Baboons Bander: आखिर क्यों बबून्स चलते हैं एक लाइन में? वजह कर देगी हैरान

Mystery OF Baboons Bander: बबून्स का सीधे लाइन में चलने का रहस्य केवल एक साधारण आदत नहीं है ।

Shivani Jawanjal
Published on: 31 Aug 2025 4:01 PM IST
Baboons Bander: आखिर क्यों बबून्स चलते हैं एक लाइन में? वजह कर देगी हैरान
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Mystery OF Baboons: जानवरों की अपनी एक अलग ही दुनिया होती है जो हमेशा इंसानो को चौकाती है । चाहे चींटियों का कॉलोनी बनाना हो, पक्षियों का प्रवासी सफर या फिर डॉल्फिन्स का सामूहिक शिकार करने का तरीका हर प्राणी का अपना एक खास पैटर्न होता है। और इन्ही अद्भूद जीवों में एक जीव है (Baboon), जिसे हिंदी में 'लंगूर प्रजाति का बड़ा बंदर' कहा जाता है। अफ्रीका और अरब देशों के जंगलों में पाए जाने वाले ये बंदर अपनी खास चाल और समूह व्यवहार के लिए प्रसिद्ध हैं।लेकिन बबून्स का सबसे रोचक तथ्य यह है कि बबून्स अक्सर सीधे लाइन में चलते हुए दिखाई देते हैं। यह दृश्य इंसानों के साथ - साथ वैज्ञानिकों के लिए भी आश्चर्य का विषय है । लेकिन सवाल उठता है कि आखिर इनका ऐसा पैटर्न किस वजह से है? क्या यह केवल एक संयोग है या फिर इसके पीछे गहरी वैज्ञानिक और सामाजिक वजहें छिपी हैं? आइए जानते हैं विस्तार से।

बबून कौन हैं?


बबून प्राइमेट्स (Primates) यानी कपि परिवार के सदस्य हैं और इनका वैज्ञानिक नाम Genus Papio है। बबून की पाँच प्रमुख प्रजातियाँ पाई जाती हैं जिनमें ओलिव बबून, येलो बबून, चाकमा बबून, हमाड्रायस बबून और गिनी बबून का समावेश है । ये बहुत ही सामाजिक जानवर होते हैं और इनके बड़े-बड़े समूह बनाए जाते हैं, जिन्हें Troop कहा जाता है। एक Troop में कभी-कभी सैकड़ों सदस्य भी शामिल हो सकते हैं। बबून ज्यादातर जमीन पर ही रहते हैं और ये अफ्रीका तथा अरब के अलग-अलग इलाकों में पाए जाते हैं।

सीधे लाइन में चलने की आदत

बबून के झुंड (Troop) में अक्सर देखा जाता है कि वे एक सीधी लाइन में चलते हैं, जो देखने में बिल्कुल इंसानों की कतार जैसी लगती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह सिर्फ अनुशासन या सुरक्षा का तरीका नहीं होता बल्कि यह उनके सामाजिक संबंधों, ऊर्जा बचत और समूह की संरचना से जुड़ा होता है। आमतौर पर जो बबून सामाजिक रूप से ज्यादा जुड़े होते हैं वे झुंड के बीच में चलते हैं। जबकि जिनका जुड़ाव कम होता है वे आगे या पीछे दिखते हैं। इस तरह लाइन बनाकर चलना उनके आपसी तालमेल और सामाजिक नेटवर्क को मजबूत करने का तरीका होता है।

सुरक्षा का नियम


जंगल में बबून कई खतरनाक शिकारी जानवरों जैसे शेर, तेंदुआ, चीता और लकड़बग्घे के निशाने पर रहते हैं। ऐसे में जब वे सीधी लाइन में चलते हैं तो यह उनकी एकजुटता और सुरक्षा के लिए बहुत मददगार होता है। लाइन के आगे और पीछे चलने वाले बबून पहरेदार यानी 'गार्ड' की तरह काम करते हैं, जो आसपास नजर रखते हैं और खतरे का अहसास होने पर बाकी झुंड को सावधान कर देते हैं। बीच में बच्चे और बूढ़े बबून चलते हैं ताकि वे सुरक्षित रहें। यह तरीका कुछ-कुछ इंसानी सेना की कतार जैसा है जहाँ अनुशासन और सुरक्षा बनाए रखने के लिए सैनिक लाइन बनाकर चलते हैं।

सामाजिक अनुशासन और नेतृत्व

बबून का समाज बहुत ही व्यवस्थित होता है और उसमें एक अल्फा मेल यानी झुंड का नेता होता है। यह नेता पूरे समूह को दिशा देता है और उस पर उसका प्रभुत्व रहता है। जब बबून चलते हैं तो अक्सर अल्फा मेल सबसे आगे रहता है और रास्ता तय करता है। उसके पीछे बाकी सदस्य लाइन बनाकर चलते हैं ताकि झुंड बिखरे नहीं और सभी सही दिशा में आगे बढ़ें। यह तरीका झुंड को अनुशासन, एकता और सुरक्षा बनाए रखने में मदद करता है।

ऊर्जा बचाने की रणनीति

बबून का सीधे लाइन में चलना मुख्य रूप से उनके सामाजिक रिश्तों और समूह की संरचना पर आधारित होता है। यह पक्षियों की तरह नहीं है, जहाँ V-फॉर्मेशन उड़ान से हवा का दबाव कम होकर ऊर्जा बचती है। बबून के मामले में यह व्यवहार उनकी एकता और सुरक्षा से जुड़ा होता है। हालांकि, जब वे एक-दूसरे के पीछे चलते हैं तो पीछे वाले बबून को आगे वाले के पैरों के निशान पर चलने से थोड़ी ऊर्जा की बचत हो सकती है। लेकिन यह मुख्य कारण नहीं माना जाता। असली वजह उनका सामाजिक तालमेल और सुरक्षा है जिसे वैज्ञानिक शोध भी साबित करते हैं।

संवाद और संकेत का तरीका

बबून बहुत ही बुद्धिमान, सतर्क और सामाजिक जानवर होते हैं। जब वे सीधे लाइन में चलते हैं तो इससे झुंड के सभी सदस्य एक-दूसरे को देख पाते हैं और समूह में एकरूपता बनी रहती है। अगर कोई खतरा सामने आता है तो सबसे आगे चलने वाला बबून तुरंत संकेत देता है और यह संदेश जल्दी ही पीछे के सभी सदस्यों तक पहुँच जाता है। इससे पूरा झुंड तुरंत कार्रवाई कर पाता है और सुरक्षित रहता है। यही कारण है कि सीधे लाइन में चलना बबून के सामाजिक संगठन और संचार प्रणाली का अहम हिस्सा माना जाता है।

शिकार और भोजन की तलाश

बबून सर्वाहारी यानी Omnivore होते हैं जो घास, फल, पत्तियां, बीज, कीड़े-मकोड़े और कभी-कभी छोटे जानवर भी खाते हैं। उनके भोजन में फल, बीज, पत्तियाँ, छोटे पक्षी और अन्य जीव शामिल होते हैं। जब वे भोजन की तलाश में निकलते हैं तो अक्सर सीधे लाइन में चलते हैं। इससे वे सुरक्षित रहते हैं, झुंड बिखरता नहीं और सभी व्यवस्थित तरीके से नए क्षेत्रों तक पहुँच जाते हैं। इस तरह चलने से न केवल उन्हें रास्ता भटकने से बचने में मदद मिलती है।

बच्चों की सुरक्षा


बबून के बच्चे जन्म के बाद लंबे समय तक माँ के पेट या पीठ पर चिपककर रहते हैं, क्योंकि वे छोटे और कमजोर होते हैं। झुंड जब सफर करता है, तो बच्चे आमतौर पर बीच में रहते हैं ताकि वे सुरक्षित रहें। सीधे लाइन में चलने से माताएँ और बाकी सदस्य बच्चों पर लगातार नजर रख पाते हैं। इससे बच्चों पर शिकारी जानवरों के हमले या किसी और खतरे का जोखिम काफी कम हो जाता है और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित होती है।

परंपरा और सीखने की प्रक्रिया

बबून बहुत ही सामाजिक जानवर होते हैं और उनका व्यवहार पीढ़ी दर पीढ़ी सीखा और सिखाया जाता है। छोटे बबून बड़े बबून की नकल करके सामाजिक नियम और तरीके सीखते हैं। जब झुंड सीधे लाइन में चलता है, तो बच्चे भी इस आदत को अपनाते हैं और धीरे-धीरे यह झुंड की संस्कृति और सामाजिक व्यवस्था का हिस्सा बन जाता है। वैज्ञानिक अध्ययनों से भी पता चला है कि बबून अपने समूह के व्यवहारों को सीखकर अपनाते हैं जिससे उनका सामाजिक ढांचा और भी मजबूत हो जाता है।

वैज्ञानिक शोध क्या कहते हैं?

केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी और अन्य शोध संस्थानों के वैज्ञानिकों ने बबून के सामाजिक व्यवहार पर गहन अध्ययन किया है। शोध में पाया गया कि बबून का सीधे लाइन में चलना किसी आदेश से नहीं, बल्कि एक स्वाभाविक नियम से होता है। हर बबून अपने आसपास के दो पड़ोसियों की चाल देखकर आगे बढ़ने का फैसला करता है। इस तरह पूरा झुंड बिना किसी लीडर के आदेश के, सामूहिक निर्णय यानी Swarm Intelligence से चलता है। यह प्रक्रिया उसी तरह है जैसे चींटियाँ या मधुमक्खियाँ अपने समूह में सामूहिक बुद्धिमत्ता दिखाती हैं। वैज्ञानिकों के अध्ययन से यह साबित हुआ है कि बबून का यह व्यवहार भी उनकी सामूहिक समझ और आपसी तालमेल का परिणाम है।

इंसानों से समानता

बबून के व्यवहार और इंसानों की सभ्यता में कई समानताएँ देखी जा सकती हैं। जैसे स्कूलों में बच्चों का लाइन में चलना, सैनिकों का मार्च करना या गाँव-शहरों में जुलूस और यात्राओं के दौरान कतारें बनाना, यह सब बबून जैसे प्राइमेट्स के सामूहिक व्यवहार से जुड़ा हुआ माना जा सकता है। वैज्ञानिक मानते हैं कि यह पैटर्न हमारी जैविक विरासत का हिस्सा हो सकता है। क्योंकि इंसानों का सामाजिक जीवन और सभ्यता धीरे-धीरे विकसित हुई है और इसमें कुछ आदतें प्राइमेट्स से मेल खाती हैं। इसी कारण मानव समाज में अनुशासन, व्यवस्था और सामूहिक गतिविधियाँ बबून के व्यवहार से मिलती-जुलती लगती हैं।

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