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तालिबान से 'भाईचारा' बना सिरदर्द! रूस के फैसले के बाद घबराया पाकिस्तान, मान्यता देने से हटा पीछे

Pakistan Taliban relations: तालिबान को सबसे पहले गले लगाने का जोश दिखाने वाला पाकिस्तान, अब चार साल बाद तालिबान को आधिकारिक मान्यता देने से डर रहा है। जहां एक तरफ रूस ने तालिबान सरकार को दुनिया के सामने “वैध” करार देकर मान्यता दे दी, वहीं पाकिस्तान ने अपने कदम पीछे खींच लिए हैं।

Harsh Srivastava
Published on: 6 July 2025 4:02 PM IST
तालिबान से भाईचारा बना सिरदर्द! रूस के फैसले के बाद घबराया पाकिस्तान, मान्यता देने से हटा पीछे
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Pakistan Taliban relations: चार साल पहले जब काबुल पर तालिबान का परचम लहराया था, तो पाकिस्तान में एक जश्न का माहौल बन गया था। इमरान खान की सरकार ने तो इसे “ग़ुलामी की जंजीरों से आज़ादी” बताया था और पाकिस्तान की सड़कों पर खुलेआम मिठाइयां बांटी जा रही थीं। वहां के कई कट्टरपंथी नेता तालिबान को “भाई” कहने लगे थे और इस्लामाबाद की हवा में ये दावा तैर रहा था कि अब अफगानिस्तान में “दोस्ती का दौर” शुरू होगा। लेकिन अब वही पाकिस्तान चुप है...सहमा हुआ है और दुनिया की निगाहों से बचकर धीरे-धीरे पीछे हट रहा है।

'भाईचारे' की दीवार में दरार

तालिबान को सबसे पहले गले लगाने का जोश दिखाने वाला पाकिस्तान, अब चार साल बाद तालिबान को आधिकारिक मान्यता देने से डर रहा है। जहां एक तरफ रूस ने तालिबान सरकार को दुनिया के सामने “वैध” करार देकर मान्यता दे दी, वहीं पाकिस्तान ने अपने कदम पीछे खींच लिए हैं। पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय से जुड़े सूत्रों का साफ कहना है कि "इस्लामाबाद को कोई जल्दबाज़ी नहीं है, हम देशहित में सोचेंगे और तभी कोई फैसला करेंगे।" यानी जिस तालिबान को कल तक भाई बताया जा रहा था, आज उसके नाम से ही पाकिस्तानी नेता “डिप्लोमैटिक शील्ड” तान रहे हैं।

तालिबान पर TTP को शरण देने का आरोप, रिश्तों में आई खटास

असल परेशानी की जड़ कुछ और ही है तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता संभालने के बाद पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन TTP (तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान) के कई कट्टर लड़ाकों को शरण दे दी। ये वही TTP है जिसने पाकिस्तान के अंदर दर्जनों हमले किए हैं—पेशावर के स्कूल से लेकर क्वेटा के कैंपों तक। अब पाकिस्तान का खुफिया तंत्र खुद मान रहा है कि तालिबान TTP के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर रहा। इस मुद्दे पर इस्लामाबाद और काबुल के बीच कई बार तनाव चरम पर पहुंचा है। जहां तालिबान बार-बार इस बात से इनकार करता है कि उसने किसी आतंकी को शरण दी है, वहीं पाकिस्तान अब खुलकर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी नाराजगी दिखा रहा है।

शरणार्थियों पर बवाल, दुनिया देख रही पाकिस्तान की सच्चाई

तालिबान से खफा पाकिस्तान ने अब एक और बड़ा कदम उठाया है—पाकिस्तान में रह रहे लाखों अफगान शरणार्थियों को जबरन देश से निकालना शुरू कर दिया है। इस कदम की दुनियाभर में आलोचना हो रही है। मानवाधिकार संगठनों से लेकर संयुक्त राष्ट्र तक पाकिस्तान की इस 'निर्दय' नीति पर नाराज हैं। कई रिपोर्ट्स में यह बात भी सामने आई है कि पाकिस्तान से निकाले गए अफगानों को तालिबान भी अपनाने को तैयार नहीं है, जिससे एक नया मानवीय संकट खड़ा हो गया है।

IMF, अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय दबाव भी एक बड़ी वजह

तालिबान को मान्यता देने से पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ सकता है—इस डर ने भी इस्लामाबाद को सतर्क कर दिया है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था इस वक्त ICU में है। IMF से मिलने वाले राहत पैकेजों, अमेरिका की मदद और यूरोपीय देशों के निवेश पर पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था टिकी हुई है। ऐसे में तालिबान जैसी सरकार को मान्यता देना पाकिस्तान के लिए आर्थिक आत्महत्या जैसा कदम साबित हो सकता है। पाकिस्तानी अधिकारी भी अब दबी ज़ुबान में मान रहे हैं कि "हम अपनी कूटनीति को बहुत सावधानी से आगे बढ़ा रहे हैं, तालिबान के समर्थन से ज्यादा जरूरी हमारी अंतरराष्ट्रीय छवि और आर्थिक सुरक्षा है।"

रूस के फैसले ने हिलाया इस्लामाबाद

रूस द्वारा तालिबान को दी गई मान्यता ने पाकिस्तान को एक बार फिर दुविधा में डाल दिया है। रूस ने ये फैसला इसलिए लिया ताकि वह अफगानिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ रणनीतिक रूप से खुद को मज़बूत कर सके और चीन-पाकिस्तान की जोड़ी को एक संतुलन दे सके। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि रूस का यह कदम आने वाले समय में अन्य क्षेत्रीय देशों को भी तालिबान के पक्ष में झुका सकता है—जैसे ईरान, तुर्कमेनिस्तान या शायद भारत भी। पाकिस्तान को डर है कि कहीं वह अपने ही बनाए "भाई" से कट ना जाए और अफगानिस्तान में उसका रणनीतिक प्रभाव खत्म न हो जाए।

तो क्या पाकिस्तान मानेगा हार?

इस सवाल का जवाब फिलहाल पाकिस्तान के पास भी नहीं है। वहां के अधिकारियों ने साफ कहा है कि "हम तब तक कोई फैसला नहीं करेंगे, जब तक तालिबान पाकिस्तान के हितों की सुरक्षा नहीं करता।" लेकिन यह भी एक कटु सच्चाई है कि तालिबान अब पाकिस्तान की बात सुनने के मूड में नहीं है। अफगानिस्तान की नई हुकूमत खुद को अब पूरी तरह स्वतंत्र समझती है और वह पाकिस्तान की ‘छत्रछाया’ से बाहर आ चुकी है।

अंत में सवाल बड़ा है

जिस तालिबान को पाकिस्तान ने कभी पाल-पोसकर बड़ा किया, क्या अब वही उसके लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बन चुका है? क्या रूस की तरह पाकिस्तान भी जल्द ही ‘व्यावहारिक’ दृष्टिकोण अपनाकर तालिबान को मान्यता देगा? या फिर दबाव में आकर खुद को एक बार फिर दुनिया से काट लेगा? जवाब आने वाले महीनों में मिल सकता है, लेकिन आज की तारीख में इतना तय है कि पाकिस्तान की 'तालिबानी दोस्ती' अब टूटने की कगार पर है... और ये दरार इतनी गहरी है कि इसे मिठाइयों से भरा कोई त्योहार नहीं भर सकता।

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Harsh Srivastava

News Coordinator and News Writer

Harsh Shrivastava is an enthusiastic journalist who has been actively writing content for the past one year. He has a special interest in crime, politics and entertainment news. With his deep understanding and research approach, he strives to uncover ground realities and deliver accurate information to readers. His articles reflect objectivity and factual analysis, which make him a credible journalist.

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