Premanand Ji Maharaj Secret: क्यों 40 साल से चली आ रही संत प्रेमानंद और उनके गृहस्थ भाई के बीच अनोखी दूरी?

Premanand Ji Maharaj Secret: प्रेमानंद महाराज के बड़े भाई गणेश दत्त पांडे खुद बताते हैं कि, वह अपने छोटे भाई से मिलने नहीं जाते क्योंकि वह गृहस्थ जीवन जी रहे हैं।

Jyotsna Singh
Published on: 13 Aug 2025 7:00 AM IST (Updated on: 13 Aug 2025 7:01 AM IST)
Premanand Ji Maharaj Brother Secret 40 Years Separation
X

Premanand Ji Maharaj Brother Secret 40 Years Separation

Premanand Ji Maharaj Secret: वृंदावन के जाने-माने संत प्रेमानंद जी महाराज का जीवन पूरी तरह भगवान की भक्ति और सेवा में समर्पित है। लाखों भक्तों के लिए वह सिर्फ एक आध्यात्मिक गुरु ही नहीं बल्कि जीवन का मार्गदर्शन करने वाले प्रेरणा स्रोत भी हैं। लेकिन उनके जीवन का एक ऐसा अनदेखा पहलू भी है जो सुनने में अजीब और दिल को छू लेने वाला है। वह अपने बड़े भाई गणेश दत्त पांडे से पिछले 40 वर्षों से नहीं मिले हैं। इसके पीछे कारण ना तो कोई पारिवारिक विवाद है। ना ही कोई व्यक्तिगत नाराजगी है। बल्कि इसके पीछे की मूल वजह एक धार्मिक मर्यादा है। जिसे दोनों भाइयों को भौतिक रूप से दूर कर रखा है लेकिन दिल से यह दोनों बेहद करीब हैं।

संत मार्ग पर भाई से बनाई दूरी

प्रेमानंद जी महाराज का जन्म उत्तर प्रदेश में कानपुर जिले के एक छोटे से गांव में निवास करने वाले साधारण ब्राह्मण परिवार में 1969 में हुआ था। बचपन से ही उनका मन भक्ति और साधना में रमा रहता था। 13 वर्ष की किशोरावस्था में ही उन्होंने संसार के मोह माया से दूरी बनाकर ईश्वर की शरण को अपना लिया। धीरे-धीरे में वृंदावन में संत जीवन जीने लगे और भक्ति के संदेशवाहक बन गए। वे वर्तमान समय में वृंदावन में रहते हैं और श्री हित राधा केली कुंज ट्रस्ट के संस्थापक हैं। उनके बड़े भाई गणेश दत्त पांडे ने गृहस्थ जीवन अपनाया और अपने परिवार के साथ जिम्मेदारियों में पूरी तरह से व्यस्त हैं। पहले से ही इन दोनों भाइयों के जीवन मार्ग एक दूसरे से काफी अलग थे। लेकिन आपसी सम्मान और स्नेह में कभी भीकोई कमी नहीं आई। सिर्फ न धार्मिक कारण से कभी आमने-सामने न आने का निर्णय लिया।

अगर वह मुझे हाथ जोड़कर प्रणाम करेंगे तो यह मेरे लिए पाप होगा

प्रेमानंद महाराज के बड़े भाई गणेश दत्त पांडे खुद बताते हैं कि, वह अपने छोटे भाई से मिलने नहीं जाते क्योंकि वह गृहस्थ जीवन जी रहे हैं। इनका कहना है कि, ' कभी भेंट के दौरान छोटा भाई यानी संत प्रेमानंद अगर आमने-सामने आएंगे तो वे निश्चित दौड़कर मेरे चरण स्पर्श करेंगे। गृहस्थ जीवन में होकर संत से प्रणाम लेना पाप होगा। उनका कहना है कि 'हमने इतना पुण्य कमाया ही नहीं है कि एक संत हमारे चरण स्पर्श करें।' गणेश दत्त को यह भी चिंता रहती है कि अगर वृंदावन जाने पर बाकी संतो को पता चल गया है कि वह प्रेमानंद जी के बड़े भाई हैं, तो वह भी उनके पैर छूने की कोशिश करेंगे। तब पाप और बढ़ जाएगा। इसलिए उन्होंने भाई से न मिलने का नियम बना लिया। दोनों भाइयों के बीच एक ऐसा नियम जो 40 साल से निरंतर निभाया जा रहा है।

संस्कारों में दूरी लेकिन दिलों में नजदीकी

प्रेमानंद जी महाराज और उनके भाई गणेश दत्त पांडे के बीच इतने वर्षों की दूरी अलग-अलग संस्कारों के कारण जरूर हो सकती है। लेकिन उनके दिलों के बीच एक दूसरे के प्रति अगाध प्रेम भरा हुआ है। असल में यह कहानी किसी दूरी की नहीं बल्कि सम्मान की है। दोनों भाइयों के बीच कोई मनमुटाव नहीं बल्कि पहले से भी ज्यादा गहरी समझ और आदर की भावना है। एक भाई संत जीवन में रमा है तो दूसरा गृहस्थ जीवन के कर्तव्य में । दो अलग धाराओं के बावजूद भी वे एक दूसरे का सम्मान कहीं अधिक रखते हैं। अपनी-अपनी मर्यादा में रहकर उनके बीच का ये जुड़ाव भले ही दुनिया को कुछ बाहरी रूप से दूर लगे, लेकिन वास्तव में यह दोनों भावनात्मक रूप से एक दूसरे के बेहद करीब हैं। त्याग की भावना रिश्तों को और अधिक पवित्र बना देती है और समाज में श्रद्धा और सम्मान का संदेश देती है।

ऐसी और भी है भारतीय संत परंपरा में मिसाले

भारतीय संत परंपरा में यह कोई पहला प्रसंग नहीं है जब एक ही परिवार के दो भाई अपने अलग-अलग धर्म के मार्गों के चलते एक दूसरे से दूर रहते हैं। बल्कि कई महान संत ने संन्यास लेने के बाद अपने परिवार से दूरी बनाई ताकि सांसारिक मोह का असर उनकी साधना पर न पड़े। श्री चैतन्य महाप्रभु का अपने परिवार से सीमित संपर्क एक बड़ा उदाहरण है। संत और गृहस्थ के बीच का संबंध हमेशा सम्मान और मर्यादा पर आधारित रहा है। प्रेमानंद जी के भाई का यह रिश्ता इस परंपरा का जीवंत उदाहरण बन चुका है।

जीवन के दो मार्गों पर ले जाता है हमें धर्म

हिंदू धर्म के चार आश्रम ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास जीवन के अलग-अलग चरण बताते हैं। प्रेमानंद जी सन्यास आश्रम में है जहां संस्कारिक रिश्तों से ऊपर उठकर सभी को समान दृष्टि से देखना धर्म होता है। गणेश दत्त गृहस्थ आश्रम में जहां परिवार और समाज की जिम्मेदारी निभाना ही सर्वोच्च कर्तव्य है। इन दोनों आश्रमों की बात मर्यादाएं अलग है और इन्हें निभाने के लिए कभी-कभी ऐसा त्याग भी करना पड़ता है जो आम इंसान के लिए असंभव होता है।

त्याग में छिपा है सच्चा सम्मान

प्रेमानंद जी और गणेशदत्त जी का रिश्ता सच्चा सम्मान करना सिखाता है। जो कि शब्दों में नहीं बल्कि कर्मों में दिखाई देता है रिश्तों में दूरी का मतलब जरूरी नहीं कि मन में दरार हो। कभी-कभी दूरी ही रिश्तों में कहीं अधिक सम्मान और पवित्रता बनाए रखती है। इस रिश्ते से हमें यह भी सीखना है कि धर्म और मर्यादा को निभाने के लिए व्यक्तिगत भावनाओं से भी ऊपर उठना पड़ता है। प्रेमानंद जी महाराज और उनके बड़े भाई गणेश दत्त पांडे का यह प्रसंग सिर्फ दो भाइयों की कहानी नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति की गहराई को दर्शाने वाली मिसाल है। जो यह बताता है कि त्याग सम्मान और मर्यादा रिश्तों को और ऊंचा उठा सकते हैं। 40 साल की यह खामोशी वास्तव में एक ऐसी अनकही भाषा है जो प्रेम और सम्मान को पहले से अधिक मजबूत बना देती है।

1 / 8
Your Score0/ 8
Admin 2

Admin 2

Next Story

AI Assistant

Online

👋 Welcome!

I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!