'8.8 तीव्रता का भूकंप...', हिरोशिमा जैसे 14,300 परमाणु बमों का एक साथ फटना! खौफ में रूस-जापान-US, भारत भी डरा!

8.8 Magnitude Earthquake: कहा जा रहा है कि इस भूकंप से उतनी ऊर्जा निकली जितनी कि 14,300 हिरोशिमा बमों के एक साथ फटने से निकलती। यह सुनकर हर किसी के रोंगटे खड़े हो गए हैं। जापान, रूस और अमेरिका में इसके बाद से ही हाई अलर्ट जारी कर दिया गया है।

Priya Singh Bisen
Published on: 30 July 2025 12:59 PM IST
8.8 Magnitude Earthquake
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8.8 Magnitude Earthquake

8.8 Magnitude Earthquake: रूस में आए 8.8 तीव्रता के शक्तिशाली भूकंप ने पूरे विश्व में हड़कंप मचा दिया है। रूस के कामचटका प्रायद्वीप में आए इस भूकंप की तीव्रता इतनी ज्यादा थी कि वैज्ञानिकों ने इसकी तुलना हिरोशिमा पर 6 अगस्त, 1945 में गिरे परमाणु बम से कर दी। कहा जा रहा है कि इस भूकंप से उतनी ऊर्जा निकली जितनी कि 14,300 हिरोशिमा बमों के एक साथ फटने से निकलती। यह सुनकर हर किसी के रोंगटे खड़े हो गए हैं। जापान, रूस और अमेरिका में इसके बाद से ही हाई अलर्ट जारी कर दिया गया है। आइए, आपको इस लेख में बताते हैं कि आखिर 8.8 तीव्रता का भूकंप कितना खतरनाक होता है और इसका भारत जैसे देशों पर क्या प्रभाव पड़ सकता है।

कितना खतरनाक होता है 8.8 तीव्रता का भूकंप ?


8.8 तीव्रता का भूकंप हिरोशिमा जैसे 14300 परमाणु बमों के एक साथ फटने की ऊर्जा के बराबर है। सवाल ये है कि क्या ये वाकई तुलना सही है? और यह भूकंप इतना शक्तिशाली क्यों माना जा रहा है?

सबसे पहली बात ये समझने वाली है कि भूकंप की तीव्रता मापने के लिए मोमेंट मैग्नीट्यूड स्केल (Moment Magnitude Scale - Mw) का प्रयोग किया जाता है, जो एक लॉगरिदमिक स्केल है। इसका अर्थ है कि हर एक अंक की बढ़ोतरी के साथ भूकंप की ऊर्जा करीब 31.6 गुना बढ़ जाती है।

उदाहरण के तौर पर:

- 7.8 तीव्रता की तुलना में 8.8 तीव्रता का भूकंप 31.6 गुना अधिक शक्तिशाली होता है।

- वहीं 6.8 तीव्रता के की तुलना में इसकी शक्ति तकरीबन 1000 गुना ज्यादा होती है।

ध्यान देने योग्य: इस तीव्रता का भूकंप 'Great Earthquake' की श्रेणी में आता है, जो शहरों, पुलों, बड़ी-बड़ी बिल्डिंग्स, यहां तक कि तटीय इलाकों को पूरी तरह तबाह करने की क्षमता रखता है।

भूकंप बनाम परमाणु बम (ऊर्जा की तुलना) -


आप सोच रहे होंगे कि आखिर वैज्ञानिक भूकंप की ऊर्जा की तुलना परमाणु बम से क्यों करते हैं? दरअसल, यह एक सरल और प्रभावशाली तरीका होता है आम लोगों को भूकंप की गंभीरता समझाने का। आपको बता दे -

- हिरोशिमा बम (लिटिल बॉय) की ऊर्जा: लगभग 6.3 x 10^13 जूल्स

- 8.8 तीव्रता के भूकंप की ऊर्जा: लगभग 9 x 10^17 जूल्स

यदि इन दोनों को विभाजित किया जाए:

(9 x 10^17) ÷ (6.3 x 10^13) = लगभग 14,300

यानि, 8.8 तीव्रता का भूकंप 14,300 हिरोशिमा बमों के बराबर ऊर्जा छोड़ता है।

कुछ रिपोर्ट्स में यह संख्या 9000 हिरोशिमा बमों के बराबर बताई जा रही है। यह अंतर अनुमान की गणना में मामूली परिवर्तन या अलग-अलग मान्यताओं (जैसे भूकंप की गहराई या फॉल्ट की प्रकृति) के कारण से हो सकता है।

ध्यान देने योग्य: रिसर्चगेट की स्टडी Comparison Between the Seismic Energies Released During Earthquakes With Tons of TNT के मुताबिक, 8.8 तीव्रता का भूकंप 6.27 मिलियन टन TNT के बराबर होता है, जो तकरीबन 10000-14000 हिरोशिमा बमों की रेंज में आता है। इसीलिए 9000 बमों की बात एक संभावित के तौर पर सही माना जा सकता है।

क्यों बना रूस और जापान में डर का माहौल?

1. कामचटका क्षेत्र (रूस)

यह इलाका Pacific Ring of Fire में आता है, जो भूकंप और ज्वालामुखीय गतिविधियों के लिए सबसे संवेदनशील माना जाता है। हाल ही में आए इस शक्तिशाली भूकंप से सुनामी का महा अलर्ट जारी कर दिया गया है, जिससे पूरे रूस और जापान में दहशत का माहौल बन गया।

2. जापान का भूकंपीय इतिहास


साल 2011 में आया तोहोकु भूकंप (9.0 तीव्रता) जापान के लिए अब तक का महा विनाशकारी भूकंप रह चुका है। इससे फुकुशिमा परमाणु संयंत्र में रिसाव हुआ, और तकरीबन 28,000 लोगों की मौत हुई थी। इस विनाशकारी भूकंप के कारण आर्थिक रूप से 360 बिलियन का भारी नुकसान हुआ था। इसीलिए जापान में जब भी कोई उच्च तीव्रता का भूकंप आता है, वह सीधे उस त्रासदी की याद दिलाता है।

क्या 8.8 तीव्रता का भूकंप भारत के लिए भी खतरा है?


भारत के उत्तर भारत में बसे गंगा के मैदानी इलाके जैसे की लखनऊ, पटना, बनारस, गोरखपुर, दिल्ली भूकंप की दृष्टि से बेहद संवेदनशील माने जाते हैं। इन इलाकों की मिट्टी नरम और जलोढ़ (Alluvial) है, जो भूकंपीय तरंगों को कई गुना तक amplify कर देती है।

घनी आबादी के कारण हताहतों की संख्या लाखों में हो सकती है। उदाहरण के लिए, साल 2001 का भुज भूकंप (7.7 तीव्रता) भारत में आया था, जिसमें तकरीबन 20,000 लोगों की मौत हो गयी थी। 8.8 तीव्रता का भूकंप इससे कहीं अधिक विनाशकारी होगा।

प्रभाव के बिंदु:

लिक्विफेक्शन का खतरा: यानी ज़मीन तरल की तरह बहने लगती है, जिससे इमारतें अपनी नींव समेत धंस सकती हैं।

भारी जनसंख्या घनत्व: इन शहरों की घनी आबादी किसी भी भूकंप में जान-माल का बहुत बड़ा नुकसान कर सकती है।

पुरानी और असुरक्षित इमारतें: ज्यादातर घर और इमारतें भूकंप-रोधी तकनीकों से नहीं बनी हैं।

भूकंप और परमाणु बम: प्रभाव में बड़ा फर्क

हालांकि 8.8 तीव्रता का भूकंप 9000-14,300 हिरोशिमा बमों की ऊर्जा के बराबर है, लेकिन इनके प्रभाव अलग-अलग हो सकता है, जैसे कि ...

ऊर्जा का फैलाव

भूकंप: इसकी ऊर्जा सिस्मिक तरंगों (P और S तरंगें) के रूप में जमीन और पानी में फैलती है। यह सैकड़ों किलोमीटर तक भारो क्षति पहुंचा सकती है लेकिन अधिकतर ऊर्जा जमीन के भीतर बिखर जाती है।

परमाणु बम: इसकी ऊर्जा हवा, गर्मी और रेडिएशन के रूप में काफी तेज़ी से फैलती है। यह सीमित दायरे (1-2 किमी) में बहुत तीव्र क्षति पहुंचाती है।

प्रभाव का वक़्त

भूकंप का प्रभाव सेकंड से मिनट तक जारी रहता है, लेकिन इसके बाद भूस्खलन, लिक्विफेक्शन (जमीन का तरल की तरह बहना) और सुनामी जैसे खतरे बढ़ाते हैं। परमाणु बम का विस्फोट पल भर में हो जाता है, लेकिन रेडिएशन का प्रभाव कई सालों तक रहता है।

कहां -कहां नुकसान होता है ?

भूकंप कई बड़ी-छोटी इमारतों, सड़कों और पुलों को ढहा देता है।

परमाणु बम आग, रेडिएशन और विस्फोट से तत्काल भयंकर तबाही रूप ले लेता है।

8.8 तीव्रता के भूकंप का प्रभाव

साल 2010 में चिली में 8.8 तीव्रता का भूकंप आया था। इसने सैकड़ों इमारतों को तबाह कर दिया था। इसमें तकरीबन 525 लोगों की जान चली गयी थी और भयंकर सुनामी पैदा कर दी थी। इसकी ऊर्जा लगभग 10,000 हिरोशिमा बमों के बराबर थी। चिली में भूकंप-रोधी इमारतों के कारण नुकसान कुछ कम हुआ, लेकिन अदि ऐसा भूकंप भारत के किसी मैदानी शहर (जैसे दिल्ली, पटना या लखनऊ) में आता, तो तबाही कई गुना अधिक होने की पूरी संभावना है।

क्या भारत तैयार है?

सरकारी स्तर पर भारत में कुछ ज़ोन को उच्च भूकंपीय खतरे वाला घोषित किया गया है।

जैसे:

जोन 5: बहुत उच्च खतरे वाला (उत्तर-पूर्व, कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल)

जोन 4: उच्च खतरे वाला (दिल्ली, बिहार का हिस्सा, महाराष्ट्र का उत्तरी भाग)

चुनौतियां:

- अधिकतर शहरों में भूकंप-रोधी निर्माण नियमों का पालन नहीं होता।

- आपदा प्रबंधन की तैयारी और रेस्क्यू सिस्टम धीमा और अपर्याप्त है।

- जन जागरूकता की कमी से लोग समय पर प्रतिक्रिया नहीं कर पाते।

आपको बता दे, 8.8 तीव्रता का भूकंप मात्र एक आंकड़ा नहीं है... यह एक 'महा विनाश' का पैमाना है, जिसकी ऊर्जा 14,000 हिरोशिमा बमों के बराबर है। रूस, जापान और अमेरिका जैसे देशों में इसका डर इसलिए ज्यादा है क्योंकि ये देश पहले भी बड़े भूकंप झेल चुके हैं और वहां जनसंख्या और तकनीक दोनों को नुकसान पहुंच सकता है।

भारत को इस आपदा से सबक लेना चाहिए और भूकंप-रोधी निर्माण, आपदा प्रबंधन, और जन जागरूकता जैसे कदमों को तेजी से अपनाना चाहिए, नहीं तो भविष्य में इसका खामियाजा बहुत भयावह हो सकता है।

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Content Writer

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