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थाईलैंड करेगा चीन के साथी कंबोडिया का सफाया! हथियारों का ऐसा जखीरा देख कांप उठे दुश्मन
Thailand vs Cambodia war: थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा विवाद फिर से उफान पर है। एफ-16 हमलों और मंदिर विवाद के बीच अब यह संघर्ष चीन-अमेरिका की छाया जंग में बदलता दिख रहा है।
Thailand vs Cambodia war: दुनिया जब तीसरे विश्व युद्ध की आशंका से जूझ रही है ऐसे में एशिया के दो पड़ोसी देश एक बार फिर जंग के मैदान में उतर आए हैं। थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा विवाद अब हथियारों की जुबान में तब्दील हो चुका है। एफ-16 के हमलों से थाई आकाश गूंज उठा तो कंबोडिया की जवाबी गोलियों ने जंगलों को बारूद से भर दिया। जिस विवाद को दुनिया ने 2011 के बाद खत्म मान लिया था वह फिर से खून बारूद और युद्धघोष में बदल गया है और वजह है वही पुराना 9वीं सदी का शिव मंदिर जिसे दोनों देश अपना बताते हैं। लेकिन अब यह सिर्फ मंदिर का झगड़ा नहीं रहा यह चीन बनाम अमेरिका की छाया युद्ध का नया अध्याय भी बनता दिख रहा है।
सुबह कंबोडिया का हमला शाम को थाईलैंड का जवाब
गुरुवार की सुबह कंबोडिया ने सीमा पर तैनात थाई सैनिकों पर अचानक हमला कर दिया। यह हमला उस शिव मंदिर के पास हुआ जो दोनों देशों के बीच विवाद की जड़ है। थाईलैंड के दो पोस्ट तबाह हुए और कुछ सैनिक घायल बताए जा रहे हैं। लेकिन थाईलैंड ने शाम होते-होते 6 एफ-16 फाइटर जेट्स से ताबड़तोड़ जवाब दिया। हवाई हमलों की तस्वीरें सामने आ चुकी हैं कंबोडिया के सैन्य कैंप जलते नजर आ रहे हैं और आसपास के गांव खाली कराए जा चुके हैं। लोग डर और अफरातफरी में सीमावर्ती इलाके छोड़ रहे हैं।
एक मंदिर बना दो देशों के बीच रणभूमि
यह मंदिर यूं तो आस्था का केंद्र है लेकिन पिछले दो दशकों से राष्ट्रवाद की जमीन बन चुका है। कंबोडिया ने इस शिव मंदिर को 2008 में यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में दर्ज करा लिया था। थाईलैंड का कहना है कि यह उसके भूभाग में आता है और कंबोडिया ने “सांस्कृतिक डकैती” की है। इतिहास बताता है कि इस मंदिर का निर्माण खमेर सम्राट सूर्यवर्मन ने करवाया था जब कंबोडिया और थाईलैंड की सीमाएं वैसी नहीं थीं जैसी आज हैं। लेकिन अब यह धार्मिक विवाद नहीं भौगोलिक कब्जे और सैन्य ताकत का मुद्दा बन चुका है।
थाईलैंड बनाम कंबोडिया, कौन है ज्यादा ताकतवर?
कागज़ पर मुकाबला असमान है। थाईलैंड की आबादी 7.1 करोड़ है जबकि कंबोडिया सिर्फ 2 करोड़ का देश है। ग्लोबल फायर पावर की मानें तो थाईलैंड के पास 3.6 लाख सक्रिय सैनिक 2 लाख रिजर्व और अत्याधुनिक हथियार हैं। कंबोडिया के पास 2.2 लाख सैनिक हैं लेकिन रिजर्व बल नहीं। थाईलैंड का रक्षा बजट 5 अरब डॉलर है जबकि कंबोडिया का बजट सिर्फ 84 करोड़ डॉलर है। हथियारों की बात करें तो थाईलैंड के पास 72 फाइटर जेट जिनमें अमेरिका के एफ-16 एफ-5 और ग्रिपेन जैसे घातक विमान शामिल हैं। वहीं कंबोडिया के पास ऐसे फाइटर जेट न के बराबर हैं। थाईलैंड के पास 16 हजार से ज्यादा बख्तरबंद वाहन 258 हेलिकॉप्टर 7 अटैक हेलिकॉप्टर 50 आर्टिलरी गन और इजरायली रॉकेट लॉन्चर और ड्रोन हैं। जबकि कंबोडिया के पास संसाधनों की भारी कमी है। लेकिन कंबोडिया को एक चीज थाईलैंड से ज्यादा है चीन की नजदीकी।
चीन की चाल,देख रहा है खेल
कंबोडिया चीन का करीबी है। आर्थिक मदद से लेकर इंफ्रास्ट्रक्चर तक कंबोडिया चीन के भरोसे चलता है। वहीं थाईलैंड का झुकाव अमेरिका की ओर है। अमेरिका से वह अपने ज्यादातर हथियार खरीदता है और नाटो से भी संबंध रखता है। यही कारण है कि इस संघर्ष को चीन बनाम अमेरिका की शह पर चल रही प्रॉक्सी वार भी कहा जा रहा है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि चीन खुलकर किसी का पक्ष नहीं ले रहा। उसने दोनों देशों से शांति और बातचीत की अपील की है। चीन नहीं चाहता कि उसे किसी एक पक्ष के साथ मजबूरी में खड़ा होना पड़े।
दुनिया डरी लेकिन चुप, क्या ये बड़ा युद्ध बनेगा?
संयुक्त राष्ट्र की तरफ से अब तक कोई सख्त बयान नहीं आया है। अमेरिका ने केवल “स्थिति की निगरानी” की बात कही है जबकि ASEAN देशों ने “मध्यस्थता की पेशकश” की है। लेकिन सवाल उठ रहा है जब एफ-16 उड़ चुके हैं जब गोली चल चुकी है जब जानें जा चुकी हैं... क्या तब भी दुनिया बस देखती रहेगी? कई विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह संघर्ष और बढ़ा तो एशिया में एक और बड़ी लड़ाई देखने को मिल सकती है जिसमें अमेरिका और चीन के छाया युद्ध की आग और भड़केगी।
मंदिर की लड़ाई है या सत्ता का शक्ति परीक्षण?
सिर्फ एक मंदिर सीमारेखा या विरासत के नाम पर युद्ध होना मानवीय नहीं लगता। लेकिन जब भू-राजनीति धर्म और अंतरराष्ट्रीय गठबंधन आपस में उलझते हैं तो इतिहास गवाह है कि युद्ध टलते नहीं टूट पड़ते हैं। थाईलैंड और कंबोडिया की यह लड़ाई एक जली हुई चिंगारी का विस्फोट है जो पूरी दुनिया को अपने लपेटे में ले सकती है और शायद इस बार कोई "सीज़फायर" भी काफी न हो।
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