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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) दिवस: एक गौरवशाली गाथा
Indian Space Research Organization Day: हर साल 23 अगस्त को मनाया जाने वाला इसरो दिवस गौरव, उपलब्धियों और भविष्य की उम्मीदों का उत्सव है।
ISRO Day (Image Credit-Social Media)
एक गाना याद आ रहा है -
' आओ तुम्हें चाँद पे ले जाएं
प्यार भरे सपने सजाएं
छोटा सा बंगला बनाएं
एक नई दुनिया बसाएं।’
नि:संदेह चांद पर जाना एक कल्पना ही तो थी! कौन सोच पाया था कि एक दिन हम चांद या मंगल या अंतरिक्ष में जा सकेंगे?
हमारा भारत देश आर्थिक रूप से इतना विकसित भी नहीं था कि रोज़ी रोटी, तन ढंकने के लिए कपड़ा और सिर छुपाने के लिए छत से अधिक सोच पाए। यह हमारे दूरदर्शी एवं मितव्ययी वैज्ञानी ही थे जिन्होंने संसाधनों के अभाव में भी सिर्फ अपने कौशल के बल पर इस असंभव लगने वाले कार्य को मूर्त रूप दिया।
आज हमारे लिए अत्यंत गर्व की बात है कि राकेश शर्मा के बाद अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की यात्रा करने वाले पहले भारतीय शुभांशु शुक्ला भारतीय वायु सेना में ग्रुप कैप्टन हैं और गगनयान मिशन के लिए नामित अंतरिक्ष यात्री हैं। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए एक्सिओम मिशन 4 के मिशन पायलट के रूप में भी काम किया।
भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों की शुरुआत एक बहुत ही विनम्र और सीमित संसाधनों वाले देश के लिए एक बहुत ही महत्वाकांक्षी कदम था। लेकिन, दूरदर्शिता, अथक प्रयास और दृढ़ संकल्प ने इसे एक शानदार सफलता में बदल दिया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) इसी गाथा का एक प्रतीक है, और हर साल 23 अगस्त को मनाया जाने वाला इसरो दिवस इसी गौरव, उपलब्धियों और भविष्य की उम्मीदों का उत्सव है।
इस दिन को इसरो दिवस के रूप में मनाने का फैसला भारत सरकार ने 23 अगस्त, 2023 को चंद्रयान-3 मिशन की चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफल लैंडिंग के बाद लिया। यह लैंडिंग न केवल भारत के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक ऐतिहासिक घटना थी। भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला पहला और चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला चौथा देश बन गया। इस असाधारण उपलब्धि ने पूरी दुनिया में भारत का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया।
इसरो का जन्म और विकास
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की कल्पना महान वैज्ञानिक डॉ. विक्रम साराभाई ने की थी, जिन्हें 'भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक' भी कहा जाता है। 1960 के दशक में, जब भारत कई चुनौतियों का सामना कर रहा था, तब साराभाई ने महसूस किया कि राष्ट्र के विकास में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। उनके प्रयासों से 1962 में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPAR) की स्थापना हुई, जिसने भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए आधारशिला रखी।
15 अगस्त, 1969 को INCOSPAR को पुनर्गठित कर इसरो (ISRO) की स्थापना की गई। शुरुआती वर्षों में, इसरो ने अपनी यात्रा बहुत ही साधारण तरीके से शुरू की। केरल के थुम्बा में एक चर्च को पहला प्रक्षेपण केंद्र बनाया गया और साइकिलों और बैलगाड़ियों का उपयोग करके रॉकेटों के पुर्जों को ले जाया जाता था। यह दर्शाता है कि इसरो ने किस तरह सीमित संसाधनों में भी बड़े सपने देखने का साहस किया।
इसरो का पहला बड़ा मील का पत्थर 19 अप्रैल,1975 को आया, जब सोवियत संघ की मदद से भारत का पहला उपग्रह 'आर्यभट्ट' अंतरिक्ष में भेजा गया। हालांकि, भारत के पास उस समय अपनी लॉन्च क्षमता नहीं थी। यह क्षमता 1980 में हासिल हुई जब 'एसएलवी-3' (SLV-3) रॉकेट से 'रोहिणी' उपग्रह को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित किया गया। यह भारत के लिए एक बहुत बड़ी सफलता थी और इसने आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम रखा।
इसरो की प्रमुख उपलब्धियाँ
इसरो ने अपनी स्थापना के बाद से अनगिनत सफलताओं को अंजाम दिया है। इन उपलब्धियों ने न केवल भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को मजबूत किया है, बल्कि देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
1. संचार और मौसम उपग्रह:
इसरो ने इनसेट (INSAT) और जीसैट (GSAT) श्रृंखला के कई उपग्रहों को सफलतापूर्वक लॉन्च किया है, जिन्होंने देश में संचार, प्रसारण और मौसम पूर्वानुमान को क्रांति ला दी है। इन उपग्रहों ने दूरदराज के क्षेत्रों में भी टेलीफोन, टेलीविजन और इंटरनेट कनेक्टिविटी को संभव बनाया है, और प्राकृतिक आपदाओं के बारे में सटीक जानकारी प्रदान करके जान-माल के नुकसान को कम करने में मदद की है।
2. रिमोट सेंसिंग उपग्रह:
आईआरएस (IRS) श्रृंखला के उपग्रहों ने भारत को रिमोट सेंसिंग प्रौद्योगिकी में एक वैश्विक नेता बनाया है। इन उपग्रहों से प्राप्त डेटा का उपयोग कृषि, जल संसाधन प्रबंधन, शहरी नियोजन और आपदा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में किया जाता है।
3. मंगल मिशन (मंगलयान):
5 नवंबर, 2013 को, इसरो ने अपना पहला मंगल मिशन 'मंगलयान' लॉन्च किया। यह मिशन 24 सितंबर, 2014 को सफलतापूर्वक मंगल की कक्षा में पहुंचा, जिससे भारत अपने पहले ही प्रयास में मंगल पर पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बन गया। यह मिशन कम लागत और उच्च दक्षता का एक उत्कृष्ट उदाहरण है और इसने दुनिया को दिखाया कि भारत कम बजट में भी बड़े अंतरिक्ष मिशनों को सफलतापूर्वक अंजाम दे सकता है।
4. चंद्र मिशन:
इसरो के चंद्र मिशनों ने भारत को चंद्रमा के अध्ययन में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बना दिया है। चंद्रयान-1 (2008) ने चंद्रमा पर पानी के अणुओं की उपस्थिति की खोज की, जो एक बहुत बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धि थी। चंद्रयान-2 (2019) का लैंडर हालांकि सॉफ्ट लैंडिंग में असफल रहा, लेकिन इसका ऑर्बिटर अभी भी चंद्रमा के चारों ओर चक्कर लगा रहा है और महत्वपूर्ण डेटा भेज रहा है। और फिर, चंद्रयान-3 (2023) की सफल लैंडिंग ने भारत को दुनिया में एक विशिष्ट स्थान दिलाया।
5. नेविगेशन प्रणाली (नाविक):
इसरो ने भारत की अपनी स्वदेशी नेविगेशन प्रणाली 'नाविक' (NavIC) विकसित की है। यह जीपीएस (GPS) के समान एक प्रणाली है, जो भारत और उसके आसपास के क्षेत्रों में सटीक स्थिति और समय की जानकारी प्रदान करती है। इसका उपयोग परिवहन, आपदा प्रबंधन और अन्य रणनीतिक क्षेत्रों में किया जाता है।
भविष्य की दिशा
इसरो दिवस का उत्सव केवल पिछली उपलब्धियों को याद करने का दिन नहीं है, बल्कि भविष्य की योजनाओं और सपनों को साकार करने की प्रेरणा भी है। इसरो के पास कई महत्वाकांक्षी परियोजनाएं हैं जिन पर काम चल रहा है:
* गगनयान मिशन: यह भारत का पहला मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन है, जिसका उद्देश्य भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजना है। यह मिशन भारत को मानव अंतरिक्ष उड़ान क्षमता वाले देशों की लीग में शामिल करेगा।
* आदित्य-एल1 मिशन: यह भारत का पहला सौर मिशन है, जिसका उद्देश्य सूर्य के कोरोना और अन्य सौर घटनाओं का अध्ययन करना है।
* शुक्रयान मिशन: यह शुक्र ग्रह के वायुमंडल और सतह का अध्ययन करने के लिए एक मिशन है।
* पुन: प्रयोज्य लॉन्च वाहन (RLV): इसरो भविष्य में लागत को कम करने के लिए पुन: प्रयोज्य रॉकेट विकसित कर रहा है।
इसरो दिवस भारतीय वैज्ञानिक समुदाय के लिए ही नहीं, बल्कि हर भारतीय के लिए गर्व का क्षण है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि समर्पण, नवाचार और आत्मनिर्भरता के साथ कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है। इसरो की कहानी हर भारतीय को बड़े सपने देखने और उन्हें पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करने की प्रेरणा देती है। यह केवल रॉकेट और उपग्रहों के प्रक्षेपण की कहानी नहीं है, बल्कि एक राष्ट्र के उत्थान की कहानी है, जिसने सीमित संसाधनों के बावजूद दुनिया में अपनी पहचान बनाई है। इसरो का प्रत्येक मिशन 'जय विज्ञान, जय अनुसंधान' के नारे को साकार करता है और भारत को एक विकसित और तकनीकी रूप से उन्नत राष्ट्र बनाने की दिशा में एक कदम है।
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