Lucknow News: एलडीए की जमीन हड़पने की कोशिश, नौ लोगों पर धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज

Lucknow News: अभियंता अब्दुल शमी के अनुसार एलडीए ने वर्ष 1999 में निरालानगर निवासी मीनू जोशी को जानकीपुरम योजना के सेक्टर-एच में एक बड़ा भूखंड आवंटित किया था। उसी मामले की एफआईआर में मीनू जोशी के साथ आठ अन्य लोगों के नाम शामिल हैं।

Prashant Vinay Dixit
Published on: 3 July 2025 8:30 PM IST
FIR for occupying LDA land
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FIR for occupying LDA land (Photo: Social Media)

Lucknow News: लखनऊ विकास प्राधिकरण (LDA) की जमीन पर कब्जा जमाने के प्रयास का सनसनीखेज मामला सामने आया है। जानकीपुरम योजना की कीमती जमीन पर फर्जी दस्तावेजों के आधार पर रजिस्ट्री कराने के आरोप में एलडीए के अवर वर्ग अभियंता अब्दुल शमी की शिकायत पर वजीरगंज थाने में नौ लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है।

यह था भूखंड बदलने का कारण

एफआईआर में मीनू जोशी के साथ आठ अन्य लोगों के नाम शामिल हैं। अभियंता अब्दुल शमी के अनुसार एलडीए ने वर्ष 1999 में निरालानगर निवासी मीनू जोशी को जानकीपुरम योजना के सेक्टर-एच में एक बड़ा भूखंड आवंटित किया था। उसके बाद में कुछ तकनीकी कारणों से एलडीए ने योजना के अंतर्गत दूसरी जमीन आवंटित कर दी थी। उस समय जारी किए गए नए दस्तावेज कहीं खो गए। वर्ष 2024 में मीनू जोशी ने एलडीए में पुराने भूखंड से संबंधित दस्तावेजों के आधार पर नए दस्तावेजों के लिए आवेदन किया।

एलडीए की लापरवाही-मिलीभगत

अधिकारियों की लापरवाही या मिलीभगत से बिना पूरी जांच के नए दस्तावेज दे दिए गए। इसके बाद 28 मई 2025 को प्राधिकरण ने नाम पर भूखंड की रजिस्ट्री भी कर दी।अब्दुल शमी ने अपनी जांच में पाया कि इस पूरी प्रक्रिया में गड़बड़ी हुई है। जिन कागजातों के आधार पर मीनू जोशी को दोबारा जमीन आवंटित की गई, वे सब फर्जी हैं, उन्होंने मामले की पूरी जानकारी वजीरगंज पुलिस को दी, जिसके आधार पर धोखाधड़ी, जालसाजी और फर्जी दस्तावेज तैयार करने की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया है।

एलडीए से रिपोर्ट की गई है तलब

एफआईआर में मीनू जोशी के साथ सहयोगी रहे अन्य आठ लोगों के नाम शामिल हैं। पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी है, दस्तावेजों की सत्यता की जांच के लिए एलडीए से रिपोर्ट तलब की गई है। इस प्रकरण ने एलडीए की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। प्राधिकरण के अंदर बैठे कुछ अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है, जिन्होंने बिना पर्याप्त सत्यापन के दस्तावेज जारी कर दिए। अगर समय रहते मामला पकड़ में न आता, तो करोड़ों की सरकारी जमीन निजी हो जाती।

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