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आचार्य देवव्रत होंगे उपराष्ट्रपति पद के नए दावेदार? BJP ने किया इशारा, चढ़ा सियासी पारा
BJP Vice President candidate: जगदीप धनखड़ के इस्तीफे ने राजनीति में अचानक एक खाली जगह बना दी है और अब बीजेपी अपने अगले उम्मीदवार के नाम पर गहन मंथन कर रही है।
BJP Vice President candidate: दिल्ली के सियासी गलियारों में इस वक्त एक ही चर्चा है उपराष्ट्रपति पद की रेस में अब कौन आगे निकलेगा? जगदीप धनखड़ के इस्तीफे ने राजनीति में अचानक एक खाली जगह बना दी है और अब बीजेपी अपने अगले उम्मीदवार के नाम पर गहन मंथन कर रही है। लोकसभा और राज्यसभा में एनडीए की संख्या को देखते हुए साफ है कि उनका उम्मीदवार जीत की सीधी रेस में होगा। लेकिन सवाल यह है कि वह चेहरा कौन होगा जो इस बार संसद के ऊंचे सदन की दूसरी सबसे अहम कुर्सी पर बैठेगा?।
नामों की दौड़ में बढ़ते कयास
शुरुआत में दिल्ली और जम्मू-कश्मीर के एलजी वी.के. सक्सेना और मनोज सिन्हा का नाम सबसे ज्यादा चर्चा में था। राज्यसभा के डिप्टी चेयरमैन हरिवंश का नाम भी उभरा खासकर बिहार विधानसभा चुनाव से पहले उनके बिहार कनेक्शन को देखते हुए। जेडीयू और बीजेपी दोनों को लगता है कि हरिवंश जैसे नाम से बिहार में बड़ा संदेश जा सकता है लेकिन अब इन सभी के बीच एक नया नाम तेजी से सामने आ रहा है गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत।
जाट समाज को साधने की रणनीति
आचार्य देवव्रत उसी जाट बिरादरी से आते हैं जिससे पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का ताल्लुक है। माना जा रहा है कि बीजेपी जाट समाज के बीच अपना समर्थन और मजबूत करने के लिए इसी बिरादरी से उम्मीदवार उतार सकती है। खासकर हरियाणा राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्रों में जहां जाट मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं वहां यह कदम सियासी तौर पर बेहद अहम हो सकता है। आचार्य देवव्रत का राजनीतिक सफर उतना चर्चित नहीं रहा लेकिन उनका सामाजिक और वैचारिक काम उन्हें बीजेपी की विचारधारा के करीब लाता है। वह लंबे समय तक आर्य समाज से जुड़े रहे और कुरुक्षेत्र स्थित गुरुकुल में बतौर प्रिंसिपल कार्यरत रहे। शिक्षा संस्कार और भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार में उनका बड़ा योगदान माना जाता है।
राजनीति में सधी हुई एंट्री
आचार्य देवव्रत पहले हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल रह चुके हैं और 2019 में उन्हें गुजरात का राज्यपाल बनाया गया। वह हरियाणा के समालखा के रहने वाले हैं जो जाट बहुल इलाका है। बीजेपी के रणनीतिकारों का मानना है कि अगर उन्हें उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया जाता है तो यह न केवल जाट समाज को बल्कि ग्रामीण भारत और परंपरागत मूल्यों से जुड़े मतदाताओं को भी एक मजबूत संदेश देगा।
एनडीए में सहमति और पीएम की पसंद
खबर है कि 18 से 20 अगस्त के बीच किसी भी दिन बीजेपी अपने उम्मीदवार का नाम घोषित कर सकती है। जेडीयू टीडीपी और शिवसेना (शिंदे गुट) जैसे एनडीए के सहयोगी दल पहले ही पीएम नरेंद्र मोदी को अधिकृत कर चुके हैं कि वे जो भी नाम सुझाएंगे उस पर सभी दल सहमत होंगे। इससे बीजेपी के लिए रास्ता साफ हो गया है कि वह अपनी सियासी जरूरतों और 2024 के बाद की रणनीति को ध्यान में रखकर नाम चुने। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू का कहना है कि एनडीए के सभी दलों ने पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को अधिकार दिया है कि वे जिस भी उम्मीदवार पर मुहर लगाएंगे उस पर पूरा गठबंधन एकजुट होकर समर्थन देगा।
जाट वोट बैंक और 2029 की बिसात
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह फैसला सिर्फ उपराष्ट्रपति पद तक सीमित नहीं होगा बल्कि 2029 के विधानसभा चुनाव की रणनीति का हिस्सा होगा। जाट समुदाय में नाराजगी की खबरें समय-समय पर आती रही हैं खासकर किसान आंदोलन के दौरान। ऐसे में आचार्य देवव्रत का नाम आगे बढ़ाना इस नाराजगी को कम करने और समुदाय में सकारात्मक संदेश भेजने का जरिया हो सकता है।
अंतिम फैसला किसके हाथ में?
सारे कयासों के बावजूद अंतिम फैसला पीएम मोदी और बीजेपी की कोर टीम के हाथ में है। अगर बीजेपी पारंपरिक राजनीति से हटकर किसी नए चेहरे को मौका देती है तो आचार्य देवव्रत जैसे उम्मीदवार न सिर्फ राजनीतिक संतुलन बनाएंगे बल्कि बीजेपी की विचारधारा के भी प्रतीक बनकर उभरेंगे। अगले कुछ दिनों में यह साफ हो जाएगा कि क्या यह अनुमान सही साबित होगा या फिर बीजेपी कोई चौकाने वाला नाम सामने लाकर राजनीति के पंडितों को फिर से सोचने पर मजबूर कर देगी। अभी के लिए तो राजधानी की सियासी फिज़ा में बस एक ही सवाल तैर रहा है, क्या जाट राजनीति का नया चेहरा उपराष्ट्रपति भवन में दस्तक देगा?।
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