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कोरियन एयरलाइंस फ्लाइट 007 को सोवियत संघ ने आखिर क्यों की थी गिराने की तैयारी, क्या थी साजिश की पूरी कहानी
Korean Airlines Flight 007 : क्या आप जानते हैं कि आखिर क्यों कोरियन एयरलाइंस की फ्लाइट 007 को सोवियत संघ के फाइटर जेट ने मिसाइल मारकर उड़ा दिया था, नहीं? तो आइये इस षड्यंत्र की पूरी कहानी आपको बताते हैं।
Korean Airlines Flight 007 (Image Credit-Social Media)
Korean Airlines Flight 007: 1 सितंबर,1983 की वो काली रात आज भी दुनिया को याद है, जब कोरियन एयरलाइंस की फ्लाइट 007 (KAL 007) को सोवियत संघ के फाइटर जेट ने मिसाइल मारकर उड़ा दिया। ये बोइंग 747 विमान न्यूयॉर्क से सियोल जा रहा था, रास्ते में अलास्का में रुका था, लेकिन एक छोटी सी चूक ने इसे सोवियत हवाई क्षेत्र में पहुंचा दिया। नतीजा? 246 यात्रियों और 23 क्रू मेंबर्स, यानी कुल 269 लोग, कोई नहीं बचा। यह हादसा शीत युद्ध के उस तनाव भरे दौर में हुआ, जब अमेरिका और सोवियत संघ एक-दूसरे को शक की नजरों से देखते थे।
एक आम सी फ्लाइट
30 अगस्त, 1983 को न्यूयॉर्क के जॉन एफ. केनेडी एयरपोर्ट से फ्लाइट 007 ने उड़ान भरी। यह एक रेगुलर फ्लाइट थी, जो दक्षिण कोरिया के सियोल जा रही थी। विमान में 246 यात्री और 23 क्रू मेंबर्स थे। इनमें कोरियाई, अमेरिकी, जापानी और कई देशों के लोग शामिल थे। एक खास यात्री थे अमेरिकी सांसद लैरी मैकडॉनल्ड, जो सियोल में अमेरिका-कोरिया रक्षा संधि की 30वीं सालगिरह के लिए जा रहे थे। मजेदार बात यह कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को भी इस फ्लाइट में होना था। लेकिन उन्होंने आखिरी वक्त पर प्लान कैंसिल कर दिया। शायद उनकी किस्मत अच्छी थी।
31 अगस्त की रात को विमान अलास्का के एंकरेज में रुका, जहां ईंधन भरा गया। सब कुछ ठीक-ठाक लग रहा था। पायलट कैप्टन चुन ब्यूंग-इन और उनके को-पायलट ने चेकअप किया, और विमान फिर से उड़ान के लिए तैयार था। लेकिन यहीं से कहानी में ट्विस्ट शुरू हुआ। एक छोटी सी गलती ने सब कुछ उलट-पुलट कर दिया।
गलती जो बन गई आफत
उस जमाने में विमानों को नेविगेशन के लिए इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम (INS) पर भरोसा करना पड़ता था। रेडियो बीकन और रडार की रेंज इतनी नहीं थी कि हर जगह काम करें। फ्लाइट 007 के पायलटों ने ऑटोपायलट को 245 डिग्री के हेडिंग पर सेट किया, जो गलत था। उन्हें बेथेल, अलास्का के ऊपर से गुजरना था। लेकिन विमान अपने रास्ते से 180 किलोमीटर दूर निकल गया। यह गलती इतनी बड़ी थी कि विमान सीधे सोवियत संघ के कामचटका प्रायद्वीप के ऊपर जा पहुंचा।
कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर, जो बाद में रूस ने 1992 में जारी किया, बताता है कि क्रू को अपनी गलती का जरा भी अंदाजा नहीं था। वो तो सोच रहे थे कि सब कुछ सही जा रहा है! लेकिन वो गलत रास्ते पर थे, और वो भी उस इलाके में, जहां सोवियत संघ अपनी सैन्य गतिविधियों की वजह से बहुत सख्त था।
सोवियत की आँखों में चुभन
1 सितंबर की सुबह, जब फ्लाइट 007 कामचटका के ऊपर से गुजरी, सोवियत रडार ने इसे पकड़ लिया। उस समय शीत युद्ध की वजह से सोवियत संघ को हर विदेशी विमान पर शक रहता था। उन्हें लगा कि यह कोई अमेरिकी जासूसी विमान है, क्योंकि उसी वक्त एक अमेरिकी RC-135 जासूसी विमान भी उस इलाके में उड़ रहा था। सोवियत कमांडरों ने इसे खतरा समझा और तुरंत दो सुखोई Su-15 फाइटर जेट भेज दिए। इनमें से एक जेट मेजर गेन्नादी ओसिपोविच उड़ा रहे थे।
ओसिपोविच ने बाद में बताया कि उन्होंने विमान को देखा और नोटिस किया कि इसकी नेविगेशन और स्ट्रोब लाइट्स जल रही थीं। यह इस बात का इशारा था कि शायद ये कोई सिविलियन विमान है। उन्होंने चेतावनी में तोप के गोले भी दागे। लेकिन रात के अंधेरे में कोरियन पायलटों को ये दिखाई नहीं दिए। उधर, टोक्यो एयर ट्रैफिक कंट्रोल ने फ्लाइट 007 को ऊंचाई बढ़ाने को कहा, ताकि वो 35,000 फीट पर आए। लेकिन सोवियत पायलट ने इसे खतरे की घंटी समझा।
आखिरकार, जब विमान सोवियत हवाई क्षेत्र से निकलकर जापान सागर की ओर बढ़ रहा था, तब ओसिपोविच को ऑर्डर मिला-“लक्ष्य को खत्म कर दो।” उन्होंने दो R-98 मिसाइलें दागीं। एक मिसाइल विमान के पिछले हिस्से के पास फटी, जिसने इसके हाइड्रोलिक सिस्टम को बर्बाद कर दिया। दूसरी मिसाइल सीधे टकराई, और विमान अनियंत्रित होकर साखालिन द्वीप के पास समुद्र में जा गिरा।
उस रात क्या हुआ?
मिसाइल लगने के बाद विमान तुरंत नहीं गिरा। कॉकपिट रिकॉर्डर बताता है कि ये 113 सेकंड तक हवा में रहा। इस दौरान ये 38,250 फीट की ऊंचाई तक गया। पायलटों ने इसे बचाने की पूरी कोशिश की, लेकिन नुकसान इतना था कि कुछ हो नहीं सका। आखिर में विमान मोनेरॉन द्वीप के पास जापान सागर में क्रैश हो गया। सभी 269 लोग मारे गए।
सोवियत पायलटों ने बाद में कहा कि उन्हें सचमुच लगा था कि यह जासूसी विमान है। लेकिन सच यह था कि उन्होंने अंतरराष्ट्रीय नियमों को ताक पर रख दिया। न तो उन्होंने रेडियो पर संपर्क करने की कोशिश की, न ही चेतावनी के गोले सही तरीके से दागे। ये सब शीत युद्ध के उस डर और शक का नतीजा था, जब हर छोटी चीज को साजिश समझा जाता था।
दुनिया का गुस्सा और दुख
जब यह खबर दुनिया तक पहुंची, तो हर तरफ हंगामा मच गया। अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने इसे ‘नरसंहार’ और ‘इंसानियत के खिलाफ अपराध’ बताया। उन्होंने इसका इस्तेमाल सोवियत संघ को नीचा दिखाने के लिए किया। रीगन ने ऐलान किया कि ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS), जो पहले सिर्फ सेना के लिए था, अब सिविलियन विमानों के लिए भी खोला जाएगा। ये इस हादसे का एक बड़ा नतीजा था, क्योंकि GPS ने बाद में उड्डयन को बहुत सुरक्षित बना दिया।संयुक्त राष्ट्र में इसकी कड़ी निंदा हुई, लेकिन सोवियत संघ ने इसे वीटो कर दिया। दक्षिण कोरिया और जापान ने भी गुस्सा जताया। दक्षिण कोरिया ने सोवियत संघ के साथ सारी अनौपचारिक बातचीत बंद कर दी। कई देशों ने सोवियत की एयरलाइन एयरोफ्लोट पर बैन लगा दिया।
साजिश की बातें
इस हादसे के बाद कई साजिश की कहानियाँ उड़ीं। कुछ लोगों ने कहा कि सोवियत संघ ने जानबूझकर विमान को गिराया। कुछ का मानना था कि शायद कुछ यात्री जिंदा बचे और उन्हें सोवियत जेलों में बंद कर लिया गया। एक थ्योरी यह भी थी कि विमान कहीं और गिरा, और सोवियत ने सच छिपाया। लेकिन इनमें से कोई भी बात सच साबित नहीं हुई।1992 में, जब सोवियत संघ टूट गया, रूस के राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने ब्लैक बॉक्स और कॉकपिट रिकॉर्डर जारी किए। इनसे साफ हुआ कि यह एक नेविगेशनल गलती थी। क्रू को अपनी गलती का पता ही नहीं चला, और सोवियत पायलटों ने इसे जासूसी विमान समझ लिया।
क्या सीख मिली?
फ्लाइट 007 का हादसा शीत युद्ध की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक है। इसने 269 जिंदगियाँ छीन लीं और दिखाया कि गलतफहमियाँ कितनी खतरनाक हो सकती हैं। इस हादसे से नागरिक उड्डयन में नेविगेशन और कम्युनिकेशन की अहमियत सामने आई। GPS के इस्तेमाल ने ऐसी गलतियों को काफी हद तक कम कर दिया। लेकिन यह कहानी हमें ये भी सिखाती है कि डर और शक कितना नुकसान कर सकते हैं। अगर सोवियत पायलटों ने जल्दबाजी न की होती, शायद यह हादसा टल सकता था। यह हमें याद दिलाता है कि तकनीक और इंसानी समझ को मिलकर काम करना होगा, ताकि ऐसी त्रासदी फिर न हो।
कोरियन एयरलाइंस फ्लाइट 007 की कहानी एक ऐसी त्रासदी है, जो हमें सोचने पर मजबूर करती है। एक छोटी सी नेविगेशनल गलती ने 269 लोगों की जान ले ली और शीत युद्ध के तनाव को और बढ़ा दिया। अगर उस रात सोवियत पायलट और कोरियन क्रू के बीच रेडियो पर बात हो पाती, तो शायद यह हादसा न होता। यह कहानी हमें सिखाती है कि संचार कितना जरूरी है, और कैसे एक छोटी सी गलती बड़ी तबाही ला सकती है। तो अगली बार जब आप आसमान में कोई विमान देखें, तो जरा उन 269 लोगों को भी याद कर लें, जिनकी जिंदगी उस रात हमेशा के लिए थम गई।
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