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Chandauli News: "विकास के कूड़े में दबा बचपन: सपनों की जगह बोरे, किताबों की जगह कबाड़"
Chandauli News: सरकारें कहती हैं कि “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ”, “सर्व शिक्षा अभियान”, “मिड डे मील” जैसी योजनाएं लागू हैं। सवाल यह है कि क्या इन योजनाओं की पहुंच इन कूड़ा बीनते बच्चों तक भी होती है?
Chandauli News
Chandauli News:उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले की गलियों में अगर आप सुबह-सुबह निकले तो एक अजीब किस्म की चहलकदमी दिखेगी। यह चहलकदमी किसी स्कूल की प्रार्थना सभा की नहीं, बल्कि कूड़े के ढेर पर बिखरे कबाड़ को बीनने वाले मासूम हाथों की होती है। उम्र होगी कोई 7-12 के बीच, लेकिन कंधों पर बोरा और नजरों में बोझ।
कूड़े से उम्मीद बटोरता बचपन
ये बच्चे उन सामानों को बीनते हैं जिन्हें हम ‘बेकार’ समझकर फेंक देते हैं। फिर वही सामान ये बच्चे कबाड़ी के पास बेचकर दो वक़्त की रोटी जुटाते हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, या बचपन की बातें इनके लिए वही हैं जो नेताओं के वादों की तरह – सुनने में अच्छे लेकिन हकीकत से दूर।
सरकारी योजनाएं: कागज़ों में आंगन, ज़मीन पर कबाड़
सरकारें कहती हैं कि “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ”, “सर्व शिक्षा अभियान”, “मिड डे मील” जैसी योजनाएं लागू हैं। सवाल यह है कि क्या इन योजनाओं की पहुंच इन कूड़ा बीनते बच्चों तक भी होती है? शायद नहीं। अफसरों की फाइलों में ये बच्चे “लाभार्थी” होते हैं, ज़मीन पर वे बस “आंकड़े” बनकर रह जाते हैं।
विकास का आईना या समाज का तमाचा?
जब देश को ‘विकासशील’ कहने पर गर्व होता है, तब इन बच्चों की हालत उस दावे पर तमाचा मारती है। क्या यही विकास है? जहां बचपन कूड़े में खो जाए, और भविष्य कबाड़ी के तराजू में तौला जाए?
कब बदलेगी तस्वीर?
यह सवाल हम सभी से है। न केवल सरकार से, बल्कि समाज से भी। जब तक हम आंखें मूंदे रहेंगे, तब तक ऐसे बच्चे सपनों के बजाय कूड़े में ही जीवन तलाशते रहेंगे।
कूड़े का नहीं,नीति का संकट
यह संकट सिर्फ गरीबी का नहीं,यह नीति और नियत दोनों का संकट है।सरकारों को चाहिए कि जमीनी सच्चाई को स्वीकारें और इन बच्चों को विकास की मुख्यधारा में लाने के लिए ठोस,न कि खोखली योजनाएं बनाएं।जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक चंदौली जैसे जिले में कूड़ा ही इन बच्चों का स्कूल और भविष्य दोनों बना रहेगा।
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