Dhirubhai Ambani Success Story: धीरूभाई अंबानी की प्रेरणादायक कहानी, गरीबी से अमीरी तक का सफर

Dhirubhai Ambani Success Story : गरीबी, संघर्ष और दूरदृष्टि से खड़ा हुआ बिज़नेस साम्राज्य, जो हर सपने देखने वाले को प्रेरणा देता है।

Sonal Girhepunje
Published on: 1 Aug 2025 2:45 PM IST
Dhirubhai Ambani Success Story: धीरूभाई अंबानी की प्रेरणादायक कहानी, गरीबी से अमीरी तक का सफर
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Dhirubhai Ambani's success story (Photo - Social Media)

Dhirubhai Ambani success story

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Dhirubhai Ambani Success Story: धीरूभाई अंबानी... यह नाम आज न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में सफलता और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है। यह कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है जिसने ज़मीन से उठकर आसमान छू लिया। जिसने अपनी दूरदृष्टि, साहस और मेहनत के दम पर एक छोटे व्यापारी से लेकर भारत की सबसे बड़ी निजी कंपनी की नींव रखी। धीरूभाई का जीवन हर उस इंसान के लिए प्रेरणा है जो कठिनाइयों से जूझ रहा है और आगे बढ़ने का सपना देखता है।

शुरुआती जीवन - कठिन परिस्थितियों से सामना :

धीरजलाल हीराचंद अंबानी, जिन्हें हम धीरूभाई अंबानी के नाम से जानते हैं, का जन्म 28 दिसंबर 1932 को गुजरात के जूनागढ़ जिले के एक छोटे गांव चोरवाड़ में हुआ था। उनके पिता एक स्कूल शिक्षक थे और परिवार बेहद साधारण आर्थिक स्थिति में रहता था। बचपन से ही धीरूभाई ने गरीबी और संघर्ष को बहुत करीब से देखा।

पढ़ाई में होशियार होने के बावजूद आर्थिक कठिनाइयों के कारण उन्हें शिक्षा बीच में छोड़नी पड़ी। यही हालात बाद में उनके जीवन में बदलाव की प्रेरणा बने और उन्होंने यह ठान लिया कि उन्हें कुछ बड़ा करना है।

विदेश में पहला अनुभव - यमन की नौकरी :

कम उम्र में धीरूभाई अंबानी रोज़गार की तलाश में यमन के अदन शहर चले गए। वहां उन्होंने एक पेट्रोल पंप पर नौकरी शुरू की, जहाँ उन्होंने सिर्फ काम ही नहीं सीखा, बल्कि व्यापार की बारीकियों को भी गहराई से समझना शुरू किया। कंपनी उनके काम से इस कदर खुश थी कि उन्होंने उन्हें पेट्रोल पंप का मैनेजर बना दिया। उन्होंने महसूस किया कि किसी भी व्यापार में केवल लाभ कमाना ही महत्वपूर्ण नहीं, बल्कि ग्राहक का विश्वास और उत्कृष्ट सेवा सबसे ज्यादा जरूरी होती है। यमन में वर्षों तक काम करने और मैनेजर पद तक का सफर तय करने के बाद, वे भारत लौट आए। इस बार वे नौकरी के लिए नहीं, बल्कि अपने खुद के व्यवसाय की शुरुआत करने के संकल्प के साथ लौटे।

रिलायंस की शुरुआत - छोटे पैमाने से बड़ी सोच :

1958 में धीरूभाई ने मुंबई में रिलायंस कमर्शियल कॉरपोरेशन की स्थापना की। शुरुआत में यह एक छोटी कपड़े की ट्रेडिंग कंपनी थी। कंपनी का ऑफिस एक छोटे से कमरे में था। टेलीफोन, फर्नीचर, सब कुछ उधार या किराए पर लिया गया था। लेकिन धीरूभाई की सोच हमेशा बड़ी थी।

उन्होंने पॉलिएस्टर धागों और साड़ियों का व्यापार शुरू किया। उनकी कारोबारी समझ, गुणवत्ता पर जोर और ग्राहकों के साथ ईमानदार व्यवहार ने जल्द ही उन्हें एक सफल व्यापारी बना दिया।

विस्तार की दिशा में कदम - निर्माण और शेयर बाजार में प्रवेश :

1970 के दशक में धीरूभाई ने केवल व्यापार ही नहीं किया, बल्कि भारतीय कारोबारी व्यवस्था में एक क्रांति ला दी। उन्होंने उत्पादन क्षेत्र में कदम रखा और 1977 में रिलायंस टेक्सटाइल्स को सार्वजनिक कंपनी में बदल दिया।

यह वो समय था जब भारत में बहुत कम लोग शेयर बाजार में निवेश करते थे। लेकिन धीरूभाई ने आम जनता को कंपनी का हिस्सा बनने का अवसर दिया। उन्होंने हर छोटे निवेशक को भरोसा दिलाया कि वह भी देश की आर्थिक प्रगति का भागीदार बन सकता है।

नई ऊंचाइयों की ओर - ऊर्जा, पेट्रोकेमिकल और दूरसंचार में विस्तार :

1980 और 1990 के दशक में रिलायंस ने खुद को केवल कपड़ा व्यापार तक सीमित नहीं रखा। कंपनी ने पेट्रोकेमिकल्स, तेल, गैस और ऊर्जा क्षेत्रों में भी प्रवेश किया। गुजरात के जामनगर में रिलायंस ने दुनिया की सबसे बड़ी रिफाइनरी में से एक की स्थापना की।

धीरूभाई ने देश में दूरसंचार की महत्ता को पहले ही समझ लिया था। इसीलिए रिलायंस ने आगे चलकर टेलीकॉम सेक्टर में भी बड़ा निवेश किया और देश को किफायती संचार सुविधा देने में मदद की।

जनता से जुड़ाव - शेयरधारकों के साथ विश्वास का रिश्ता :

धीरूभाई का मानना था कि कंपनी की असली ताकत उसके ग्राहक और निवेशक होते हैं। उन्होंने रिलायंस को जनता की कंपनी बनाया। वे शेयरधारकों को केवल निवेशक नहीं, बल्कि परिवार का सदस्य मानते थे।

रिलायंस की सालाना बैठकों में हजारों की संख्या में लोग जुड़ते थे। यह उनके काम करने की शैली और लोगों के साथ उनके रिश्ते का प्रमाण था।

विरोध और आलोचनाएं - फिर भी न रुके कदम :

धीरूभाई की सफलता की राह आसान नहीं थी। उन पर कई बार राजनीतिक संबंधों के दुरुपयोग, कर चोरी और प्रतिस्पर्धियों को पीछे छोड़ने के लिए गलत तरीके अपनाने जैसे आरोप लगे। लेकिन उन्होंने हर बार समझदारी और संयम से जवाब दिया।

विरोध और आलोचना के बीच भी उन्होंने अपने मूल्यों और उद्देश्य को कभी नहीं छोड़ा। वे मानते थे कि जब आप कुछ बड़ा करते हैं, तो आलोचना होना स्वाभाविक है।

नेतृत्व शैली और दृष्टिकोण :

धीरूभाई की सबसे बड़ी ताकत थी उनकी दूरदृष्टि और सकारात्मक सोच। वे हमेशा बड़ी सोचते थे और अपने साथ काम करने वालों को भी यही सिखाते थे कि असंभव कुछ नहीं होता।

उनका सबसे प्रसिद्ध कथन है :

"सोचो मत कि तुम्हारे पास क्या नहीं है, सोचो कि तुम्हारे पास क्या है और तुम उससे क्या कर सकते हो।"

वे जोखिम लेने से नहीं डरते थे, लेकिन हर कदम सोच-समझकर उठाते थे। वे अपने कर्मचारियों को प्रेरित करते थे और उन्हें स्वतंत्रता देते थे कि वे अपने निर्णय लें और आगे बढ़ें।

मृत्यु और विरासत :

धीरूभाई अंबानी का निधन 6 जुलाई 2002 को हुआ। उनके जाने के बाद उनके बेटों मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी ने रिलायंस की विरासत को आगे बढ़ाया। हालांकि बाद में दोनों भाइयों के बीच कंपनी का विभाजन हुआ, लेकिन धीरूभाई की सोच, उनके मूल्य और उनकी प्रेरणा आज भी जीवित हैं।

मुकेश अंबानी के नेतृत्व में रिलायंस इंडस्ट्रीज आज भारत की सबसे बड़ी कंपनियों में गिनी जाती है, और धीरूभाई की दूरदर्शिता की मिसाल बन चुकी है।

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