यूपी-बिहार की राजनीति: समानताएं, असमानताएं और भाजपा का भविष्य सपना

यूपी में भाजपा ने कई मुख्यमंत्री दिए, पर बिहार में अब तक नहीं खुली किस्मत; नीतीश-तेजस्वी पर चर्चा

Naved Shikoh
Published on: 28 Aug 2025 6:22 PM IST
UP-Bihar Politics: BJP’s CM Dream in Bihar vs Success in Uttar Pradesh
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UP-Bihar Politics: BJP’s CM Dream in Bihar vs Success in Uttar Pradesh (image from Social Media))

UP Bihar Politics: यूपी-बिहार की राजनीति में समानता हैं पर कई असामनाताएं भी हैं, खासकर भाजपा के लिए यूपी की अपेक्षा बिहार की सियासी पिच ज्यादा मुश्किल है। दोनों राज्यों की सियासत लम्बे समय तक जाति की राजनीति के इर्द-गिर्द रही, लेकिन यूपी में जाति पर धर्म को हावी कर भाजपा ने यहां कई बार बहुमत की सरकारें बनाई और पार्टी ने कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह,राम प्रकाश गुप्ता व दो बार योगी आदित्यनाथ जैसे स्थापित मुख्यमंत्री दिए। जबकि इतिहास से वर्तमान तक बिहार में एक बार भी भाजपा का मुख्यमंत्री नहीं बन सका।

भाजपा के पास बिहार में भी 90 के दशक के कल्याण सिंह या मौजूदा दौर के योगी आदित्यनाथ जैसा हिन्दुत्व का चेहरा होता तो शायद यूपी की तरह बिहार को भी भाजपा पूरी तरह फतह कर लेती। जबकि एक पहलू ये भी है कि यहां की सियासी धरती पर जाति की राजनीति तो की जा सकती है लेकिन हिन्दुत्व की फसल के लिए यहां की भूमि बंजर है।

खैर जो भी हो पर अब भाजपा को आशा की किरण दिखाई देने लगी है।

जिस तरह महाराष्ट्र में शिवसेना,एनसीपी जैसे प्रभावशाली दल टूटकर, बिखरकर लड़खड़ाए और यहां भाजपा ना सिर्फ खड़ी हुई बल्कि पार्टी ने मुख्यमंत्री दिए। ऐसे ही आने वाले समय में भाजपा का ये होगा सपना, बिहार में मुख्यमंत्री हों अपना।

चर्चाएं हैं कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बढ़ती उम्र के कारण अस्वस्थ हैं। बतौर मुख्यमंत्री और एनडीए के मुख्यमंत्री चेहरे के तौर पर उनकी सक्रियता नजर नहीं आ रही। जिसके कारण विपक्षी राजद व कांग्रेस तो खुश हैं ही, सत्तारूढ़ भाजपा भी भविष्य में बिहार में अपने मुख्यमंत्री के सपने पाल रही होगी।

हालांकि भाजपा के पास यहां कोई मजबूत चेहरा नहीं है। पीएम के चेहरा ही पार्टी की ताकत है। भाजपा के लिए यूपी और बिहार में एक बुनियादी अंतर ये भी है कि यूपी में पार्टी के पास योगी आदित्यनाथ जैसा बड़ा चेहरा है।

दोनों राज्यों में समानता और असामनता की बात की जाए तो कई मामलों में उत्तर प्रदेश और बिहार एक जैसे हैं, लेकिन तमाम मामलों में इन दोनों राज्यों की सियासी गणित में अंतर है। जाति की राजनीति और क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व यूपी बिहार की समानता को दर्शाता है। दोनों राज्यों में जातिगत राजनीति के छोटे-बड़े दल बंटे हुए हैं। यूपी में सबसे बड़े विपक्षी दल सपा और बिहार में सबसे बड़े राष्ट्रीय जनता दल के साथ कांग्रेस का दोस्ताना इन दिनों कॉमन है। सी आई आर और वोट अधिकार मुद्दा हो या जाति जनगणना, दोनों राज्यों के विपक्ष ने मिलकर राष्ट्रीय स्तर पर सत्तारूढ़ भाजपा को घेरा।

कहां जाता है कि भारत के इन दो राज्यों की जनता सियासत में खूब बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती है। यहां आईआईटी क्षेत्र में जाना, डाक्टर, इंजीनियर, बिजनेस मैन इत्यादि बनने की ललक रखने वालों से ज्यादा नेता बनने की ख्वाहिश रखने वाले युवकों की बहुतायत है। खैनी,गुटखा,पान का सार्वाधिक सेवन करने और अनुशासनहीनता का आरोप भी बिहारियों और यूपी वासियों पर खूब लगाया जाता है। यूपी-बिहार के नौजवान बेरोज़गारी के कारण दूसरे राज्यों में सार्वाधिक पलायन करते हैं।

ये तो समानता की बातें हुईं, अब बात करते हैं तमाम असमानताओं की। यूपी की राजनीति में जाति की राजनीति के साथ धर्म की सियासत भी खूब परवान चढ़ी है पर बिहार में धर्म की राजनीति का कोई खास असर नहीं देखने को मिलता। हांलांकि दोनों राज्यों में मुस्लिम आबादी में कोई खास अंतर नहीं है। यूपी में तकरीबन बीस फीसद मुसलमान आबादी है तो बिहार में सत्रह प्रतिशत। किंतु यूपी की तरह बिहार में ध्रुवीकरण की कम गुंजाइश बनती है।

कांग्रेस के हाशिए पर आने के बाद करीब तीन दशक तक यूपी में क्षेत्रीय दल हावी रहे लेकिन भाजपा ने यहां हिन्दुत्व और विकास के मुद्दे पर अकेले दम पर बहुमत की सरकार बनाने में कामयाबी हासिल कर ली। पर भाजपा को यूपी जैसी सफलता बिहार में हासिल नहीं हो सकी।‌ यहां ना अपने दम पर कभी सरकार बना सकी और ना यहां कभी भाजपा का कोई मुख्यमंत्री बन सका।

पिछले विधानसभा चुनाव की सीटों के लेहाज़ से भले ही जनता दल यूनाइटेड बिहार में तीसरे नंबर की पार्टी है पर दो दशक से नीतीश कुमार पल्टियां मार-मारकर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर जमे हुए हैं। आगामी चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भले ही एनडीए का मुख्यमंत्री चेहरा हैं पर उनकी निष्क्रियता, रिटायरमेंट की उम्र और जदयू का गिरता ग्राफ संकेत दे रहा है कि बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी भाजपा के कब्जे में आ सकती है।

इधर तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री की दावेदारी के प्रबल दावेदार बने हैं और कांग्रेस नेता राहुल गांधी और तेजस्वी की सियासी केमिस्ट्री जमीन पर बेहतर नजर आ रही है। अब भविष्य में देखना होगा कि बिहार में तेजस्वी का साथ देने वाले राहुल गांधी यूपी विधानसभा चुनाव में सपा मुखिया अखिलेश का ऐसे ही साथ देते हैं कि नहीं ! हालांकि कि बिहार के चुनावी नतीजे भी ये तय करेंगे कि आगामी यूपी विधानसभा चुनाव में सपा के साथ कांग्रेस की पार्टनरशिप का कैसा स्वरूप रहेगा।

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