“ओह बॉय, बहुत बर्बादी हुई!” ईरान-इज़राइल युद्ध में हार किसकी? ट्रंप ने तोड़ी चुप्पी और खोल दी युद्ध की असली किताब

Trump Iran Israel statement: दुनिया भर की मीडिया, सामरिक विश्लेषकों और खुफिया एजेंसियों का जो महीनों तक विश्लेषण होता, उसका जवाब ट्रंप ने सिर्फ 28 शब्दों में दे दिया। और सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि ट्रंप का झुकाव इस बार उस ओर था, जिसे अमेरिका अब तक “शैतान” कहता आया है—ईरान।

Harsh Srivastava
Published on: 25 Jun 2025 8:05 PM IST
“ओह बॉय, बहुत बर्बादी हुई!” ईरान-इज़राइल युद्ध में हार किसकी? ट्रंप ने तोड़ी चुप्पी और खोल दी युद्ध की असली किताब
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Trump Iran Israel statement: ईरान-इज़राइल युद्ध का सीज़फायर भले ही हो चुका हो, लेकिन अब असली जंग शुरू हुई है—जंग सच्चाई की, जंग आंकड़ों की, और जंग यह तय करने की कि इस महाविनाश में आखिर जीता कौन और झुका कौन। और इस जंग का सबसे बड़ा धमाका तब हुआ, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नाटो की बैठक के बाद माइक संभालते ही ऐसा बयान दे डाला जिसने वैश्विक राजनीति के गलियारों में हड़कंप मचा दिया। “ईरान के पास ऑयल है, वे समझदार लोग हैं। लेकिन इज़राइल को बहुत नुकसान हुआ है... ओह बॉय, उन बैलिस्टिक मिसाइलों ने बहुत कुछ नष्ट कर दिया।” —ट्रंप के इस बयान ने न सिर्फ ईरानी दावों को बल दिया, बल्कि यह भी इशारा किया कि शांति की भीख इज़राइल ने मांगी थी, न कि ईरान ने!

किसने जीता ये युद्ध? ट्रंप की जुबान ने खोला पिटारा

दुनिया भर की मीडिया, सामरिक विश्लेषकों और खुफिया एजेंसियों का जो महीनों तक विश्लेषण होता, उसका जवाब ट्रंप ने सिर्फ 28 शब्दों में दे दिया। और सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि ट्रंप का झुकाव इस बार उस ओर था, जिसे अमेरिका अब तक “शैतान” कहता आया है—ईरान। ट्रंप के शब्दों में छिपा था वो इशारा, जिसे अब इज़राइली भी नकार नहीं पा रहे। इज़राइल की जमीनी सच्चाई अब खुद उसके आंकड़े बयां कर रहे हैं—देश की टैक्स अथॉरिटी के अनुसार 38,700 मुआवज़ा आवेदन, जिनमें 30 हज़ार से ज़्यादा सिर्फ घरों के टूटने-फूटने को लेकर! और यह किसी दूरदराज के गांव की कहानी नहीं, बल्कि तेल अवीव, हाइफा, अशदोद जैसे प्रमुख शहरों में मिसाइलों की तबाही की दास्तान है। बैलिस्टिक मिसाइलों की बरसात ने इज़राइली सुरक्षा ढांचे की पोल खोल दी—और वो "आयरन डोम" जिसे अभेद्य माना जाता था, ईरानी मिसाइलों के आगे चरमरा गया।

ईरान की चुप्पी, लेकिन विनाश की तस्वीरें साफ़ हैं

दूसरी तरफ ईरान भी जख्मी है, लेकिन उसकी राजनीतिक चुप्पी और सैन्य नियंत्रण ने वहां से नुकसान के आंकड़े बाहर नहीं निकलने दिए। फिर भी जो विदेशी मीडिया और NGO रिपोर्ट्स आई हैं, उनसे साफ है कि ईरान ने 600 से ज्यादा लोगों की जान गंवाई, जबकि इज़राइल में यह संख्या महज 30 के आसपास है। लेकिन ईरान की “कम्युनिकेशन स्ट्रैटेजी” इतनी सटीक रही कि उसने अपने नुक़सान को भी अपनी रणनीतिक जीत में तब्दील कर दिया। ईरान ने न सिर्फ जवाबी हमलों से इज़राइल को हिला दिया, बल्कि युद्धविराम की स्थिति में राजनीतिक रूप से ऊपरी हाथ भी बना लिया।

अमेरिका किसके साथ खड़ा है? ट्रंप ने बदले सुर

सबसे चौंकाने वाला मोड़ तब आया जब ट्रंप, जो कभी ईरान को “अक्ष का शैतान” कहते थे, अब उन्हें समझदार और रणनीतिक सोच वाला देश कहने लगे। यह पलटाव क्या सिर्फ शब्दों का था? या अमेरिका अब जान चुका है कि ईरान को धमकाकर झुकाना नामुमकिन है? यह सवाल और बड़ा तब बन जाता है जब अमेरिका की पेंटागन रिपोर्ट्स खुद कहती हैं कि “ईरान की सैन्य क्षमता अब भी अक्षुण्ण है” और यूरेनियम स्टॉक का बड़ा हिस्सा हमले से पहले शिफ्ट कर दिया गया था। यानी हमले हुए, लेकिन लक्ष्य नहीं मरे। और इसी को ट्रंप ने “जबरदस्त हमला” कहकर ढंकने की कोशिश की।

दुनिया देख रही थी भारत की चुप्पी... और उसकी ताक़त

इस पूरी लड़ाई में भारत एक चुप मगर सबसे महत्वपूर्ण किरदार बनकर उभरा। उसने न ईरान के पक्ष में बयान दिया, न इज़राइल के लिए नारे लगाए, लेकिन हर मोड़ पर उसकी भूमिका एक संतुलन साधने वाली शक्ति की तरह रही। भारत जानता है कि ईरान से उसका तेल और रणनीतिक संबंध है, तो इज़राइल से रक्षा और टेक्नोलॉजी का सहयोग। ऐसे में इस युद्ध में भारत की तटस्थता ही उसकी सबसे बड़ी राजनीतिक जीत थी। और अब जबकि युद्धविराम हो चुका है, तो सभी की निगाहें इसी बात पर हैं कि मोदी सरकार इस बदली भू-राजनीति में कैसी चाल चलेगी।

ट्रंप की ज़ुबान से फूटा युद्ध का सच

ईरान-इज़राइल युद्ध को लेकर अब तक जितनी भी रिपोर्ट्स सामने आई थीं, उनमें सच्चाई ढूंढना मुश्किल था। लेकिन अब जब खुद अमेरिका के राष्ट्रपति ने यह स्वीकार किया है कि इज़राइल को भारी नुकसान हुआ है, तो यह मानने में कोई संकोच नहीं कि इस बार जंग का मैदान भले इज़राइल था, लेकिन दबदबा ईरान का रहा। इस युद्ध ने साबित कर दिया कि अब युद्ध सिर्फ मिसाइलों से नहीं, रणनीति और कूटनीति से भी लड़ा जाता है। और ट्रंप का बयान इसी का सबसे बड़ा प्रमाण है—एक ऐसा बयान जो इतिहास में दर्ज हो जाएगा, क्योंकि उसमें सचाई थी, स्वीकार्यता थी और भविष्य की चिंता भी। तो क्या अगली बार फिर युद्ध होगा? या ये शांति बस एक विराम है? दुनिया को इंतज़ार है… और खतरा अब भी ज़िंदा है।

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Harsh Srivastava

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Harsh Shrivastava is an enthusiastic journalist who has been actively writing content for the past one year. He has a special interest in crime, politics and entertainment news. With his deep understanding and research approach, he strives to uncover ground realities and deliver accurate information to readers. His articles reflect objectivity and factual analysis, which make him a credible journalist.

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