यूपी में बिजली निजीकरण पर विवाद: संघर्ष समिति बोली—“दिल्ली और उड़ीसा जैसी गलती दोहराई जा रही है”

यूपी में बिजली निजीकरण पर विवाद गहराया। संघर्ष समिति ने चेताया—“दिल्ली-उड़ीसा जैसी गलती दोहराई जा रही है”, कर्मचारियों का आंदोलन 288वें दिन भी जारी।

Newstrack          -         Network
Published on: 11 Sept 2025 6:31 PM IST (Updated on: 11 Sept 2025 6:33 PM IST)
UP Power Privatization Controversy
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UP Power Privatization Controversy (Image Credit-Social Media)

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में बिजली वितरण कंपनियों के निजीकरण के खिलाफ आंदोलन और तेज हो गया है। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दावा किया कि विशेषज्ञों की राय में पावर सेक्टर में निजी घरानों की मोनोपॉली उपभोक्ताओं के लिए घातक है और इसे हर हाल में रोका जाना चाहिए। समिति ने मांग की है कि सरकार तुरंत निजीकरण का फैसला वापस ले।

“सीएजी ऑडिट से बाहर निजी कंपनियां”

समिति ने आरोप लगाया कि निजी क्षेत्र की बिजली कंपनियों को सीएजी ऑडिट से मुक्त रखा गया है। इससे उनके वास्तविक लाभ-हानि का आकलन संभव नहीं होता और मुनाफा उपभोक्ताओं या कर्मचारियों तक नहीं पहुँच पाता।



दिल्ली-उड़ीसा का उदाहरण

संघर्ष समिति ने चेताया कि यूपी में भी वही गलतियां दोहराई जा रही हैं जो पहले दिल्ली और उड़ीसा में हुई थीं। अरबों-खरबों की परिसंपत्तियां कौड़ियों के दाम निजी कंपनियों को सौंप दी गईं और उपभोक्ताओं को कोई राहत नहीं मिली। दिल्ली व उड़ीसा में निजी कंपनियों ने सुधार के दावे तो किए, लेकिन न बिजली दरें कम हुईं और न ही उपभोक्ताओं को फायदा मिला।

चंडीगढ़ का ताजा मामला

चंडीगढ़ के हालिया निजीकरण का उदाहरण देते हुए समिति ने कहा कि सरकारी प्रबंधन में छह साल तक बिजली दरें नहीं बढ़ीं और विभाग मुनाफे में रहा, लेकिन निजी कंपनी को जिम्मेदारी सौंपे जाने के छह महीने के भीतर ही दरें बढ़ाने का प्रस्ताव नियामक आयोग को भेज दिया गया।

“परिसंपत्तियों और ड्यूज का गलत मूल्यांकन”

संघर्ष समिति ने आरोप लगाया कि निजीकरण से पहले परिसंपत्तियों और उपभोक्ताओं के बकाए का मूल्यांकन जानबूझकर कम करके दिखाया गया। आगरा का मामला सामने रखा गया, जहां टोरेंट पावर ने 2200 करोड़ रुपये से अधिक के उपभोक्ता बकाए अब तक निगम को नहीं दिए।

विशेषज्ञों की रिपोर्ट का इंतजार


ऑल इंडिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन द्वारा गठित विशेषज्ञों की टीम निजीकरण की प्रक्रिया की समीक्षा कर रही है। समिति का कहना है कि पूरी रिपोर्ट सार्वजनिक होने पर यह साफ हो जाएगा कि किस तरह पारदर्शिता की अनदेखी कर कुछ चुनिंदा कंपनियों को लाभ पहुँचाया गया।

288वें दिन भी जारी विरोध

पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण के विरोध में कर्मचारियों का आंदोलन बुधवार को 288वें दिन भी जारी रहा। वाराणसी, आगरा, मेरठ, कानपुर, गोरखपुर, अलीगढ़, झांसी, नोएडा, गाजियाबाद सहित कई शहरों में बिजली कर्मियों ने प्रदर्शन कर निजीकरण वापस लेने की मांग दोहराई।

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Shweta Srivastava

Shweta Srivastava

Content Writer

मैं श्वेता श्रीवास्तव 15 साल का मीडिया इंडस्ट्री में अनुभव रखतीं हूँ। मैंने अपने करियर की शुरुआत एक रिपोर्टर के तौर पर की थी। पिछले 9 सालों से डिजिटल कंटेंट इंडस्ट्री में कार्यरत हूँ। इस दौरान मैंने मनोरंजन, टूरिज्म और लाइफस्टाइल डेस्क के लिए काम किया है। इसके पहले मैंने aajkikhabar.com और thenewbond.com के लिए भी काम किया है। साथ ही दूरदर्शन लखनऊ में बतौर एंकर भी काम किया है। मैंने लखनऊ यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एंड फिल्म प्रोडक्शन में मास्टर्स की डिग्री हासिल की है। न्यूज़ट्रैक में मैं लाइफस्टाइल और टूरिज्म सेक्शेन देख रहीं हूँ।

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