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हिंदी सिनेमा में बरसात: भीगी बूँदों में बसी भावनाओं की कविता
Rain in Hindi Cinema : हिंदी सिनेमा अपने गीत संगीत के लिए दुनियाभर में लोकप्रिय है वहीँ बरसात के मौसम पर आपको एक से बढ़कर एक गाने मिल जायेंगें। आइये एक नज़र डालते हैं इन बेहतरीन नगमों पर।
Rain in Hindi Cinema (Image Credit-Social Media)
Rain in Hindi Cinema: हिंदी सिनेमा ने जब-जब पर्दे पर बरसात के मौसम को उतारा है, वह केवल घटाओं की गूँज या बूंदों की थपकी नहीं रही, बल्कि इंसानी मन की परतों में छुपी सैकड़ों भावनाओं का उजागर होना बन गई। बरसात में भीगते नायक-नायिका की छवियों के पीछे कहीं प्रेम का मासूम आग्रह है, कहीं बिछोह की कसक, तो कहीं जीवन की चंचल खिलखिलाहट। हर बूंद, हर धारा मानो एक दबी हुई तड़प को संगीत में पिरोती चली गई।
बरसात में हमसे मिले तुम – बरसात (1949)
लता मंगेशकर के करियर में फिल्म बरसात के गीतों ने बड़ा उछाल दिया। शैलेंद्र के लिखे इस गीत को शंकर–जयकिशन ने संगीत में पिरोया। निम्मी और राज कपूर पर फिल्माया गया यह गीत अपने आकर्षक ताक धिना धिन कोरस और अद्भुत नृत्यकला के लिए याद किया जाता है।
गर्जत बरसात सावन आयो रे – मल्हार (1951)
रौशन ने राग मल्हार पर आधारित यह गाना लता मंगेशकर से गवाया। इसके बोल इंदीवर ने लिखे थे।
प्यार हुआ इकरार हुआ – श्री 420 (1955)
राज कपूर और नर्गिस की छतरी तले प्रेम की छवि हिंदी सिनेमा की कालजयी तस्वीर बन गई। शैलेंद्र के बोल “प्यार हुआ इकरार हुआ है” आज भी अमर हैं। संगीत शंकर–जयकिशन का और गायन लता–मन्ना डे का श्रेष्ठ उदाहरण है।
ये रात भीगी भीगी – चोरी चोरी (1956)
राज कपूर और नर्गिस पर फिल्माए इस गीत में दृश्य में बारिश प्रत्यक्ष नहीं, पर “ये रात भीगी भीगी, ये मस्त फिजाएँ” की पंक्तियाँ वातावरण को गीला कर देती हैं। लता मंगेशकर और मन्ना डे ने इसे स्वर दिए।
उमड़ घुमड़ कर आई रे घटा – दो आंखें बारह हाथ (1957)
वी. शांताराम की प्रतिष्ठित फिल्म का यह वर्षा गीत लता मंगेशकर और मन्ना डे की आवाज़ में अमर हुआ। भरत व्यास के बोल और वसंत देसाई का संगीत इस गीत को कालजयी बनाते हैं।
डम डम डिगा डिगा – छलिया (1959)
मन्ना डे की खनकती आवाज़ में यह गीत पहली बारिश की सौंधी महक बनकर दिल में उतर जाता है। राज कपूर की मासूमियत और उत्साह में भीगी यह रचना आज भी मानसून की पहली फुहारों की याद दिलाती है।
गर्जत बरसात सावन आयो रे – बरसात की रात (1960)
फिल्म बरसात की रात में इसका नया संस्करण सुमन कल्याणपुर और कमल बारोट ने गाया। साहिर लुधियानवी के बोल और रौशन के संगीत ने इसे और मधुर बना दिया। “जिंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात” इसी फिल्म का दूसरा लोकप्रिय गीत था।
सावन का महीना – मिलन (1967)
आनंद बख्शी द्वारा लिखित यह गीत बारिश के मौसम, पवन की सरसराहट और मन में मयूर नृत्य के भाव को संजोता है। मुकेश और लता मंगेशकर की आवाज़ में, लक्ष्मीकांत–प्यारेलाल के संगीत में ढला यह गीत सुनील दत्त और नूतन पर फिल्माया गया।
मेघा छाए आधी रात – शर्मिली (1971)
राग पाटदीप पर आधारित यह गीत लता मंगेशकर का रत्न है। एस.डी. बर्मन का संगीत और नीरज के बोल राखी की छवि को भीगी रात में डुबो देते हैं।
हाय हाय ये मजबूरी – रोटी कपड़ा और मकान (1974)
लता मंगेशकर की आवाज़ और बारिश में भीगी ज़ीनत अमान की छवि प्रेम और पीड़ा का अनकहा संलयन रचती है।
अब के सजन सावन में – चुपके चुपके (1975)
धर्मेंद्र और शर्मिला टैगोर की सादगी से सजा यह गीत सावन में हास्य और रोमांस की अद्भुत छाँव बिखेरता है।
रिमझिम गिरे सावन – मंजिल (1979)
किशोर कुमार और लता मंगेशकर की आवाज़ में अमिताभ बच्चन और मौसमी चटर्जी की बारिश में टहलती जोड़ी भीगी दोपहर की स्मृति बन जाती है।
सावन के झूले पड़े – जुर्माना (1979)
लता मंगेशकर की मधुर आवाज़, आर.डी. बर्मन का संगीत और आनंद बख्शी के शब्द, अमिताभ और राखी की जोड़ी पर फिल्माया गया यह गीत सावन की मासूम मस्ती का सुंदर उदाहरण है।
आज रपट जाएं – नमक हलाल (1982)
अमिताभ बच्चन और स्मिता पाटिल की चंचल केमिस्ट्री सावन की मस्ती का चरम उदाहरण है।
जब हम जवां होंगे – बेताब (1983)
सनी देओल और अमृता सिंह पर फिल्माया यह गीत बिजली की कड़क और प्रेम की नर्माहट का संगम रचता है।
लगी आज सावन – चांदनी (1989)
यश चोपड़ा की इस प्रेम त्रिकोण में अनुपमा देशपांडे और सुरेश वाडकर की आवाज़ ने सावन की तड़प को स्वर दिया। श्रीदेवी और विनोद खन्ना की भीगी छवियों ने इसे कालजयी बना दिया।
टिप टिप बरसा पानी – मोहरा (1994)
रवीना टंडन की पीली साड़ी और अलका याज्ञनिक की आवाज़ में कामनाओं का उन्मुक्त उत्सव बन गया यह गीत।
रिमझिम रिमझिम – 1942: ए लव स्टोरी (1994)
आर.डी. बर्मन की अंतिम रचनाओं में यह गीत प्रेम में पिघलती दीवारों की अनोखी अनुभूति है। कुमार सानू और कविता कृष्णमूर्ति ने इसे अमर कर दिया।
कोई लड़की है – दिल तो पागल है (1997)
शाहरुख़ और माधुरी पर फिल्माया यह गीत सावन में भीगी मासूम हँसी का गीत है।
सावन बरसे – दहक (1999)
मजरूह सुल्तानपुरी की कलम से निकले शब्दों में बरसात जैसे किसी विरही मन की गहराइयों से उठती पुकार बन जाती है। हरिहरन और साधना सरगम की रेशमी आवाज़ें एक अनकहे इंतज़ार और भीतर की बेचैनी को बहा ले जाती हैं। यह गीत प्रेम की उस तड़प का प्रतीक है, जो सावन की बूँदों में डूबकर भी कभी शांत नहीं होती।
घनन घनन – लगान (2001)
बरसात की प्रतीक्षा में तड़पती धरती और प्यास से झुलसते किसानों का सामूहिक सपना जब ए.आर. रहमान के संगीत में आकार लेता है, तो यह केवल गीत नहीं रहता, यह संजीवनी बन जाता है। घनन घनन की पुकार में हर दिल की आस, हर आँख की प्यास और हर चेहरे की उम्मीद गूँजती है।
सांसों को सांसों में – हम तुम (2004)
सावन की कोमल नमी में डूबा यह गीत आधुनिक प्रेम की मासूम ख़ुशबू को रेशमी अहसास में बदल देता है। के.के. और अल्का याज्ञनिक की मखमली आवाज़ें जैसे प्रेम के उन लम्हों को थाम लेना चाहती हैं, जब दो दिल एक बरसती रात में पहली बार एक-दूसरे में घुल जाते हैं।
वो लम्हे, वो बातें – ज़हर (2005)
कभी-कभी बारिश यादों की राख को फिर से सुलगा देती है। यह गीत टूटी हुई रिश्तों की टीस, अधूरी मोहब्बत की कसक और भीगी रातों की सिहरन का संगीत बन जाता है। रोहतक की सड़कों से लेकर परदे पर इमरान हाशमी की उदास आँखों तक, इस गीत में गहरा अकेलापन रिसता है।
देखो ना – फना (2006)
सोनू निगम और सुनिधि चौहान के स्वरों में बरसात की रिमझिम किसी मासूम प्रेम की तरह बहती है, जो हर बूँद में अपने स्पर्श की खोज करता है। आमिर खान और काजोल पर फिल्माया यह गीत पहली मोहब्बत की भीगी स्मृतियों को उजागर करता है, जैसे हर बूंद में एक दबी हुई हँसी और एक अनकही दुआ छुपी हो।
बरसो रे मेघा – गुरु (2007)
गुलज़ार की कल्पनाशील कविता और श्रेया घोषाल की मीठी आवाज़ में यह गीत सावन की असीम संभावनाओं का उत्सव बन जाता है। बारिश केवल धरती को नहीं, आत्मा को भी भिगो देती है, और इस गीत में हर फुहार किसी नये आरंभ का संकेत लगती है। बारिश का यह संगीत भीतर के बंधनों को तोड़ने और स्वतंत्रता का जश्न मनाने का निमंत्रण है।
हिंदी सिनेमा की ये भीगी रचनाएँ सिखाती हैं कि बारिश कभी केवल पानी नहीं होती। यह हमारे भीतर के गुप्त जज़्बातों को प्रकट करने वाली अमूर्त कविता है। सावन की बूँदें जीवन के उन पन्नों को भिगो जाती हैं, जहाँ प्रेम, विरह, आनंद और स्मृतियाँ इंद्रधनुष की तरह खिल उठती हैं।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)
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