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लखनऊ SGPGI की बड़ी खोज: मधुमेह रोगियों में किडनी फेलियर से पहले पहचान संभव, नई तकनीक के लिए पेटेंट आवेदन
Lucknow News: SGPGI लखनऊ ने ICMR की CARE परियोजना के तहत एक बड़ी मेडिकल खोज की है। डायबिटीज़ मरीजों में किडनी फेलियर से पहले पहचान संभव बनाने वाले बायोमार्कर की खोज हुई है। यह तकनीक मूत्र में मौजूद नैनो एक्सोसोम से non-invasive निदान में मदद करेगी। पेटेंट के लिए आवेदन भी किया गया है।
SGPGI identifies early biomarkers for CKD in diabetes patients applies for Indian patent
डायबिटीज़ और CKD: एक गंभीर कनेक्शन, SGPGI की बड़ी उपलब्धि
भारत में मधुमेह (डायबिटीज़) तेजी से बढ़ता जा रहा है और इसके कारण क्रोनिक किडनी डिजीज (CKD) एक प्रमुख समस्या बन गई है। शोध के अनुसार, हर तीन में से एक डायबिटिक व्यक्ति को CKD हो सकता है, जो अंततः गुर्दा फेलियर या दिल की बीमारी तक ले जा सकता है। लखनऊ स्थित संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (SGPGI) के मौलिक्यूलर मेडिसिन एंड बायोटेक्नोलॉजी विभाग में एक ऐसा बायोमार्कर खोजा गया है जो CKD की शुरुआत से पहले ही बीमारी का पता लगा सकता है। यह शोध ICMR के CARE प्रोजेक्ट के अंतर्गत किया गया।
प्रो. स्वस्ति तिवारी, जो इस प्रोजेक्ट की प्रमुख हैं, ने बताया कि ये बायोमार्कर मूत्र में पाए जाने वाले एक्सोसोम (nano-vesicles) के भीतर मौजूद होते हैं, जिससे परीक्षण बिना किसी सर्जरी या खून लिए किया जा सकता है।
शोध प्रक्रिया और प्रतिभागी
इस शोध की शुरुआत 2019 में हुई, जिसमें लखनऊ और पुड्डुचेरी के करीब 1000 डायबिटिक मरीजों को शामिल किया गया। इन मरीजों का लगभग पांच वर्षों तक फॉलो-अप किया गया। इस टीम में SGPGI के डॉक्टर धर्मेंद्र चौधरी, डॉ. सुखान्शी कांडपाल, डॉ. दीनदयाल मिश्रा, डॉ. बिश्वजीत साहू और पुड्डुचेरी के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के सदस्य शामिल थे।
तकनीक की विशिष्टता और पेटेंट
यह बायोमार्कर तकनीक इसलिए विशेष है क्योंकि यह CKD की बहुत प्रारंभिक अवस्था में ही उसका संकेत देती है। मार्च 2024 में इस तकनीक के लिए भारतीय पेटेंट कार्यालय में आवेदन किया गया है। इससे पहले भारत में मूत्र एक्सोसोम आधारित किडनी परीक्षण की दिशा में यह पहली कोशिश है, जिसे SGPGI की लैब ने लीड किया।
राष्ट्रीय पहचान और प्रशिक्षण
ICMR की 2023–24 की वार्षिक रिपोर्ट में इस इनोवेशन को शामिल किया गया है। SGPGI विभाग ने देश में इस तकनीक को फैलाने के लिए दो राष्ट्रीय कार्यशालाएं भी आयोजित की हैं, जिसमें अन्य संस्थानों को इस उन्नत निदान प्रणाली की ट्रेनिंग दी गई।
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