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मेड इन इंडिया वुमन' को अमेरिकी चुनौती-25% शुल्क से डगमगाएंगे कारोबार?
American Challenge to Made in India Woman: आइए जानते हैं भारतीय महिलाओं से जुड़े उद्योग अमेरिका में किस प्रकार फैले हैं और अब उन पर टैरिफ का क्या प्रभाव पड़ेगा।
American Challenge to Made in India Woman (Image Credit-Social Media)
American Challenge to Made in India Woman: अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत से आयातित वस्तुओं पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा ने वैश्विक व्यापार जगत में हलचल मचा दी है। भारत से अमेरिका को होने वाले निर्यात में टेक्सटाइल, हस्तशिल्प, आभूषण, आयुर्वेदिक उत्पाद, मसाले, और हेंडमेड फैब्रिक्स जैसी वस्तुओं का बड़ा हिस्सा महिला उद्यमियों के नेतृत्व वाले उद्योगों से आता है। इस बढ़े हुए आयात शुल्क का सीधा असर न सिर्फ इन महिलाओं की आय और उत्पादन पर पड़ेगा, बल्कि उनके सामाजिक‑आर्थिक हालात, मानसिक स्वास्थ्य और घरेलू बजट पर भी गहरी छाप छोड़ेगा।
आइए जानते हैं भारतीय महिलाओं से जुड़े उद्योग अमेरिका में किस प्रकार फैले हैं और अब उन पर टैरिफ का क्या प्रभाव पड़ेगा-
भारतीय महिलाओं द्वारा चलाए जा रहे उद्यम होंगे प्रभावित
भारतीय महिलाओं के नेतृत्व में संचालित छोटे और मध्यम उद्योग खासतौर पर हस्तशिल्प, हथकरघा, घरेलू सजावट, ऑर्गेनिक ब्यूटी प्रोडक्ट्स, पारंपरिक वस्त्र जैसे सिल्क साड़ी और एम्ब्रॉएडरी और मसालों से जुड़े उत्पादों में अमेरिका में बड़ी बाजार हिस्सेदारी रखते हैं। खास बात यह है कि ये उत्पाद ‘इंडियन आइडेंटिटी’ के साथ जुड़े हुए हैं और अमेरिकी बाजारों में ‘इथनिक’, ‘हैंडमेड’, ‘फेयर ट्रेड’ टैग के तहत ऊंची कीमतों पर बिकते हैं।
भारतीय महिलाओं द्वारा चलाए जा रहे उद्यम जैसे SEWA, Mann Deshi Foundation, Women on Wings, Rangsutra, Fabindia की महिला शिल्पकार इकाइयाँ, आदि लाखों महिलाओं को रोज़गार और आय का जरिया प्रदान करते हैं। इनमें से कई संस्थान भारत में प्रोडक्शन करके अमेरिका के Whole Foods, Etsy, Amazon Handmade, Cost Plus World Market, Anthropologie जैसे ब्रांड्स और ई-मार्केट्स में सामान बेचती हैं।
अब इन उत्पादों पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लग जाता है, तो इनकी कीमतें अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए इतनी बढ़ जाएंगी कि low-mid tier buyers इसे लेना छोड़ सकते हैं। इस वजह से अमेरिकी वितरकों और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर इनकी बिक्री कम होगी, ऑर्डर घटेंगे और bulk purchase contracts निरस्त हो सकते हैं। इसका सीधा असर भारत में इन महिला उद्यमियों और उनसे जुड़ी हजारों ग्रामीण कारीगर महिलाओं की आय पर पड़ेगा।
महिला उद्यमियों के बजट, लागत और बिक्री पर किस तरह असर होगा
महंगाई केवल घर के बजट को नहीं बल्कि महिला उद्यमियों की उत्पादन योजना को भी पूरी तरह बदल कर रख देती है। जब आयातित या परिवहन-आधारित कच्चा माल महंगा होता है, तो महिलाओं को या तो गुणवत्ता से समझौता करना पड़ता है या फिर कीमत बढ़ानी पड़ती है। दोनों ही स्थितियों में बिक्री प्रभावित होती है। कच्चे रेशम, डाई, प्रिंटिंग इक्विपमेंट, पैकेजिंग मटेरियल जैसी वस्तुएं अक्सर दूसरे देशों से आती हैं या डॉलर की कीमतों से प्रभावित होती हैं।
टैरिफ बढ़ने से डॉलर में खर्च करना और मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में घरेलू स्तर पर भी लागत का बोझ महिलाओं को ही उठाना होगा। जिनके पास पूंजी का पहले ही अभाव होता है। यह विशेष रूप से हस्तशिल्प, फैशन डिजाइन, फूड प्रोसेसिंग, जेम-स्टोन ज्वेलरी, आयुर्वेद उत्पाद, थ्रेडवर्क्स और कढ़ाई जैसे क्षेत्रों में दिखेगा जहां महिला स्व-रोजगार अधिक हैं।
घरेलू महंगाई और खर्च में बढ़ोतरी महिला उपभोक्ताओं और उद्यमियों के लिए दोहरा संकट
जब घरेलू स्तर पर महंगाई बढ़ती है तो महिलाएं न सिर्फ उपभोक्ता के रूप में प्रभावित होती हैं बल्कि उनके छोटे पैमाने पर चल रहे व्यवसाय भी इससे चरमराने लगते हैं। भोजन, गैस, परिवहन, स्वास्थ्य जैसी ज़रूरतों की कीमतें बढ़ने से जहां एक ओर घरेलू बजट सिकुड़ता है, वहीं दूसरी ओर उनकी व्यवसायिक योजनाओं के लिए फंडिंग या निवेश की संभावनाएं खत्म होने लगती हैं। महिलाएं जो अपने व्यवसाय से थोड़ा-बहुत मुनाफा कमाकर अपने बच्चों की शिक्षा, घर की जरूरतों और सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाती हैं, उनके लिए अचानक आई यह आर्थिक चोट मानसिक तनाव और निर्णय क्षमता पर भी असर डालती है। तनाव के कारण कई बार वे कारोबार बंद करने या मंदी के समय बेचने जैसे निर्णय भी ले सकती हैं।
महिला उद्यमिता पर पड़ने वाले आर्थिक दबाव का मनोवैज्ञानिक प्रभाव
महिलाएं जब आर्थिक रूप से असहाय महसूस करती हैं तो उसका सीधा असर उनके आत्मविश्वास, पहचान और पारिवारिक भूमिका पर पड़ता है। ग्रामीण और शहरी निम्न-मध्य वर्ग की महिला उद्यमियों में व्यवसाय केवल आय का स्रोत नहीं, बल्कि एक सामाजिक-आत्मनिर्भरता का माध्यम होता है। यदि यह माध्यम बाधित होता है, तो आत्म-सम्मान में गिरावट, डिप्रेशन, अनिर्णय जैसी स्थितियां पैदा हो सकती हैं।
इसके अतिरिक्त महिलाएं अपने छोटे व्यापारों को सामुदायिक स्तर पर चलाती हैं। जब महंगाई बढ़ने से इनका व्यापार ठप होता है, तो वे स्वयंसेवी नेटवर्क, क्रेडिट ग्रुप्स या सहकारी संगठनों से भी दूरी बना लेती हैं। जो उनके लिए संकट के समय सहारा बन सकते थे। इस तरह वे एक आर्थिक, सामाजिक और मानसिक संकट के त्रिकोण में फंसने की संभावनाएं बढ़ सकती हैं।
महिलाओं से जुड़े प्रमुख निर्यात क्षेत्र और टैरिफ का संभावित प्रभाव
हस्तशिल्प और होम डेकोर
टैरिफ के कारण अमेरिकी बाजार में इंडियन हैंडमेड प्रोडक्ट्स की लागत बढ़ेगी, जिससे अमेरिकन रिटेलर्स इनके बदले अन्य सस्ते एशियाई देशों (जैसे बांग्लादेश, वियतनाम) की ओर रुख कर सकते हैं।
आभूषण और टेक्सटाइल
जेम्स स्टोन और सिल्वर ज्वेलरी पर टैक्स बढ़ने से Etsy और eBay जैसी साइट्स पर भारतीय उत्पाद महंगे हो जाएंगे, जिससे खरीदार घट सकते हैं।
कपड़ा और फैशन उत्पाद
handloom, khadi और printed cotton dresses की मांग अमेरिका में बढ़ी है, लेकिन टैक्स वृद्धि के कारण ये अब उतने प्रतिस्पर्धी नहीं रहेंगे।
ऑर्गेनिक और हर्बल उत्पाद
आयुर्वेदिक स्किनकेयर, मसाले, ऑर्गेनिक फूड प्रोडक्ट्स का निर्यात प्रभावित होगा क्योंकि 25% टैक्स के बाद ‘सस्टेनेबल’ और ‘क्लीन’ उत्पादों की कीमत बहुत बढ़ जाएगी।
इस चुनौती से निपटने के लिए क्या हो सकते हैं विकल्प
विश्लेषकों के अनुसार इस संकट से निपटने के लिए नीतिगत दृष्टिकोण से तीन स्तरों पर काम करने की जरूरत है- Providing financial security and business training to women entrepreneurs
- महिला उद्यमियों को वित्तीय सुरक्षा और बिजनेस ट्रेनिंग
सरकार को विशेष रूप से महिला-केंद्रित उद्यम सहायता योजनाएं शुरू करनी चाहिए जिनमें बिना गारंटी ऋण, टैक्स में छूट और डिजिटली स्किल ट्रेनिंग शामिल हों।
निर्यात के नए विकल्प और बाज़ारों की खोज
अमेरिका की निर्भरता से बचने के लिए यूरोप, मिडल ईस्ट, अफ्रीका और दक्षिण एशिया जैसे नए बाज़ारों में महिला उत्पादकों को प्रमोट किया जाना चाहिए।
कम्युनिटी और सहकारी मॉडल को पुनः सक्रिय करना
विशेषज्ञों की राय के अनुसार इस संकट के समय सहकारी संस्थाएं, स्वयं सहायता समूह और महिला-बाजार नेटवर्क (जैसे लोकल मंडी, हाट) को फिर से सक्रिय करना होगा ताकि महिलाएं सामूहिक रूप से उत्पादन और बिक्री कर सकें।
डोनाल्ड ट्रंप की यह टैरिफ नीति एक वैश्विक व्यापारिक घटनाक्रम है लेकिन इसका सीधा असर भारतीय ग्रामीण, घरेलू और निम्न आय वर्ग की महिलाओं की दुनिया पर पड़ रहा है। यह नीति केवल टैरिफ बढ़ाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह महिला सशक्तिकरण, आर्थिक समानता और सामाजिक भागीदारी के मूल सिद्धांतों को चुनौती देती है।
इस संकट में अगर महिलाओं को समय पर समर्थन, रणनीतिक मार्गदर्शन और वित्तीय सहारा मिल जाए, तो यह संकट से अवसर में बदला जा सकता है। महिलाओं की जिजीविषा और आत्मनिर्भरता आज भी भारत की असली ताकत है। जरूरत है उसे संरक्षित और संबलित करने की।
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