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ब्रिटेन के खराब स्टेल्थ F-35B को जा सकता है शिफ्ट, भारत के रडार में पकड़े जाने के बाद रॉयल नेवी छुपा रही अपना असफलता
ब्रिटेन का F-35B स्टेल्थ फाइटर जेट 14 जून को तकनीकी खराबी के चलते तिरुवनंतपुरम में उतरा था। अब ब्रिटिश विशेषज्ञों की जांच के बाद भारत में मरम्मत या यूके भेजे जाने पर फैसला होगा।
ब्रिटेन की रॉयल नेवी के अत्याधुनिक एफ-35B फाइटर जेट को जल्द ही तिरुवनंतपुरम एयरपोर्ट से हटाया जाएगा। 14 जून को तकनीकी खराबी के चलते इमरजेंसी लैंडिंग करने वाले इस विमान को पिछले 21 दिनों से एयरपोर्ट के एक सुरक्षित बेज में खड़ा रखा गया है। अब, रविवार को ब्रिटेन का एक एयरक्राफ्ट कैरियर भारत पहुंचेगा। जिसमें लगभग 25 विशेषज्ञ तकनीकी टीम के सदस्य शामिल होंगे।
मरम्मत भारत में या UK वापसी
ब्रिटिश इंजीनियर यह तय करेंगे कि विमान की मरम्मत भारत में की जा सकती है या उसे आंशिक रूप से खोलकर ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट से ब्रिटेन ले जाना होगा। भारत की ओर से एयरपोर्ट स्थित MRO (मेंटेनेंस, रिपेयर और ओवरहॉल) सुविधा में मरम्मत का प्रस्ताव दिया गया है। जिसे ब्रिटिश पक्ष ने स्वीकार भी कर लिया है।
110 मिलियन डॉलर का हाईटेक फाइटर जेट
यह F-35B लाइटनिंग जेट दुनिया के सबसे एडवांस्ड पांचवीं पीढ़ी के स्टेल्थ फाइटर जेट्स में से एक है, जिसकी कीमत करीब 915 करोड़ रुपये है। यह STOVL टेक्नोलॉजी से लैस है और कम जगह में भी उड़ान भरने की क्षमता रखता है।
आपात लैंडिंग के तुरंत बाद भारतीय वायुसेना और सरकार ने ब्रिटिश दल को हरसंभव सहायता देने की बात कही थी। अब ब्रिटिश इंजीनियरों की टीम के आने के बाद विमान को हैंगर में ले जाया जाएगा ताकि अन्य विमानों की उड़ानों में बाधा न आए।
21 दिन पहले भारतीय वायुसीम में डिटेक्ट हुआ था विमान
भारतीय वायुसेना के प्रवक्ता ने पुष्टि कर बताया था कि आपात स्थिति में डायवर्जन की घोषणा के बाद F-35B जेट को IAF के IACCS नेटवर्क ने तुरंत पहचान लिया और उसे सुरक्षित लैंडिंग की अनुमति दी गई। यह घटना भारत की अपने वायु क्षेत्र के भीतर ही नहीं बल्कि उससे बाहर भी जटिल हवाई गतिविधियों पर निगरानी रखने की क्षमता को दर्शाती है।
यह उन्नत स्टेल्थ फाइटर जेट ऑपरेशन हाईमास्ट के तहत केरल तट से लगभग 100 समुद्री मील दूर उड़ान भर रहा था। यह मिशन ब्रिटिश नौसेना की एक हाई-प्रोफाइल तैनाती का हिस्सा था। जिसका उद्देश्य लंदन की इंडो-पैसिफिक नीति को मज़बूती देना और बीजिंग को यह संदेश देना था कि ब्रिटेन नेविगेशन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय स्थिरता के मुद्दों को गंभीरता से लेता है।
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