क्या श्रीलंका भारत का हिस्सा है? नहीं! फिर भी नक्शे में क्यों दिखता है, जानिए इसका कारण

India Srilanka Map Intresting Facts: इस लेख में हम यह जानने का प्रयास करते हैं कि जब श्रीलंका एक स्वतंत्र राष्ट्र है, तो फिर वह भारत के नक्शे में क्यों दर्शाया जाता है ।

Shivani Jawanjal
Published on: 2 Aug 2025 6:19 PM IST
क्या श्रीलंका भारत का हिस्सा है? नहीं! फिर भी नक्शे में क्यों दिखता है, जानिए इसका कारण
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India Srilanka Map Intresting Facts: जब भी भारत का भौगोलिक नक्शा देखते हैं, तो उसमें भारत के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ एक और देश दिखाई देता है - श्रीलंका। यह एक छोटा-सा द्वीपीय राष्ट्र है जो भारत के दक्षिण में स्थित है। कई लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि जब श्रीलंका एक स्वतंत्र देश है, तो उसे भारत के नक्शे में क्यों दर्शाया जाता है? यह कोई सामान्य गलती नहीं है बल्कि इसके पीछे ऐतिहासिक, भौगोलिक, शैक्षणिक और राजनीतिक कारण हैं। इस लेख में हम इसी रहस्य को विस्तार से समझेंगे।

श्रीलंका की भौगोलिक स्थिति और भारत से संबंध


श्रीलंका एक द्वीपीय राष्ट्र है जो भारत के दक्षिणी सिरे के ठीक नीचे, हिंद महासागर के उत्तरी भाग में स्थित है। यह देश भारत से केवल 30 से 31 किलोमीटर की समुद्री दूरी पर है, जिसे मन्नार की खाड़ी और पाक जलडमरूमध्य (पम्बन चैनल) अलग करते हैं। ऐतिहासिक रूप से इसे पहले 'सीलोन' के नाम से जाना जाता था, जिसे वर्ष 1972 में बदलकर 'श्रीलंका' रखा गया। भारत और श्रीलंका के बीच एक रहस्यमयी पत्थरों की श्रृंखला समुद्र में फैली हुई है, जिसे रामसेतु या एडम्स ब्रिज कहा जाता है। यह प्राचीन संरचना तमिलनाडु के रामेश्वरम से श्रीलंका तक जाती है और इसे दोनों देशों के बीच एक प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक सेतु माना जाता है। भारत की निकटता के कारण श्रीलंका को उसके विस्तारित दक्षिणी भाग के समीपस्थ क्षेत्र के रूप में भी देखा जाता है। जिससे दोनों देशों के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक संबंधों की गहराई झलकती है।

भारत और श्रीलंका का साझा अतीत

भारत और श्रीलंका के बीच संबंधों की जड़ें हजारों वर्षों पुरानी हैं जो वैदिक काल से लेकर आधुनिक समय तक लगातार मजबूत होती रही हैं। दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक, धार्मिक, भाषाई और राजनीतिक स्तर पर गहरा जुड़ाव देखने को मिलता है। रामायण जैसे प्राचीन ग्रंथों में भी श्रीलंका का वर्णन ‘लंका’ के रूप में मिलता है, जिसे रावण का साम्राज्य माना गया है। यह वही स्थान है जहाँ भगवान राम ने रावण का वध कर माता सीता को मुक्त कराया था। जिससे यह द्वीप भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास से गहराई से जुड़ गया। इसके अलावा, मौर्य सम्राट अशोक ने अपने पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा को बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए श्रीलंका भेजा था । जिसके फलस्वरूप यह देश थेरवाद बौद्ध धर्म का एक प्रमुख केंद्र बन गया। कालांतर में भारत और श्रीलंका दोनों ने ब्रिटिश उपनिवेशवाद का अनुभव किया। हालांकि श्रीलंका कभी औपचारिक रूप से ब्रिटिश भारत का हिस्सा नहीं था। फिर भी उस दौर में दोनों देशों के बीच राजनीतिक और प्रशासनिक संपर्क बने रहे, जो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद और भी मजबूत होते चले गए।

नक्शे में श्रीलंका को क्यों जोड़ा जाता है?


भारत के दक्षिणी भूगोल का अध्ययन करते समय श्रीलंका का उल्लेख अत्यंत आवश्यक हो जाता है, क्योंकि इसके बिना यह क्षेत्रीय समझ अधूरी रह जाती है। नक्शे में श्रीलंका को दर्शाने से यह स्पष्ट होता है कि भारत के दक्षिण में कौन-सा देश स्थित है और वह भारत से कितनी निकटता में है। यह जागरूकता न सिर्फ भौगोलिक दृष्टिकोण से, बल्कि समुद्री सीमाओं और एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन (EEZ) की समझ के लिए भी आवश्यक है। भारत और श्रीलंका के बीच की समुद्री सीमाएं, समुद्री संसाधनों, सुरक्षा और क्षेत्रीय नियंत्रण जैसे मुद्दों को समझने में मदद करती हैं। इसके अलावा श्रीलंका भारत का एक निकटतम और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण पड़ोसी देश है। जिसके साथ राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक सहयोग लंबे समय से चला आ रहा है। इसलिए जब भी हम भूगोल पढ़ते है, तो श्रीलंका की स्थिति को समझाना अंतरराष्ट्रीय संबंधों और पड़ोसी देशों के महत्व को समग्र रूप में समझने में सहायक होता है।

राजनीतिक और कूटनीतिक पहलू

भारत और श्रीलंका के बीच सहयोग बहुआयामी और गहराई लिए हुए है जो राजनीतिक, रक्षा, सामाजिक और आर्थिक सभी क्षेत्रों में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। अप्रैल 2025 में दोनों देशों ने एक ऐतिहासिक रक्षा समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए, जिससे संयुक्त नौसैनिक अभ्यास, समुद्री निगरानी और रणनीतिक समन्वय को मजबूती मिली है। यह सहयोग खासतौर पर हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती उपस्थिति के संदर्भ में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इसके साथ ही, दोनों देशों ने समुद्री सुरक्षा को लेकर मिलकर काम करने की प्रतिबद्धता जताई है ताकि क्षेत्र को स्वतंत्र, सुरक्षित और समृद्ध बनाए रखा जा सके। श्रीलंका में रहने वाला तमिल समुदाय भारत, विशेष रूप से तमिलनाडु से सांस्कृतिक और भाषाई रूप से जुड़ा हुआ है। जिससे यह मुद्दा भारत की विदेश नीति में एक संवेदनशील पहलू बन जाता है। आर्थिक मोर्चे पर भी दोनों देशों के बीच व्यापार, ऊर्जा, आधारभूत संरचना और कौशल विकास जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ा है। भारत ने श्रीलंका की वित्तीय स्थिति को सहारा देने के लिए ऋण राहत और अनुदानों की पेशकश की है। इन सभी पहलुओं को देखते हुए, भारत के नक्शे में श्रीलंका का उल्लेख करना न केवल भौगोलिक दृष्टि से उचित है, बल्कि रणनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टिकोण से भी आवश्यक बन जाता है।

स्केल और प्रस्तुतीकरण की दृष्टि से

मानचित्र की माप (Map Scale) की तकनीकी दृष्टि से जब भारत का नक्शा सही अनुपात में तैयार किया जाता है, तो श्रीलंका को उसमें शामिल करना स्वाभाविक और अनिवार्य हो जाता है। क्योंकि यह भारत के दक्षिणी सिरे से केवल 18 से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। विशेष रूप से तमिलनाडु के धनुषकोडी से श्रीलंका के तट तक की यह दूरी लगभग 18 नॉटिकल मील है जो नक्शे पर स्पष्ट रूप से दिखनी चाहिए। यदि नक्शे में श्रीलंका को शामिल न किया जाए, तो वह असंतुलित और अधूरा प्रतीत होता है। जिससे न केवल भारत के दक्षिणी भूगोल की समझ बाधित होती है, बल्कि समुद्री सीमाएं और Exclusive Economic Zone (EEZ) जैसी महत्वपूर्ण अवधारणाएं भी अस्पष्ट रह जाती हैं। श्रीलंका भारत के दक्षिणी संदर्भ में एक महत्वपूर्ण रेफरेंस पॉइंट है जो न केवल भूगोल, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानून (Law of the Sea) के तहत भी मानचित्र में दर्शाया जाना आवश्यक माना जाता है। इसलिए, भारत का भौगोलिक चित्रण श्रीलंका के बिना न केवल अपूर्ण रहेगा, बल्कि तकनीकी रूप से भी असंतुलित होगा।

आम लोगों में भ्रम क्यों होता है?

लोगों को अक्सर यह भ्रम होता है कि जब वे भारत के नक्शे में श्रीलंका को देखते हैं, तो यह भारत का हिस्सा या भारत की मिलकियत लग सकता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि नक्शों को केवल राजनीतिक सीमाओं के आधार पर नहीं बल्कि भौगोलिक संदर्भ और समुद्री सीमाओं सहित प्रदर्शित किया जाता है।

अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानून (Law of the Sea या UNCLOS) के अनुसार, किसी देश की समुद्री सीमा से 200 नॉटिकल मील (लगभग 370 किलोमीटर) तक का क्षेत्र उस देश के समुद्री अधिकार क्षेत्र में आता है। भारत के नक्शे में 200 नॉटिकल मील के इस सीमा क्षेत्र को दिखाना जरूरी है। श्रीलंका की भारत से दूरी धनुषकोडी से मात्र करीब 18-30 किलोमीटर है, जो भारत की समुद्री सीमा के अंदर आता है। इसलिए भूगोलिक और कानूनी कारणों से श्रीलंका को भारत के नक्शे में दिखाना अनिवार्य होता है। इसका अर्थ यह नहीं कि श्रीलंका भारत का हिस्सा है या उस पर कोई अधिकार है, बल्कि नक्शे की तकनीकी और कानूनी आवश्यकताओं के कारण यह शामिल किया जाता है।

क्या यह किसी तरह का गलत प्रस्तुतीकरण है?

सरकारी और औपचारिक नक्शों में श्रीलंका को हमेशा एक स्वतंत्र देश के रूप में स्पष्ट रूप से दर्शाया जाता है। भारत के नक्शे में श्रीलंका शामिल करने का कारण कोई राजनीतिक दावा या मिलकियत नहीं है, बल्कि यह मानचित्र निर्माण की तकनीकी और कानूनी आवश्यकता है।

फिर भी, नक्शे में दोनों देशों की सीमाएं, समुद्री सीमाएं और रंगों के द्वारा भिन्नता स्पष्ट रूप से चिह्नित होती है। जिससे यह साफ होता है कि श्रीलंका भारत का हिस्सा नहीं बल्कि एक स्वतंत्र देश है। इस कारण नक्शे में श्रीलंका को शामिल करने से कोई राजनीतिक या क्षेत्रीय विवाद नहीं होता।

अन्य उदाहरण

भारत और श्रीलंका के नक्शे में एक साथ दिखने की तरह ही, विश्व के अन्य देशों के मानचित्रों में भी पास-पड़ोसी देशों को भौगोलिक संदर्भ के तहत शामिल किया जाता है। यह एक सामान्य मानचित्र निर्माण की तकनीक है। जिसका उद्देश्य केवल राजनीतिक सीमाएं दिखाना नहीं बल्कि क्षेत्रीय संबंधों, समुद्री सीमाओं और आर्थिक क्षेत्रों की समग्र समझ देना होता है। जैसे अमेरिका के नक्शों में अक्सर कनाडा और मैक्सिको को साथ में दर्शाया जाता है ताकि इन पड़ोसी देशों के भौगोलिक और आर्थिक संबंधों को स्पष्ट किया जा सके। इसी प्रकार, यूरोप के मानचित्रों में कई देशों को एक साथ दिखाना आवश्यक होता है क्योंकि वहां सीमाएं समीपस्थ हैं और देशों के बीच घनिष्ठ राजनीतिक-सांस्कृतिक संबंध होते हैं। अफ्रीकी महाद्वीप में भी नक्शों में अनेक देश एक साथ दिखाए जाते हैं जिससे महाद्वीपीय भूगोल और अंतरराष्ट्रीय संबंधों का बेहतर संदर्भ मिल सके। ऐसे सभी उदाहरण इस बात को सिद्ध करते हैं कि भारत के नक्शे में श्रीलंका को दिखाना कोई असामान्य बात नहीं बल्कि एक तकनीकी, कानूनी और शैक्षणिक आवश्यकता है। जो अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानून (UNCLOS) और भौगोलिक दृष्टिकोण के आधार पर पूरी तरह उचित है।

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