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मायावती की मजबूती से अखिलेश होंगे चित? UP में बसपा का बढ़ता कद सपा के लिए बनेगा मुसीबत
यूपी की राजनीति में मायावती ने फूंका 'मिशन 2027' का बिगुल। बसपा की बढ़ती ताकत से अखिलेश यादव की सपा पर बढ़ेगा दबाव। जानिए कैसे बदलेगा यूपी का सियासी गणित।
Akhilesh Yadav vs Mayawati: उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर भूचाल आने की आहट सुनाई दे रही है। लंबे समय से सियासी तौर पर शांत दिख रहीं बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की सुप्रीमो मायावती ने अब अपने 'मिशन 2027' का बिगुल फूंक दिया है। 9 अक्टूबर को बसपा के संस्थापक कांशीराम की पुण्यतिथि पर लखनऊ में एक बड़ी रैली का आयोजन कर मायावती अपनी सियासी ताकत का एहसास कराने जा रही हैं। यह सिर्फ एक रैली नहीं, बल्कि बसपा के 'घर वापसी' और 'आधार' वोटबैंक को दोबारा एकजुट करने की एक बड़ी कवायद है। अगर बसपा इस मिशन में सफल होती है, तो इसका सबसे बड़ा असर समाजवादी पार्टी पर होगा और यूपी का पूरा सियासी गणित बिगड़ सकता है।
बसपा का 'अंधकार युग' और वापसी की चुनौती
यूपी की राजनीति में चार बार सत्ता पर काबिज रही बसपा आज अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। 2012 के बाद से पार्टी का ग्राफ लगातार नीचे गिरा है। 2022 विधानसभा चुनाव में बसपा सिर्फ एक सीट पर सिमट गई थी, तो वहीं 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी का खाता भी नहीं खुल सका। वोट शेयर 9.39 फीसदी तक गिर गया है। मायावती की जाटव समुदाय पर पकड़ ढीली हुई है और गैर-जाटव दलित पूरी तरह से छिटक चुका है। 2024 के चुनाव में संविधान और आरक्षण के मुद्दे पर बसपा का कैडर भी 'इंडिया' ब्लॉक के साथ चला गया था। ऐसे में, मायावती के लिए अपने सियासी वजूद को बचाए रखना एक बड़ी चुनौती है।
मायावती की नई रणनीति: बूथ स्तर पर 'माया' का जाल
करीब दो दशक बाद मायावती ने अपनी रणनीति बदली है। अब वे दिल्ली से लखनऊ शिफ्ट होकर बूथ स्तर पर पार्टी को मजबूत करने में लगी हैं। उन्होंने कई कमेटियां बनाई हैं जिन्हें समाज के विभिन्न वर्गों, खासकर अतिपिछड़ा, दलित और मुस्लिम वोटों को एक पाले में लाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल से लेकर अन्य बड़े नेता गांव-गांव जाकर बैठकें कर रहे हैं। हाल ही में, उन्होंने अपने भतीजे आकाश आनंद का सियासी प्रमोशन कर और उनके ससुर अशोक सिद्धार्थ की घर वापसी कराकर साफ संकेत दिया है कि पार्टी अब अंदरूनी तौर पर भी खुद को मजबूत कर रही है।
सपा के 'पीडीए' को चुनौती देगा बसपा का 'डीएम-ओबीसी-मुस्लिम' फॉर्मूला?
2024 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव का पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) फॉर्मूला हिट रहा था। अब मायावती भी इसी तरह के समीकरण पर काम कर रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार सैयद कासिम का कहना है कि मायावती की पूरी कोशिश उन दलित और गैर-यादव ओबीसी वोटों को वापस लाने की है, जो सियासी परिस्थितियों के कारण सपा के साथ चले गए थे। अगर बसपा मजबूत होती है, तो यह वोटबैंक वापस उसके पास लौट सकता है, जिससे सबसे ज्यादा नुकसान अखिलेश यादव को होगा।
दूसरी तरफ, सपा के प्रवक्ता मोहम्मद आजम का कहना है कि मायावती यूपी की सियासत में अपनी प्रासंगिकता खो चुकी हैं। वे कहते हैं कि मुस्लिम और ओबीसी ही नहीं, बल्कि दलित समुदाय भी मायावती से निराश है, क्योंकि वे भाजपा से लड़ने के बजाय सपा और कांग्रेस से लड़ रही हैं। आजम का आरोप है कि मायावती भाजपा की 'बी-टीम' के तौर पर काम कर रही हैं। यह सियासी जंग अब सिर्फ पार्टियों के बीच नहीं, बल्कि रणनीतियों और समीकरणों के बीच भी है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या मायावती अपने पुराने गढ़ को फिर से हासिल कर पाती हैं और क्या यह चुनावी त्रिकोण भाजपा और सपा, दोनों के लिए नई चुनौतियां खड़ी करेगा।
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