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मदर टेरेसा: सेवा, प्रेम और करुणा की प्रतिमूर्ति
Mother Teresa : 'मदर टेरेसा' ने अपना सम्पूर्ण जीवन गरीबों, बीमारों और असहाय लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया, और इसी समर्पण ने उन्हें 'मदर टेरेसा' बना दिया।
Mother Teresa (Image Credit-Social Media)
Mother Teresa: मदर टेरेसा, एक ऐसा नाम है जो सेवा, प्रेम और करुणा का पर्याय बन चुका है। उनका जीवन निस्वार्थ सेवा और मानवता के प्रति अटूट समर्पण का एक अद्भुत उदाहरण है। 26 अगस्त 1910 को अल्बानिया के स्कॉप्जे (आधुनिक मैसेडोनिया) में जन्मी एग्नेस गोंक्सा बोजाक्सीहू ने अपना जीवन गरीबों, बीमारों और असहाय लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया, और इसी समर्पण ने उन्हें 'मदर टेरेसा' बना दिया। 1979 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया और 2016 में उन्हें संत की उपाधि मिली, जिससे वे संत टेरेसा कहलाईं। उनका जीवन यह सिखाता है कि प्रेम और सेवा ही जीवन का सबसे बड़ा धर्म है।
एक साधारण इंसान का असाधारण जीवन
मदर टेरेसा का जन्म एक समृद्ध अल्बानियाई परिवार में हुआ था। छोटी उम्र से ही, उनमें धार्मिक और आध्यात्मिक झुकाव था। 18 साल की उम्र में, उन्होंने घर छोड़ दिया और सिस्टर्स ऑफ लोरेटो नामक एक नन संगठन में शामिल हो गईं। अपनी शुरुआती शिक्षा और प्रशिक्षण के बाद, उन्हें भारत भेजा गया। 1929 में वे भारत पहुंचीं और दार्जिलिंग में शिक्षिका के रूप में काम करना शुरू किया। कुछ समय बाद, वे कोलकाता के सेंट मैरीज स्कूल में भूगोल पढ़ाती थीं और स्कूल की प्रिंसिपल भी बनीं।
कोलकाता में रहते हुए, मदर टेरेसा ने शहर की भयानक गरीबी और दुख को करीब से देखा। यह एक ऐसा अनुभव था जिसने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी। उन्होंने गरीबों, बेघर और बीमार लोगों को सड़कों पर मरते हुए देखा। इस दृश्य ने उनके मन में एक गहरा दर्द पैदा किया और उन्होंने महसूस किया कि उनका असली काम इन लोगों की सेवा करना है। 1946 में, उन्हें "अंदर से एक कॉल" महसूस हुई, जिसमें उन्हें यह आदेश मिला कि वे स्कूल छोड़ दें और गरीबों के लिए काम करें।
आत्मिक चेतना का क्रियान्वयन
अपनी आंतरिक प्रेरणा का पालन करते हुए, मदर टेरेसा ने 1948 में लोरेटो कॉन्वेंट छोड़ दिया। उन्होंने साधारण सूती साड़ी पहनना शुरू किया, जो भारतीय महिलाओं की पहचान थी। उन्होंने अपनी सेवा का काम कोलकाता की झुग्गियों से शुरू किया। शुरुआत में, उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उनके पास न तो कोई आर्थिक सहायता थी और न ही कोई समर्थक। लेकिन उनका विश्वास अडिग था। धीरे-धीरे, कुछ अन्य नन और स्वयंसेवक उनके साथ जुड़ने लगे।
1950 में, मदर टेरेसा ने मिशनरीज ऑफ चैरिटी (Missionaries of Charity) की स्थापना की। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य "गरीबों में सबसे गरीब" की सेवा करना था। यह संस्था उन लोगों के लिए काम करती थी जिन्हें समाज ने त्याग दिया था। मदर टेरेसा ने अपनी संस्था के माध्यम से ऐसे लोगों की देखभाल की, जिन्हें कोई और छूना भी नहीं चाहता था। उन्होंने बेघर, कुष्ठ रोगियों, एचआईवी/एड्स के मरीजों और अनाथ बच्चों को आश्रय दिया।
मदर टेरेसा का मानना था कि "सबसे बड़ी बीमारी कुष्ठ रोग या तपेदिक नहीं है, बल्कि यह महसूस करना है कि आप किसी के लिए कुछ भी नहीं हैं।" यह विचार उनकी सेवा का मूल आधार बन गया। उन्होंने हर व्यक्ति में ईश्वर को देखा और उनकी सेवा को ही ईश्वर की सेवा माना।
मानवता की प्रतिमूर्ति
मदर टेरेसा और उनकी संस्था ने कोलकाता से शुरू होकर दुनिया भर में अपने काम का विस्तार किया। उनके कुछ सबसे उल्लेखनीय कार्य और योगदान इस प्रकार हैं:
1. निर्मल हृदय (Nirmal Hriday)
1952 में, मदर टेरेसा ने कोलकाता में कालीघाट के पास एक पुरानी धर्मशाला को "निर्मल हृदय" में बदल दिया। यह मरने वालों के लिए एक धर्मशाला थी। यहां, वे उन लोगों को लाती थीं जो सड़कों पर मरने की कगार पर थे। यहां, उन्हें न केवल चिकित्सा देखभाल मिलती थी, बल्कि उन्हें प्यार और सम्मान के साथ अपनी अंतिम सांस लेने का मौका भी मिलता था। मदर टेरेसा का मानना था कि हर इंसान को सम्मान के साथ मरने का अधिकार है। उन्होंने कहा, "हम शायद उतना नहीं कर सकते जितना हम चाहते हैं, लेकिन हम निश्चित रूप से उतना कर सकते हैं जितना हम कर सकते हैं।"
2. शांति नगर (Shanti Nagar)
मदर टेरेसा ने कुष्ठ रोगियों के लिए भी बहुत काम किया। उस समय, कुष्ठ रोग को एक भयानक बीमारी माना जाता था और इससे पीड़ित लोगों को समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता था। 1957 में, उन्होंने कुष्ठ रोगियों के लिए "शांति नगर" नामक एक बस्ती की स्थापना की, जहां उन्हें चिकित्सा उपचार, भोजन और रहने की जगह मिलती थी। उन्होंने कुष्ठ रोगियों को गले लगाकर और उनके घावों को साफ करके समाज को यह संदेश दिया कि ये लोग भी प्रेम और देखभाल के पात्र हैं।
3. अनाथालय और शिशु भवन
मदर टेरेसा ने अनाथ और बेघर बच्चों के लिए भी कई घर और शिशु भवन खोले। उनका मानना था कि हर बच्चे को प्यार और एक परिवार मिलना चाहिए। उन्होंने अनाथ बच्चों को गोद लेने को बढ़ावा दिया और यह सुनिश्चित किया कि उन्हें उचित देखभाल और शिक्षा मिले। उन्होंने कहा, "अगर आप दुनिया को बदलना चाहते हैं, तो घर जाएं और अपने परिवार से प्यार करें।"
4. विश्वव्यापी विस्तार
मदर टेरेसा का काम सिर्फ भारत तक सीमित नहीं रहा। 1960 के दशक तक, उनकी संस्था दुनिया के अन्य हिस्सों में भी फैलने लगी। उन्होंने रोम, तंजानिया, वेनेजुएला, संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य देशों में मिशनरी केंद्र खोले। आज, मिशनरीज ऑफ चैरिटी 130 से अधिक देशों में काम कर रही है, जिसमें अनाथालय, एचआईवी/एड्स क्लीनिक, कुष्ठ रोगी केंद्र, और दान गृह शामिल हैं।
नोबेल शांति पुरस्कार और संत की उपाधि
1979 में, मदर टेरेसा को उनके मानवीय कार्यों के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्होंने इस पुरस्कार को गरीबों और जरूरतमंदों को समर्पित किया। पुरस्कार समारोह में, उन्होंने पारंपरिक भोज को रद्द करने का अनुरोध किया और उसकी धनराशि को गरीबों के लिए दान करने को कहा। यह उनकी सादगी और गरीबों के प्रति उनके अटूट प्रेम का प्रमाण था।
अपने संबोधन में, उन्होंने कहा, "शांति की शुरुआत एक मुस्कान से होती है।"
नोबेल पुरस्कार के बाद, उनकी ख्याति और काम में और अधिक वृद्धि हुई, जिससे उन्हें अपने काम को और अधिक फैलाने में मदद मिली।
1997 में मदर टेरेसा के निधन के बाद, उनके कार्य को जारी रखने का संकल्प लिया गया। 2016 में, पोप फ्रांसिस ने उन्हें संत की उपाधि दी, जिससे वे संत टेरेसा ऑफ कलकत्ता के नाम से जानी जाने लगीं। यह उपाधि उनके जीवन भर के निस्वार्थ सेवा और समर्पण की मान्यता थी।
मदर टेरेसा का संदेश
मदर टेरेसा का जीवन और उनके कार्य हमें कई महत्वपूर्ण संदेश देते हैं। उनका मानना था कि हर व्यक्ति में प्रेम और करुणा की शक्ति होती है। उनके जीवन से हम सीखते हैं कि:
सेवा सबसे बड़ा धर्म है: बिना किसी स्वार्थ के दूसरों की मदद करना ही सच्ची मानवता है।
प्रेम की शक्ति: प्रेम सबसे बड़ी शक्ति है जो किसी भी दुख और दर्द को दूर कर सकती है।
छोटे-छोटे काम: हमें बड़े-बड़े काम करने की जरूरत नहीं है, बल्कि छोटे-छोटे कामों को बड़े प्यार से करना चाहिए।
गरीबी को पहचानें: भौतिक गरीबी से ज्यादा खतरनाक आध्यात्मिक गरीबी है।
मदर टेरेसा ने कहा था, "अकेले हम बहुत कम कर सकते हैं; साथ में हम बहुत कुछ कर सकते हैं।" यह उनका संदेश था कि हमें एक साथ मिलकर दुनिया को एक बेहतर जगह बनाना चाहिए।
मदर टेरेसा का जीवन एक अमर गाथा है, जो हमें हमेशा प्रेम, सेवा और करुणा के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती रहेगी। उनका काम एक मशाल की तरह है जो आज भी मानवता के अंधेरे कोनों को रोशन कर रहा है। उनकी विरासत, मिशनरीज ऑफ चैरिटी, आज भी लाखों लोगों के जीवन को बेहतर बनाने का काम कर रही है। वे सचमुच 'गरीबों की संत' थीं।
विचारों के मोती
- “खुशी अपने घर में शुरू होती है। आप जितना अधिक अपने परिवार के सदस्यों से प्यार करेंगे, वे उतने ही अधिक खुश रहेंगे।"
- “दयालु शब्दों का उपयोग करें और प्यार से बात करें। यह दुनिया को बदल सकता है।"
- “प्रेम का सबसे बड़ा गुण यह है कि यह देने वाले और लेने वाले दोनों को ही खुशी देता है।"
- “यदि आप लोगों को जज करते हैं, तो आपके पास उनसे प्यार करने का समय नहीं होगा।"
- “अक्सर लोग सोचते हैं कि दान देने का मतलब है कि वे गरीबों को कुछ देंगे। लेकिन दान का मतलब यह भी है कि आप अपने समय और अपने दिल का कुछ हिस्सा गरीबों के साथ साझा करेंगे।”
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