Premanand Ji Maharaj: ईश्वर भाव से जुड़े रिश्ते ही अमर रहते हैं-प्रेमानंद जी का दिव्य संदेश

Premanand Ji Maharaj: प्रेमानंद जी कहते हैं जीवन में रिश्ते कभी अनुकूल होते हैं तो कभी प्रतिकूल।

Jyotsna Singh
Published on: 4 Sept 2025 7:00 AM IST
Premanand Ji Maharaj
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Premanand Ji Maharaj (Image Credit-Social Media)

Premanand Ji Maharaj: मनुष्य का जीवन केवल सांसारिक भोग-विलास तक सीमित नहीं है। असली जीवन वह है जो विनय, करुणा और ईश्वर भाव से जुड़ा हो। प्रेमानंद जी अपने दिव्य प्रवचनों में बताते हैं कि यदि इंसान अपने भीतर विनम्रता और मृदुभाषिता को स्थान नहीं देता, तो उसका जीवन असुर के समान हो जाता है। सच्ची विद्या वही है जो हमें सौम्य बनाए और ईश्वर से जोड़ दे।

विनय- जीवन की सच्ची पहचान

बिना विनय के ज्ञान केवल दिखावा है। जैसे सुगंधहीन फूल किसी का मन नहीं भाता, वैसे ही विनम्रता रहित विद्या भी मनुष्य को अहंकारी बना देती है। विनम्र स्वभाव से ही संबंध मजबूत होते हैं और जीवन में शांति आती है।

हर वस्तु में ईश्वर का दर्शन


प्रेमानंद जी कहते हैं जिस तरह धरती पर आभूषण आने से पहले भी सोना था और आगे भी रहेगा, उसी प्रकार ईश्वर सृष्टि के आदि से अंत तक विद्यमान हैं। जब हम हर वस्तु और हर परिस्थिति में ईश्वर को देखने लगते हैं, तभी जीवन का सच्चा आनंद मिलता है।

रिश्तों में ईश्वरीय भाव का संचार

जीवन में रिश्ते कभी अनुकूल होते हैं तो कभी प्रतिकूल। यदि हम इन्हें केवल सांसारिक दृष्टि से देखें तो विवाद पैदा होंगे। लेकिन जब हम रिश्तों को ईश्वर का रूप मानकर निभाते हैं तो न तो अनुकूलता का अहंकार रहता है और न ही प्रतिकूलता का बोझ। तब संबंध स्थाई और शाश्वत हो जाते हैं।

धन कमाने की दौड़ और ईश्वर की अनदेखी

हम जीवनभर परिवार और सुख-सुविधाओं के लिए कमाते रहते हैं। लेकिन वृद्धावस्था में न कमाने की शक्ति बचती है और न परिवार की जिम्मेदारी निभाने का सामर्थ्य। ऐसे समय केवल ईश्वर का स्मरण और नामजप ही साथ देता है। यही सच्ची पूंजी है, जो मृत्यु के बाद भी आत्मा के साथ रहती है।

भारतीय संस्कृति - आदर्शों की धरोहर

भारत की पहचान उसकी संस्कृति और परंपराओं से है। यहां स्त्रियां अपने दृढ़ संकल्प से यमराज तक से पति के प्राण लौटा लाई हैं। यह केवल इसलिए संभव हुआ क्योंकि रिश्तों को ईश्वर भाव से देखा गया। पति-पत्नी यदि एक-दूसरे में भगवान का रूप देखें तो उनका जीवन सुखमय और स्थाई हो जाता है।

गृहस्थ जीवन और ईश्वर का वास


गृहस्थी में कठिनाइयां आना स्वाभाविक है। कभी सुख तो कभी दुःख, यही जीवन का चक्र है। लेकिन यदि हम घर को मंदिर मानकर उसमें ईश्वर का वास कराएं तो कोई भी विपत्ति हमें डिगा नहीं सकती। ईश्वर भाव से जीने वाला परिवार हर परिस्थिति में संतुलित और प्रसन्न रहता है।

नामजप से जगती है पवित्रता की ज्योति

प्रेमानंद जी कहते हैं कि ईश्वर का नाम जपने वाला केवल खुद को ही नहीं, बल्कि पूरे कुल को पवित्र करता है। नामजप से मन की अशांति दूर होती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह अभ्यास धीरे-धीरे हमारे कर्मों को भी पवित्र बना देता है।

जीवन की सच्ची पूंजी- ईश्वर स्मरण

धन, पद और प्रतिष्ठा सब अस्थायी हैं। परिवार का मोह भी एक दिन छूट जाता है। परंतु ईश्वर का ध्यान ही ऐसी अमूल्य निधि है, जो कभी नष्ट नहीं होती। यह वही पूंजी है जो मनुष्य को जीवन और मृत्यु दोनों में सहारा देती है।

धर्ममार्ग पर चलना ही जीवन का सार

मनुष्य केवल कर्म करने के लिए पैदा नहीं हुआ। उसे धर्ममार्ग पर चलकर अपने जीवन को ईश्वर के चरणों में समर्पित करना चाहिए। यही जीवन की सच्ची सार्थकता है। विनय, करुणा, नामजप और ईश्वर भाव को अपनाकर ही हम इस मानव जन्म को सफल बना सकते हैं। प्रेमानंद जी का संदेश हमें यह सिखाता है कि जीवन में केवल भौतिक सुख ही उद्देश्य नहीं हैं। ईश्वर भाव से संबंध निभाना, गृहस्थी में नामजप करना और दैनिक जीवन में विनय व सौम्यता को स्थान देना ही वास्तविक साधना है। जब हम हर वस्तु में भगवान को देखने लगते हैं, तब जीवन स्वतः ही आनंदमय और धन्य हो जाता है।

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