Synthetic Meat Kya Hai: अब बिना किसी जानवर की जान लिए मिलेगा मांस! जानिए क्या है लैब में बना सिंथेटिक मीट?

Synthetic Meat Kya Hai: इस लेख में हम जानेंगे सिंथेटिक मीट क्या है, यह कैसे बनता है, क्यों ज़रूरी है और इसका भविष्य क्या हो सकता है।

Shivani Jawanjal
Published on: 26 July 2025 10:00 AM IST (Updated on: 26 July 2025 10:01 AM IST)
Synthetic Meat Kya Hai
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Synthetic Meat Kya Hai

What Is Synthetic Meat: मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ भोजन की आवश्यकता और उपलब्धता ने भी न केवल हमारे शरीर बल्कि पर्यावरण और अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है। बढ़ती जनसंख्या, मांस की मांग और इसके कारण होने वाला पर्यावरणीय विनाश आज वैज्ञानिकों को ऐसे विकल्प खोजने पर मजबूर कर रहा है जो स्वाद और पोषण से भरपूर हों लेकिन नैतिक, स्वास्थ्य और पर्यावरण के नजरिए से सुरक्षित भी हों। ऐसे में सिंथेटिक मीट या लेब-ग्रोन मीट (Lab-Grown Meat, Cultured meat,Cell-based meat, Clean meat) एक क्रांतिकारी खोज के रूप में सामने आया है।

सिंथेटिक मीट क्या है?


सिंथेटिक मीट, जिसे कृत्रिम मांस या लैब में तैयार किया गया मांस भी कहा जाता है एक आधुनिक वैज्ञानिक खोज है जो बिना किसी जानवर को नुकसान पहुँचाए मांस प्राप्त करने की तकनीक प्रदान करती है। इस प्रक्रिया में जानवर की मांसपेशियों से कुछ कोशिकाएँ ली जाती हैं और इन्हें एक विशेष पोषक तत्वों से भरपूर माध्यम में विकसित किया जाता है। यह माध्यम अमीनो एसिड, विटामिन्स और ग्रोथ फैक्टर्स से समृद्ध होता है जो कोशिकाओं को बढ़ने और परतों के रूप में मांस जैसी संरचना बनाने में मदद करता है। जब ये कोशिकाएं पर्याप्त रूप से विकसित हो जाती हैं तो इनकी बनावट और स्वाद पारंपरिक मांस जैसा ही होता है, जिससे यह एक टिकाऊ और नैतिक विकल्प बनकर उभरता है।

सिंथेटिक मीट बनाने की प्रक्रिया


कोशिका संग्रह (Cell Extraction) - सिंथेटिक मीट बनाने की प्रक्रिया की शुरुआत जीवित जानवर से एक सूक्ष्म ऊतक, खासकर मांसपेशियों की कोशिकाएं, लेने से होती है। यह प्रक्रिया अत्यंत सावधानी से की जाती है ताकि जानवर को कोई गंभीर हानि न पहुँचे। आमतौर पर इसे एक सुरक्षित और मानवीय तरीका माना जाता है।

कोशिका संवर्धन (Cell Cultivation) - प्राप्त कोशिकाओं को एक पोषक तत्वों से भरपूर मिश्रण में रखा जाता है जिसे growth medium कहा जाता है। इसमें अमीनो एसिड, विटामिन्स, ग्लूकोज और मिनरल्स होते हैं जो कोशिकाओं को जीवित रखने और उनके विकास के लिए आवश्यक सभी पोषण प्रदान करते हैं।

संवर्धन और विभाजन (Growth and Multiplication) - एक बार कोशिकाएं अनुकूल वातावरण में आ जाती हैं, तो वे धीरे-धीरे विभाजित होकर संख्या में बढ़ने लगती हैं। यह वृद्धि कई हफ्तों से लेकर महीनों तक चल सकती है और इस दौरान कोशिकाएं बड़ी मात्रा में इकट्ठा हो जाती हैं, जिससे मांस के निर्माण की दिशा में पहला ठोस कदम पूरा होता है।

बनावट और स्वाद का विकास (Texture & Flavor Engineering) - कोशिकाओं के बढ़ने के बाद वैज्ञानिक 3D बायोप्रिंटिंग और स्कैफोल्डिंग जैसी तकनीकों से मांस की प्राकृतिक बनावट और रेशेदार संरचना को कृत्रिम रूप से तैयार करते हैं। इन तकनीकों से सिंथेटिक मीट का स्वाद और टेक्सचर पारंपरिक मांस जैसा बनाने में मदद मिलती है जिससे यह उपभोक्ताओं को स्वाद, अनुभव और पोषण के स्तर पर असली मांस जैसा प्रतीत होता है।

सिंथेटिक मीट की आवश्यकता क्यों पड़ी?


पारंपरिक मांस उत्पादन न केवल जल, भूमि और ऊर्जा की अत्यधिक खपत करता है बल्कि यह ग्रीनहाउस गैसों विशेषकर मीथेन के उत्सर्जन के जरिए जलवायु परिवर्तन को भी बढ़ावा देता है। जुगाली करने वाले पशु जैसे गाय और भैंस इस गैस के प्रमुख स्त्रोत हैं। इसके विपरीत सिंथेटिक मीट का निर्माण एक नियंत्रित लैब वातावरण में होता है जिसमें जल, भूमि और ऊर्जा का उपयोग काफी कम हो सकता है, हालांकि यह उत्पादन की तकनीक पर निर्भर करता है। इसके अलावा यह विधि पशु जीवन के प्रति अधिक दयालु मानी जाती है क्योंकि इसमें जानवरों की हत्या की आवश्यकता नहीं होती। केवल प्रारंभिक कोशिका संग्रहण में ही सीमित हस्तक्षेप होता है। यही नहीं लैब में तैयार मांस खाद्य सुरक्षा की दृष्टि से भी बेहतर हो सकता है क्योंकि इसमें साल्मोनेला या ई. कोलाई जैसी जीवाणुजनित बीमारियों का जोखिम बहुत कम होता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि यह तकनीक बड़े पैमाने पर अपनाई जाती है तो यह जलवायु संकट से निपटने में अहम भूमिका निभा सकती है। हालांकि इसके प्रभाव का पूरा आकलन इसके व्यापक उपयोग के बाद ही संभव होगा।

सिंथेटिक मीट के लाभ


शाकाहारी और पशु प्रेमियों के लिए नैतिक विकल्प - सिंथेटिक मीट उन लोगों के लिए एक क्रांतिकारी समाधान प्रस्तुत करता है जो जानवरों के प्रति करुणा रखते हैं या नैतिकता के आधार पर मांस से दूर रहते हैं। यह मांस जानवरों को मारे बिना, केवल उनकी कोशिकाओं से तैयार किया जाता है, जिससे पशु हत्या की आवश्यकता समाप्त हो जाती है। इस कारण यह विकल्प कड़े शाकाहारी और पशु प्रेमियों के लिए अत्यंत आकर्षक और स्वीकार्य बनता जा रहा है।

कम पर्यावरणीय प्रभाव - पारंपरिक पशुपालन की तुलना में सिंथेटिक मीट उत्पादन में भूमि, जल और ऊर्जा का उपयोग बहुत कम होता है। साथ ही यह मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी हानिकारक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को भी सीमित कर सकता है। यद्यपि इन लाभों की मात्रा तकनीक के स्केलिंग और विकास पर निर्भर करती है। लेकिन वर्तमान वैज्ञानिक शोध इस दिशा में आशाजनक संकेत दे रहे हैं।

स्वास्थ्यवर्धक विकल्प पारंपरिक मांस उत्पादन में एंटीबायोटिक्स और ग्रोथ हार्मोन का इस्तेमाल आम है । जो मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकते हैं जैसे एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस। इसके विपरीत लैब में तैयार सिंथेटिक मीट में इन रसायनों की आवश्यकता नहीं होती जिससे यह एक अधिक सुरक्षित और स्वास्थ्यवर्धक विकल्प बनता है। इसके अलावा इसमें वसा और अन्य पोषक तत्वों का स्तर वैज्ञानिक रूप से नियंत्रित किया जा सकता है।

खाद्य संकट से राहत - तेजी से बढ़ती वैश्विक जनसंख्या के साथ खाद्य सुरक्षा एक गंभीर चुनौती बनती जा रही है। सिंथेटिक मीट, सीमित संसाधनों में अधिक उत्पादन की क्षमता रखता है और इसे बड़े पैमाने पर लैब में तैयार किया जा सकता है। इससे यह भविष्य में प्रोटीन का एक स्थायी, पोषक और भरोसेमंद स्रोत बन सकता है, जो खाद्य संकट से निपटने में अहम भूमिका निभाएगा।

सिंथेटिक मीट से जुड़ी चुनौतियाँ


भविष्य की संभावनाओं के बावजूद सिंथेटिक मीट के सामने कई व्यावहारिक चुनौतियाँ हैं। सबसे बड़ी समस्या इसकी उच्च लागत है हालाँकि शुरुआती दिनों की तुलना में कीमतें घटी हैं, पर यह अभी भी आम उपभोक्ताओं की पहुँच से बाहर है। स्वाद और बनावट को लेकर भी सीमाएं हैं। वैज्ञानिक पारंपरिक मांस जैसी अनुभूति देने की कोशिश में लगे हैं लेकिन अभी भी टेक्सचर और फ्लेवर में अंतर महसूस होता है।

सांस्कृतिक और धार्मिक पहलू भी अहम हैं। भारत जैसे देश में खाने को लेकर गहरी भावनाएँ जुड़ी हैं और सिंथेटिक मीट को शाकाहारी या मांसाहारी मानने पर मतभेद हो सकते हैं। साथ ही कानूनी और नियामक चुनौतियाँ भी सामने हैं । सुरक्षा, लेबलिंग और धार्मिक सर्टिफिकेशन जैसे मुद्दों पर स्पष्टता और स्वीकृति अभी कई देशों में बाकी है।

वैश्विक स्तर पर सिंथेटिक मीट की पहल

दुनिया में सिंथेटिक मीट को कानूनी मंजूरी देने वाला पहला देश सिंगापुर है। दिसंबर 2020 में सिंगापुर सरकार ने Eat Just द्वारा बनाए गए लैब-ग्रो चिकन को रेस्तरां में परोसने के लिए हरी झंडी दी, जिससे वह इस क्षेत्र में वैश्विक अगुआ बन गया। इसके बाद अमेरिका और यूरोप के कई स्टार्टअप्स ने भी इस दिशा में तेजी से कदम बढ़ाए हैं। अमेरिका में UPSIDE Foods (पहले Memphis Meats), Eat Just और GOOD Meat जैसे नाम अग्रणी हैं। जबकि यूरोप में Mosa Meat (नीदरलैंड) और Aleph Farms (इज़राइल मूल की, पर यूरोपीय विस्तार में सक्रिय) प्रमुख खिलाड़ी हैं। ये कंपनियाँ अनुसंधान, विकास और नियामकीय स्वीकृतियों पर बड़े पैमाने पर निवेश कर रही हैं। जिससे सिंथेटिक मीट के वैश्विक भविष्य की नींव रखी जा रही है।

भारत में सिंथेटिक मीट की संभावनाएँ


भारत में भी सिंथेटिक मीट के क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार की शुरुआत हो चुकी है। दिल्ली स्थित स्टार्टअप Clear Meat लैब में तैयार किए गए चिकन पर काम कर रहा है और इसे कई बार मीडिया में भी प्रमुखता से प्रस्तुत किया गया है। इसके अलावा Myoworks और Evo Foods जैसे अन्य स्टार्टअप्स भी इस क्षेत्र में उभर रहे हैं। हालाँकि Evo Foods का मुख्य फोकस प्लांट-बेस्ड प्रोटीन पर है। वर्तमान में भारत में सेल-बेस्ड मीट के लिए कोई स्पष्ट नियामकीय मंजूरी नहीं है ।लेकिन शोध, विकास और सीमित स्तर पर पायलट उत्पादन का कार्य निरंतर जारी है। इससे संकेत मिलता है कि भारत भी इस वैश्विक क्रांति का हिस्सा बनने की दिशा में सक्रिय रूप से प्रयासरत है।

भविष्य की संभावनाएँ

सिंथेटिक मीट की लागत समय के साथ कम हो रही है और भविष्य में तकनीकी विकास, ऑटोमेशन और बेहतर उत्पादन तकनीकों के चलते यह और सस्ती हो सकती है। हालांकि इसे पारंपरिक मांस जितना सस्ता बनने में अभी समय लगेगा। इसके समानांतर, प्लांट-बेस्ड मीट भी तेजी से लोकप्रिय हो रहा है जो उत्पादन में सरल और तुलनात्मक रूप से सस्ता है। भारत समेत दुनियाभर में कई कंपनियाँ इस क्षेत्र में सक्रिय हैं। इसके साथ ही सरकारी नीतियों और सहयोग की भूमिका भी अहम है जैसे फंडिंग, सब्सिडी और नियामकीय ढांचे का निर्माण। भारत में भी इस दिशा में विचार और संवाद की शुरुआत हो चुकी है जो भविष्य में खाद्य सुरक्षा और पर्यावरणीय संतुलन के लिए महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।

नैतिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण

सिंथेटिक मीट को लेकर नैतिक और धार्मिक दृष्टिकोण समाज में भिन्न-भिन्न हैं। कुछ कड़े शाकाहारी, वेगन और पशु-अधिकार कार्यकर्ता इसे भी अनैतिक मानते हैं क्योंकि इसमें जानवरों की कोशिकाओं का उपयोग होता है। वहीं कई लोग इसे अधिक नैतिक मानते हैं क्योंकि इसमें जानवरों की हत्या नहीं होती। दूसरी ओर, धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएँ भी महत्वपूर्ण हैं। जैसे हिंदू, जैन या मुस्लिम समुदायों में भोजन को लेकर विशिष्ट आस्थाएँ और नियम होते हैं। इसलिए इस तकनीक की सामाजिक स्वीकृति के लिए जरूरी है कि सरकारें, वैज्ञानिक और कंपनियाँ लोगों की आस्थाओं और परंपराओं का सम्मान करें और उनके अनुसार संवाद करें।

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