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जहां मर्दों की एंट्री बैन है, वहां औरतों ने मचाया दंगल! लखनऊ के गांव में हुआ अनोखा ‘हापा’, चित हुई एक नहीं कई पहलवाननियां
Lucknow News: नगाड़ों की थाप, ढोलक की ताल और जयकारों के बीच जब गांव की महिलाएं अखाड़े में उतरीं, तो पूरा माहौल रोमांच से भर गया। नागपंचमी के बाद बुधवार को महिलाओं ने अपनी सदियों पुरानी परंपरा ‘हापा’ को फिर से जिंदा कर दिया।
Lucknow News: नगाड़ों की थाप, ढोलक की ताल और जयकारों के बीच जब गांव की महिलाएं अखाड़े में उतरीं, तो पूरा माहौल रोमांच से भर गया। बात किसी फिल्मी सीन की नहीं, बल्कि लखनऊ के पास अहमामऊ गांव की है, जहां नागपंचमी के बाद बुधवार को महिलाओं ने अपनी सदियों पुरानी परंपरा ‘हापा’ को फिर से जिंदा कर दिया। और सबसे खास बात इस अखाड़े में मर्दों की एंट्री सख़्त मना है।
घूंघट छोड़, दंगल में उतरीं घरेलू महिलाएं
जब हम कुश्ती की बात करते हैं, तो जेहन में धोती पहने पुरुष पहलवानों की छवि उभरती है। लेकिन अहमामऊ की महिलाएं इस धारणा को तोड़ रही हैं। यहां हर साल नागपंचमी के बाद ‘हापा’ नाम से महिला कुश्ती का आयोजन होता है, जिसमें गांव की महिलाएं खुद ही देवी पूजन करती हैं, ढोलक बजाती हैं और फिर मैदान में एक-दूसरे को चुनौती देती हैं।
गीता ने शिखा को दी पटकनी
पहली बार दंगल देखने पहुंची शिखा सिंह चौहान को जब इस अनोखी परंपरा के बारे में पता चला तो वो ख़ुद भी टाल ठोकने मैदान में उतर गई। हालाकि गीता कुमारी ने शिखा को पटकनी दे दी लेकिन उन्होंने कहा कि जीतना और हारना इस कुश्ती का उद्देश्य नहीं है। ये कुश्ती सिर्फ मनोरंजन का तरीका और देवी माँ के आशीर्वाद के लिए है।
100 साल पुरानी बेगमों की परंपरा से निकला ‘हापा’
इस अनोखी परंपरा की जड़ें नवाबी दौर से जुड़ी हैं। गांव की बुजुर्ग महिला रामकली देवी ने बताया कि करीब 100 साल पहले बेगमें यहां आकर आराम करती थीं, नाच-गाना होता था, लेकिन तब कुश्ती नहीं होती थी। वक्त के साथ यह परंपरा बदली, और पिछले 8-9 साल से इसमें महिलाओं की कुश्ती भी शामिल कर दी गई है, जिसे अब 'हापा' कहा जाता है।
सिर्फ महिलाएं ही संभालती हैं पूरा आयोजन
इस आयोजन की सबसे खास बात यह है कि इसमें पुरुषों का कोई दखल नहीं होता। विनय कुमारी बताती हैं कि पूजा की तैयारी से लेकर दंगल के आयोजन तक, सब कुछ महिलाएं खुद करती हैं। एक टोकरी में फल, बताशे, श्रृंगार का सामान, खिलौने रखे जाते हैं और फिर रीछ देवी, गूंगे देवी, दुर्गा और भुईया देवी की पूजा के साथ शुरुआत होती है। पूजा के बाद होती है ढोलक की थाप पर चुटीले गीतों की महफिल, जो पूरे माहौल को उत्सव में बदल देती है।
पुरुषों पर पूरी तरह से रोक! छत पर भी दिखे तो मना है
इस दंगल की एक और खास बात है यह पूरी तरह महिलाओं के लिए होता है। यहां तक कि अगर कोई पुरुष अपनी छत पर खड़ा दिख जाए, तो उसे भी अंदर जाने को कह दिया जाता है। पुरुषों की मौजूदगी पूरी तरह प्रतिबंधित है। यहां सिर्फ महिलाएं और छोटे बच्चे ही शामिल हो सकते हैं।
एक परंपरा, जो बना रही है पहचान
जहां आज भी महिलाओं को समाज के कई हिस्सों में पीछे समझा जाता है, वहीं अहमामऊ जैसे गांव इस सोच को चुनौती दे रहे हैं। ‘हापा’ सिर्फ एक कुश्ती नहीं, बल्कि महिला सशक्तिकरण की मिसाल है। यह आयोजन दिखाता है कि महिलाएं न सिर्फ घर चला सकती हैं, बल्कि अखाड़ा भी जीत सकती हैं।
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