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शुभांशु शुक्ला को झेलना पड़ सकता है 'स्पेस रिकवरी सिंड्रोम, चलने-फिरने से लेकर मानसिक स्थिति को लेकर झेलनी पड़ सकती है चुनौतियां
Astronauts Post-Space Health Effects: भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने Axiom-4 मिशन पूरा किया और 288 बार पृथ्वी की परिक्रमा की। मिशन के बाद उनके शरीर पर माइक्रोग्रेविटी के प्रभावों को समझने और पुनर्स्थापन के लिए व्यापक मेडिकल टेस्ट शुरू हुए।
Astronauts Post-Space Health Effects: भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर 18 दिन बिताने और पृथ्वी की 288 बार परिक्रमा करने के बाद मंगलवार को सुरक्षित धरती पर कदम रखा। उनके साथ पोलैंड और हंगरी के अंतरिक्ष यात्री भी थे। यह मिशन खास इसलिए भी था क्योंकि शुभांशु पिछले चार दशकों में अंतरिक्ष जाने वाले पहले भारतीय बने।
उनका यह अंतरिक्ष अभियान Axiom-4 मिशन के तहत हुआ। यह मिशन स्पेसएक्स ड्रैगन कैप्सूल में सफलतापूर्वक कैलिफोर्निया के सैन डिएगो तट पर समुद्र में सॉफ्ट लैंडिंग के साथ समाप्त हुआ। पृथ्वी पर लौटने के साथ ही एक नया चरण शुरू हो गया है। जो शरीर और मन को दोबारा पृथ्वी की स्थिति के अनुरूप ढालना।
वापसी के बाद की पहली प्रक्रिया, स्वास्थ्य परीक्षण
जैसे ही अंतरिक्ष यात्री कैप्सूल से बाहर निकले, SpaceX की रिकवरी टीम ने उन्हें बाहर निकालकर विशेष चिकित्सा सुविधा से लैस जहाज पर पहुँचाया। यहां पर सबसे पहले उनकी शारीरिक जांच की गई जिसमें हृदय गति,ब्लड प्रेशर, संतुलन और अन्य जीवन संकेतों की गहन जांच होती है।
अंतरिक्ष में रहने के दौरान शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों को समझने के लिए यह पोस्ट-फ्लाइट मेडिकल प्रोटोकॉल बहुत जरूरी है। उड़ान से पहले लिए गए बायोमेडिकल डेटा की तुलना लौटने के बाद के डेटा से की जाती है। ताकि माइक्रोग्रवेटी के प्रभावों आंका जा सके।
शरीर को फिर से पृथ्वी के अनुरूप ढालने की चुनौती
अंतरिक्ष में गुरुत्व बल की अनुपस्थिति से शरीर की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं और हड्डियों की घनता में भी गिरावट आती है। साथ ही, शरीर के तरल पदार्थों का वितरण भी बदल जाता है। जिससे ब्लड फ्लो और अंग प्रभावित हो सकते हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए अंतरिक्ष यात्रियों को एक रिकंडीशन प्लैन से गुजरना पड़ता है। जिसमें व्यायाम, संतुलन अभ्यास, मानसिक स्वास्थ्य जांच और पोषण संबंधी दिशा-निर्देश शामिल होते हैं।
शुभांशु ने ISS से साझा किए थे अनुभव
अंतरिक्ष मिशन के दौरान शुभांशु ने ISS से बातचीत में स्वीकार किया था कि शुरुआत के कुछ दिन भ्रम और असंतुलन भरे रहे। उन्होंने कहा, यह मेरा पहला अनुभव है। इसलिए मुझे नहीं पता वापसी कैसी होगी। मैं सिर्फ आशा कर रहा हूँ कि लौटते समय मुझे दोबारा वो लक्षण न महसूस हों जो जाते समय हुए थे।
दरअसल, इन लक्षणों के स्पेस मोशन सिकनेस कहते हैं। जो अक्सर अंतरिक्ष के शुरुआती दिनों में यात्रियों को प्रभावित करते हैं। धरती पर लौटने के बाद भी यह समस्या उलटी दिशा में सामने आती है। उन्हें साधारण काम जैसे कि खड़े होना या चलना भी कठिन लग सकता है।
अब अगला गंतव्य, जॉनसन स्पेस सेंटर
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, शुभांशु और उनके साथी अंतरिक्ष यात्री जल्द ही NASA के जॉनसन स्पेस सेंटर, ह्यूस्टन भेजे जाएंगे। वहां उनका आगे का चिकित्सा परीक्षण, शोध कार्य और पुनर्वास कार्यक्रम जारी रहेगा। Axiom Space द्वारा संचालित यह चौथा मिशन था। 2022 से Axiom, NASA की साझेदारी में, निजी अंतरिक्ष यात्राओं के जरिये अंतरिक्ष को कमर्शियल उपयोग की दिशा में आगे बढ़ा रहा है। NASA की योजना है कि 2030 तक ISS को निष्क्रिय कर दिया जाये और उसकी जगह निजी कंपनियों द्वारा बनाए गए स्पेस स्टेशन कार्यभार संभालेंगे।
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