RSS@100: सेवा, समर्पण और राष्ट्र निर्माण के सौ वर्षों की गाथा

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने 1925 से अब तक समाज सेवा, राष्ट्र रक्षा और संगठन के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित किए, शताब्दी वर्ष में विशेष कार्यक्रम हो रहे।

Brijnandan Raju
Published on: 1 Oct 2025 10:11 PM IST
RSS@100: Century of Service, Sacrifice and Nation Building
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RSS@100: Century of Service, Sacrifice and Nation Building

RSS@100: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण हो गए हैं। संघ की स्थापना सन 1925 में विजयादशमी के दिन डा.केशव राव बलिराम हेडगेवार ने नागपुर में की थी। संघ शताब्दी वर्ष मना रहा है। किसी भी संगठन के लिए सौ वर्षों की यात्रा विशेष महत्व रखती है। संघ को समझने के लिए डा. हेडगेवार का जीवन और संघ स्थापना की पृष्ठभूमि समझना आवश्यक है। संघ की स्थापना करने वाले डा.हेडगेवार क्रान्तिकारी थे। अपने समय के सामाजिक,धार्मिक व राजनैतिक क्षेत्र में चलने वाले सभी आन्दोलनों में वह सहभागी रहे।

उस समय देश की तत्कालीन परिस्थिति को देखकर लग रहा था कि भारत आजाद होने वाला है। डा.हेडगेवार ने सोचा देश तो आजाद हो जायेगा लेकिन क्या गारंटी है कि हम फिर गुलाम नहीं होंगे। जब कोई डॉ. हेडगेवार से पूछता कि स्वतंत्रता कब मिलेगी वे उनसे उल्टा पूछते स्वतंत्रता गई क्यों। डा.हेडगेवार ने चिंतन किया तो पाया कि अपने समाज की कमजोरियों के कारण हम परतंत्र हुए। समाज की कमियों को दूर नहीं किया गया तो देश को दुबारा गुलाम होने से कोई नहीं रोक पायेगा। संगठन का अभाव व देशभक्ति के अभाव के कारण हम गुलाम हुए। देश की सब चीजें हिन्दुओं से जुड़ी हैं इसलिए उन्होंने घोषणा की कि भारत हिन्दू राष्ट्र है। इसलिए हिन्दुओं का संगठन करना आवश्यक है।


इसी विचार से संघ शुरू हुआ और शाखा रूपी अभिनव कार्यपद्धति डा.हेडगेवार ने दी। डा. हेडगेवार कहते थे कि ऐसा संगठन खड़ा करना है जो जो देश व समाज पर आने वाली हर विपत्ति का सामना भी कर सके। उस समय लोग कहते थे कि हिन्दू संगठन करना मेढ़क तौलने के समान है। परन्तु डा. साहब विचलित नहीं हुए। उन्होंने अपने जीवनकाल में संघ को हर प्रान्त में पहुँचा दिया। डा. साहब ने सिद्ध कर दिखाया कि हिन्दू समाज संगठित हो सकता है। कदम से कदम मिलाकर एक दिशा में साथ चल सकता है। संघ की स्थापना का उद्देश्य 'परम् वैभवन् नेतुमेतत स्वराष्ट्र'यानि राष्ट्र को परमवैभवशाली बनाना है। डा.हेडगेवार के बाद 03 जुलाई 1940 को माधव राव सदाशिवराव गोलवलकर सरसंघचालक बने। उन दिनों देश में स्वाधीनता आन्दोलन चरम पर था। अलगाववादी ताकतें अंग्रेजों के इशारे पर देश के टुकड़े करने पर उतारू थीं। श्रीगुरूजी के आहवान पर स्वयंसेवकों ने पूरी ऊर्जा संगठन विस्तार में लगायी।

स्वयंसेवकों ने बलिदान देकर की हिन्दुओं की रक्षा

अपनी जान को जोखिम में डालकर साहस और तत्परता से सेवा करने का जो संस्कार स्वयंसेवकों के मन में रोपा जाता है उसकी कठोर परीक्षा भारत विभाजन के समय हुई। लाखों भाई बहनों के जीवन व सम्मान की रक्षा करने का काम स्वयंसेवकों ने किया। विभाजन के समय पाकिस्तान के हिन्दुओं की रक्षा के लिए संघ के अतिरिक्त और कोई नहीं आया। संघ के स्वयंसेवकों ने अपने जान की बाजी लगाकर हिन्दुओं को सुरक्षित वहां से निकालकर भारत लाने में अपने शौर्य व साहस के कीर्तिमान स्थापित किए। इसके बाद प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की नीतियों के कारण जब कश्मीर के महाराजा हरि सिंह जम्मू कश्मीर रियासत का विलय भारत में करने को राजी नहीं थे तो संघ के द्वितीय सरसंघचालक ने महाराजा से भेंट कर कश्मीर का भारत में विलय कराया। भारत विभाजन के समय स्वयंसेवकों के त्याग व बलिदान के कारण बड़ी संख्या में लोग संघ में जुड़े। क्योंकि विभाजन के बाद पाकिस्तान से सुरक्षित भारत लाने और यहां पर उनके पुनर्वास की चिंता संघ के अतिरिक्त किसी ने नहीं की। संघ की दिनोंदिन बढ़ती शक्ति जवाहर लाल नेहरू को रास नहीं आ रही थी। उनको अपनी कुर्सी की चिंता सताने लगी। ऐन केन प्रकारेण वह संघ को प्रतिबंधित करना चाहत रहे थे। इसी दौरान देश के दुर्भाग्य से और कांग्रेस के सौभाग्य से महात्मा गांधी की हत्या हो गयी। कांग्रेस समेत पूरी केन्द्र सरकार ने इसका ठीकरा संघ पर फोड़ा। संघ पर गांधी हत्या का मिथ्या आरोप लगाकर संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया। संघ कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया गया। संघ कार्यालयों पर हमले हुए। इसके खिलाफ संघ ने देशव्यापी सत्याग्रह किया। संघ पर आरोप गलत साबित हुए। बिना शर्त संघ से प्रतिबन्ध हटा।

विविध क्षेत्रों में राष्ट्रव्यापी विस्तार

इसके बाद संघ से प्रेरित कई संगठन भी बने। संघ संस्थापक डॉ.हेडगेवार ने 1940 में संघ शिक्षा वर्ग में कहा था कि संघ कार्य को शाखा तक ही सीमित नहीं रखना है समस्त हिन्दू समाज हमारा कार्य क्षेत्र है। इसलिए समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में किसानों के क्षेत्र में भारतीय किसान संघ,मजदूरों के बीच काम करने के लिए भारतीय मजदूर संघ,विद्यार्थियों के बीच काम करने के लिए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद,राजनीतिक क्षेत्र में जनसंघ,शिक्षा के क्षेत्र में विद्या भारती,धर्म के क्षेत्र में विश्व हिन्दू परिषद,वनवासियों के बीच काम करने के लिए वनवासी कल्याण आश्रम,अधिवक्ता परिषद,संस्कार भारती व विज्ञान भारती जैसे करीब 50 संगठन विविध क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। यह संगठन अपने क्षेत्र में शीर्ष स्तर के संगठन हैं। यह सभी संगठन स्वतंत्र व स्वायत्त हैं। 1975 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लोकतंत्र का गला घोंटा और देश में आपातकाल लगा दिया तब लोकतंत्र की रक्षा के लिए संघ ही आगे आया। आपातकाल विरोधी संघर्ष में 1 लाख से भी ज्यादा स्वयंसेवक सत्याग्रह कर जेल गये। पहले उपहास फिर उपेक्षा और बाद में विरोध और संघर्ष भी करना पड़ा। इसके बाद समाज के बीच संगठन की स्वीकार्यता बढ़ी। विरोध व संघर्ष के काल में भी राष्ट्रपुनर्निमाण की प्रक्रिया सतत चलती रही। इस दौरान समय—समय पर जब भी देश व समाज पर संकट आया स्वयंसेवक उसके निदान में लगे।

दैवीय व प्राकृतिक आपदाओं में सेवा

संघ के स्वयंसेवकों का जीवन सेवामय ही होता है। स्वयंसेवक समाज के कष्ट देखते ही दौड़ पड़ते हैं। केवल आपदा के समय ही नहीं तो समाज के अभाव, पीड़ा व उपेक्षा को दूर करने के लिए अपनी शक्ति व सामार्थ्य से काम करते हैं।


सन 1989 में संघ संस्थापक डा. हेडगेवार के जन्म शताब्दी देशभर में मनाई गयी। उस समय बाला साहब देवरस ने कहा था कि संघ सेवाभावी व्यक्तियों का निर्माण करने वाला संगठन है। हमें अपने सेवाकार्यों को बढ़ाना है। संघ ने सेवा विभाग प्रारम्भ किया। वर्तमान में स्वयंसेवकों द्वारा विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से कुल 1,29,000 सेवा कार्य की गतिविधियां चल रही हैं। यदि हम संघ की 100 वर्षों की यात्रा पर दृष्टि डालें तो स्पष्ट होता है कि संघ के स्वयंसेवकों ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्रों में सक्रिय योगदान दिया है। अनेक क्षेत्रों में वह परिवर्तन के वाहक भी बने हैं। विगत 100 वर्षों के इतिहास में ऐसे कई अवसर आए जब चक्रवात,तूफान,बाढ़,महामारी,भूकंप,अकाल, तथा प्राकृतिक तथा मानवीय आपदाओं में संघ के स्वयंसेवकों ने सेवा कार्य के नए प्रतिमान गढ़े हैं। आपदाओं के अलावा भारत विभाजन,चीन व पाकिस्तान के आक्रमण के समय संघ के स्वयंसेवकों ने सेवा के इतिहास रचे हैं। गुजरात में जब 1987 में भयंकर सूखा पड़ा उस समय स्वयंसेवकों ने लाखों परिवारों को भोजन देने के लिए लाखों परिवारों से सुखड़ी संग्रह का अनोखा अभियान चलाकर पूरे विश्व को चकित कर दिया। आन्ध्र का चक्रवात हो या 1994 में सूरत में प्लेग की महामारी,उड़ीसा के अकाल पीड़ितों की सहायता हो या भोपाल गैस त्रासदी हर संकट में संघ के स्वयंसेवक आगे आये।

अपने सेवाभाव को स्वयंसेवकों ने केवल आपदाओं के समय ही प्रकट नहीं किया अपितु आवश्यकतानुसार शिक्षा,स्वास्थ्य व स्वावलंबन समेत समाज के विविध क्षेत्रों में स्थाई सेवा के हजारों प्रकल्प भी खड़े किये हैं। संघ के स्वयंसेवक अंतरराष्टीय स्तर पर भी आपदा प्रबंधन में सक्रिय योगदान देते हैं। नेपाल,टर्की,अफगानिस्तान और श्रीलंका में आये भूकम्प के समय भी वित्तीय एवं राहत सामाग्री की सहायता भेजी गयी है। देशभर में कहीं भी भूकंप,बाढ़,अतिवृष्टि,महामारी व सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं तथा दुर्घटना,दंगे फसाद,युद्ध या आतंकवादी हमलों जैसे मानव निर्मित आपदाओं के समय स्वयंसेवक बिना देरी किए सेवा कार्य के लिए सबसे पहले पहुंचते हैं। गुजरात का मोरबी बांध टूटा उस समय स्वयंसेवकों ने योगदान दिया। आन्ध्र प्रदेश में समुद्री चक्रवात के दौरान मछुआरा परिवारों के लिए राहत एवं पुनर्वास का कार्य स्वयंसेवकों द्वारा किया गया। महाराष्ट्र के लातूर जिले मे आए भूकंप के बाद स्वयंसेवकों ने चिकित्सकीय सहायता उपलब्ध कराई। भारत विभाजन के समय हिन्दुओं की रक्षा,कश्मीर की रक्षा,गुजरात का कच्छ भुज भूकम्प,2004 की सुनामी ,2023 की सुनामी बाढ़ के समय सेवा कार्य किया।

सेवा का कीर्तिमान रचते सेवा समूह के संगठन

संघ की प्रेरणा से चलने वाले अनेक संगठन जैसे सेवा भारती,भारत विकास परिषद,सक्षम,आरोग्य भारती,एनएमओ,विश्व आयुर्वेद परिषद और भाऊराव देवरस सेवा न्यास केवल सेवा के क्षेत्र में ही कार्य करत हैं। इन संगठनों की नगर से लेकर अखिल भारतीय स्तर तक सुदृढ़ संरचना है। स्वयंसेवक राहत कार्य के साथ पुनर्वास का कार्य भी करते हैं। कई बार वह अपने जान की परवाह न करते हुए भी लोगों को बचाने का काम करते हैं। यह सब कार्य सेवा भारती के संयोजन में ही होता है। सेवा भारती सम्पूर्ण भारत में शिक्षा,स्वास्थ्य,स्वावलंबन, और सामाजिक आयामों के अन्तर्गत 44,121 सेवा कार्य संचालित कर रही है। सेवा भारती के कार्यकर्ता अपने संसाधनों का उपयोग कर पीड़ितों को भोजन,वस्त्र,दवाइयां व आश्रय प्रदान करते हैं। एकल संस्था देशभर में 85 हजार से अधिक एकल विद्यालयों का संचालन कर रही है। एकल विद्यालयों के माध्यम से दूरस्थ गांवों व वनवासी क्षेत्रों के 01 करोड़ से अधिक बच्चे साक्षर हो चुके हैं। भारत विकास परिषद डेढ़ लाख परिवारों के माध्यम से अहर्निश सेवा कर रहा है। यह संगठन विशेषरूप से दिव्यांग मुक्त भारत के लिए काम कर रही है। भारत विकास परिषद की ओर से अब तक तीन लाख से अधिक दिव्यांगों को कृत्रिम अंग प्रदान किये गये हैं। इसके अलावा नेशनल मेडिकोज आर्गनाईजेशन,आरोग्य भारती व विश्व आयुर्वेद परिषद भी सेवा के क्षेत्र में कार्यरत है।

कोरोना काल में सेवा

कोरोना काल में जब लोग घर से निकलने में डर रहे थे ऐसे समय में अपने जान की परवाह ने करते हुए साढ़े पांच लाख से अधिक संघ कार्यकर्ताओं ने एक करोड़ परिवारों तक राशन किट,मास्क और सेनेटाइजर पहुंचाने का काम किया गया। जब अस्पतालों में आक्सीजन की कमी हुई तो भाऊराव देवरस सेवा न्यास ने आक्सीजन सिलेंडर और दवाइयों की व्यवस्था की। अस्थाई वार्डों का निर्माण कर मरीजों का भर्ती कर उपचार कराया। कोरोना के मरीजों के इलाज के लिए जब रक्त की आवश्यकता पड़ी तो संघ के युवा कार्यकर्ताओं ने 60,239 यूनिट रक्तदान किया। महाकुम्भ में सिख संगत की ओर से लालो जी भाई के नाम से लंगर चलाकर लाखों श्रद्धालुओं को तृप्त कर अन्नदान का महायज्ञ सम्पन्न किया। प्रयागराज नेत्र कुम्भ में सक्षम व सेवा भारती की ओर से पांच लाख श्रद्धालुओं का नेत्र परीक्षण किया गया और तीन लाख से अधिक चश्में वितरित किये गए। अभी हाल ही में उत्तराखण्ड व हिमाचल व पंजाब की भयंकर बाढ़ के समय स्वयंसेवकों ने बचाव राहत कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। गत सौ वर्षों से सेवा सुरक्षा व राष्ट्र रक्षा का महायज्ञ अविरत रूप से चल रहा है।

(लेखक पत्रकार हैं)

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