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Sonbhadra News: छाई की आड़ में प्रतिदिन सैकडों टन कोयले की तस्करी, हुई गहन जांच तो सामने आएंगे चौंकाने वाले खुलासे
Sonbhadra News: पिपरी थाना क्षेत्र में चार ट्रकों के पकड़े जाने के मामले के साथ ही, कोयला तस्करी को लेकर एक बड़ा रैकेट संचालित होने की चर्चाएं सामने आने लगी हैं। कहा जा रहा है कि कोयले में मिलावट के लिए छाई (कोयले से मिलता-जुलता ठोस पदार्थ) की आड़ में, जहां प्रतिदिन सरकारी अर्थव्यवस्था को अच्छी-खासी चपत लगाई जा रही है।
Sonbhadra News: पिपरी थाना क्षेत्र में चार ट्रकों के पकड़े जाने के मामले के साथ ही, कोयला तस्करी को लेकर एक बड़ा रैकेट संचालित होने की चर्चाएं सामने आने लगी हैं। कहा जा रहा है कि कोयले में मिलावट के लिए छाई (कोयले से मिलता-जुलता ठोस पदार्थ) की आड़ में, जहां प्रतिदिन सरकारी अर्थव्यवस्था को अच्छी-खासी चपत लगाई जा रही है। वहीं, इसकी आड़ में हर दिन सैकड़ों टन कोयले की तस्करी की जा रही है। दावा किया जा रहा है कि पकड़े गए ट्रकों को लेकर अगर गहराई से छानबीन की गई तो, एक बड़ा अंतर्राज्यीय तस्करी रैकेट तो सामने आएगा ही, कई चौंकाने वाले खुलासे भी सामने आते नजर आएंगे। पकड़े गए ट्रकों के साथ एक के चालक की गिरफ्तारी भी सामने आई है। ऐसे में यह कार्रवाई तस्करी के रैकेट को कितना प्रभावित कर पाती है, इसको लेकर चर्चाएं बनी हुई हैं।
बताया जा रहा है कि पकड़े गए ट्रकों पर बीना कोयला परियोजना से कोयले की लोडिंग की गई थी। इस कोयले को अनपरा थाना क्षेत्र से सटे सिंगरौली, एमपी के मोरवा कोल साइडिंग पर पहुंचना था। वहां से कोयले की आपूर्ति भोपाल स्थित एक बड़ी इंडस्ट्रीज को की जानी थी। चर्चा है कि बीना परियोजना से कोयला लेकर निकले वाहन, देर तक औड़ी मोड़ के पास लोकेशन के इंतजार में खड़े रहे। जब, कथित ब्लैक कलर के स्कार्पियो सवारों ने, आगे सब कुछ ओके होने की झंडी दी, तब देर रात ट्रकें आगे के लिए रवाना हुईं लेकिन पिपरी पहुंचते-पहुंचते किसी ने इसकी खबर डीएफओ और एसपी के यहां पहुंचा दी और रास्ते में चारों ट्रकें पकड़ ली गईं। हालांकि रात का फायदा उठाकर तीन वाहनों को चालक भाग निकले। चौथा भी फरार हो गया था लेकिन वन विभाग की टीम ने घेरेबंदी कर उसे दबोच लिया। वन विभाग की ओर से पकड़े गए ट्रकों के खिलाफ भारतीय वन अधिनियिम की धारा 5/26 और 41/42 के तहत कार्रवाई की गई थी। हत्थे चढ़े चालक का नाम रामफल और उससे जुड़े ट्रक का संचालक सर्वेश सिंह निवासी सिंगरौली को बताया जा रहा है।
जानिए, किस तरह से संचालित किया जा रहा तस्करी का रैकेट:
चर्चाओं और सूत्रों के जरिए मिलती जानकारी पर भरोसा करें, तो ओबरा की तरह, अनपरा क्षेत्र से सटे सिंगरौली के मोरवा में भी कोयले से मिलते-जुलते ठोस पदार्थ, जिसे आम बोलचाल में रिजेक्टेड कोयला और रिकर्ड में छाई कहा जाता है, की ट्रक के जरिए झारखंड से आपूर्ति हो रही है। यहां से बड़ी-बड़ी पावर-अल्युमिनियम कंपनी को भेजी जाने वाली कोयले की खेप में, एक बड़ा हिस्सा छाई का भी मिला दिया जाता है। इस मिलावट के बाद जो कोयला बचता है, उसे औड़ी में लोकेशन के इंतजार में खड़ा कर दिया जाता है। यहां से ट्रक किसी तरह पिपरी के मुर्धवा मोड़ पहुंचाई जाती है। वहां, कथित सिंडीकेट से जुड़ा व्यक्ति, छत्तीसगढ़ से चंधासी के लिए, कोयला परिवहन का जुगाड़ू कागजात लेकर मौजूद मिलता है और इसके आधार पर आगे आसानी से कोयला चंदौली जिले के चंधासी मंडी पहुंच जाता है।
लोकेशन रैकेट के जरिए अनपरा से मुर्धवा पहुंचता है कोयला:
आम बातचीत में लोगों की तरफ से किए जा रहे दावे पर यकीन करें तो रोजाना 60 से 100 ट्रकें, दूसरे राज्यों और रेलवे साइडिंग के नाम पर निकाल ली जाती है। रेलवे साइडिंग में किसी वाहन को मोरवा तो किसी को बरगवां पहुंचना होता है। मध्यप्रदेश के सिंगरौली स्थित दोनों रेल साइडिंग के लिए या तो ट्रक को शक्तिगर के दुधीचुआ और अनपरा क्षेत्र के दुल्लापाथर बार्डर को क्रास करना पड़ता है लेकिन जुगाड़ू सिस्टम से जुड़ी ट्रकों को मध्यप्रदेश की तरफ न भेजकर, उन्हें चंधासी के लिए भेजा जाता है। जब तक मुर्धवा मोड़ पर मिलने वाले कागजात की व्यवस्था नहीं हो जाती, तब तक ट्रकें अनपरा से बीना के बीच साइड में खड़ी रहती हैं। कागजात की व्यवस्था के बाद, लोकेशन सिंडीकेट के जरिए ट्रकों को पिपरी थाना क्षेत्र के मुर्धवा ले जाया जाता है।
इसके जरिए सिंडीकेट हर माह कमाता है करोड़ों का मुनाफा:
एनसीएल से पावर प्रोजेक्टों के लिए जो लिंकेज का कोयला होता है, वह काफी रियायती दर पर यानी महज 1800 से दो हजार टन पर उपलब्ध होता है। वहीं, खुले मार्केट में इसकी कीमत कम से कम छह हजार प्रति टन मिलती है। अगर 50 ट्रकें भी तस्करी रैकेट के जरिए पार कर ली गईं, तो मुनाफे की रकम करोड़ों में हो जाती है। वहीं, दूसरी तरफ सरकारी अर्थव्यवस्था को, अच्छा-खासा चूना भी लगता है।
प्रशासन, पुलिस वन महकमे ले संयुक्त एक्शन, तभी टूट पाएगा रैकेट!
वर्ष 2009 में सीबीआई छापेमारी ने कोयला तस्करी का रैकेट तोड़ दिया था लेकिन अब छाईं की आड़ में नए तरीके से तस्करी का हाईटेक तरीका अपना लिया गया है। जिस तरह से इस तस्करी के खेल को, एक बड़ी कंपनी के साथ ही कई बड़े सफेदेपोशों को संरक्षण मिले होने की बात कही जाती है। उसको देखते हुए कहा जा रहा है कि तस्करी के इस खेल पर नियंत्रण के लिए जिला प्रशासन, पुलिस महकमा और वन विभाग को संयुक्त रूप से कार्रवाई अमल मे लानी होगी। तभी सरकार की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने वाले तस्करी के इस खेल पर प्रभावी अंकुश लग पाएगा।
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