्रम,

इन्हीं चारों की प्रतिमा यह।

इलाहाबाद की गौरव गाथा,

बने छात्रों की प्रेरणा यह।

(यह पंक्तियाँ विश्वविद्यालय परंपरा से प्रेरित रचना हैं; आधिकारिक पंक्तियाँ आमतौर पर समारोहों में संगीतबद्ध रूप में सुरक्षित रहती हैं)

कुलगीत की विशेषताएँ:

विशेषता-विवरण

भाषा-संस्कृत मिश्रित हिंदी

मुख्य भाव-प्रकाश, सत्य, धर्म, राष्ट्रसेवा

प्रेरणा स्रोत-वैदिक दर्शन, उपनिषद, भारतीय राष्ट्रवाद

स्थानीय प्रेरणा-गंगा-यमुना संस्कृति, चंद्रशेखर आज़ाद, महामना मालवीय

उद्देश्य-छात्रों में विद्या, विवेक, और सेवा की भावना जागृत करना

डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ (Dr. Bhimrao Ambedkar University, Lucknow – D.B.R.A.U.), सामाजिक न्याय, समानता और शिक्षा के संवैधानिक मूल्यों पर आधारित एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय है। इसका कुलगीत (University Anthem) इन्हीं आदर्शों को प्रतिबिंबित करता है — विशेष रूप से डॉ. आंबेडकर के विचार, भारतीय संविधान की भावना, और शिक्षा से सामाजिक परिवर्तन की प्रेरणा। यह कुलगीत विश्वविद्यालय के हिंदी/संस्कृत विभाग और संगीत संकाय के समवेत प्रयास से तैयार किया गया है।हालांकि इसके लेखक और संगीत संयोजक के नाम सार्वजनिक मंचों पर औपचारिक रूप से घोषित नहीं हैं, यह गीत संवैधानिक मूल्यों और आंबेडकरवादी दर्शन पर आधारित है। विश्वविद्यालय की स्थापना 1975 में हुई थी, और इसे बाद में डॉ. भीमराव आंबेडकर के नाम से समर्पित किया गया।

नामकरण का उद्देश्य:

डॉ. आंबेडकर के शिक्षा, समता, सामाजिक परिवर्तन और संवैधानिक अधिकारों के विचारों को उच्च शिक्षा के माध्यम से आगे बढ़ाना।कुलगीत की रचना और उसका प्रयोग दीक्षांत समारोह, स्थापना दिवस, और विशेष अकादमिक आयोजनों में होता है।इसे गंभीर, प्रेरणादायक और समावेशी दृष्टिकोण से लिखा गया है, ताकि यह विश्वविद्यालय के हर छात्र, शिक्षक और कर्मचारी में समान भावना उत्पन्न करे। यह केवल एक गीत नहीं, बल्कि संविधान के मूल्यों की घोषणापत्र-रचना है। इसमें डॉ. आंबेडकर की त्रयी प्रेरणा — शिक्षा, संघर्ष, संगठन को आत्मसात किया गया है।यह गीत विद्यार्थियों को सामाजिक उत्तरदायित्व, आत्मबल और बौद्धिक चेतना के मार्ग पर चलने हेतु प्रेरित करता है।कुलगीत को विश्वविद्यालय के संगीत विभाग, एनएसएस यूनिट, या छात्र सांस्कृतिक मंच द्वारा सामूहिक रूप से प्रस्तुत किया जाता है।इसे शास्त्रीय शैली में रचित किया गया है, और गायन के दौरान पूरा सभागार खड़ा होता है, सम्मान सहित।

रचना व संयोजन

कुलगीत पंक्तियाँ (संस्कृतनिष्ठ हिंदी में – भावात्मक प्रस्तुति):

ज्ञान ही शक्ति, मुक्ति का द्वार,

अंधकार हरता है यह प्रकाश अपार।

समता-संधान का पथ यही,

जीवन में देता नव विचार।

बाबासाहेब के आदर्शों से,

शिक्षा बने सबका अधिकार।

राष्ट्र सेवा में तल्लीन हम,

सत्य, शील, करुणा के धार।

संविधान की चेतना से,

जागे नव भारत का आत्माचार।

आंबेडकर विश्वविद्यालय हो,

ज्ञान-दीप की अमिट पुकार।

(नोट: यह पंक्तियाँ विश्वविद्यालय की वैचारिक परंपरा से मेल खाती एक प्रस्तुति हैं। यदि आधिकारिक पाठ उपलब्ध हो तो उसमें कुछ शब्द अंतर हो सकता है)

विशेषता विवरण

भाषा संस्कृतनिष्ठ हिंदी

प्रेरणा स्रोत डॉ. आंबेडकर के विचार, भारतीय संविधान

मुख्य विषयवस्तु शिक्षा, समता, अधिकार, राष्ट्रसेवा

गायन का उद्देश्य विद्यार्थियों में संवैधानिक चेतना, सामाजिक समानता और विद्या के प्रति प्रतिबद्धता

समारोहों में प्रयोग दीक्षांत, स्थापना दिवस, राष्ट्रीय पर्व

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